'COVID-19 के दौरान अस्पतालों को सील करना उचित नहीं': सुप्रीम कोर्ट ने अहमदाबाद के अस्पतालों को दंडात्मक कार्रवाई से बचाया

LiveLaw News Network

11 Jun 2021 5:48 PM IST

  • COVID-19 के दौरान अस्पतालों को सील करना उचित नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने अहमदाबाद के अस्पतालों को दंडात्मक कार्रवाई से बचाया

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अंतरिम उपाय के रूप में अनुमति दी कि गुजरात राज्य में अस्पतालों और नर्सिंग होम बिल्डिंग के उपयोग के सर्टिफिकेट और अग्निशमन विभाग से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी) प्राप्त किए बिना बिल्डिंगों का उपयोग जारी रख सकते हैं।

    कोर्ट ने राज्य के लिए एसजी तुषार मेहता द्वारा की गई इस दलील की सराहना की कि इस महामारी और तीसरी लहर की आशंका के बीच अस्पतालों को पूरी तरह से सील करना उचित नहीं होगा।

    कोर्ट ने एसजी के इस निवेदन को दर्ज किया कि राज्य इस मुद्दे का एक व्यावहारिक समाधान निकालने का प्रयास करेगा और राज्य को नोटिस जारी किया जाए और इस मामले को 8 सप्ताह के बाद सूचीबद्ध किया जाए।

    अदालत ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं या किसी और के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई अभी न किया जाए।

    न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की अवकाश पीठ गुजरात उच्च न्यायालय के पांच जून के फैसले के खिलाफ एसएलपी पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) द्वारा अग्निशमन विभाग के एनओसी या भवन उपयोग की अनुमति के बिना याचिकाकर्ता के अस्पताल को सील करने के लिए जारी किए गए नोटिस को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी गई थी।

    अहमदाबाद के श्रेय अस्पताल में लगी आग लग गई थी, जिसमें 8 लोगों की जान चली गई थी। इसके बाद अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) ने अस्पताल को सील करने का नोटिस जारी किया। हाईकोर्ट के समक्ष इस मामले में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। एएमसी ने 22 फरवरी 2021 को एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया था कि किसी भी परिसर पर कब्जा करने से पहले बिल्डिंग के उपयोग की अनुमति और फायर एनओसी प्राप्त करना आवश्यक है।

    नोटिस में आगे लिखा गया था कि जिन व्यक्तियों के पास बिल्डिंग के उपयोग की अनुमति नहीं है या फायर एनओसी नहीं है, वे इसके लिए आवेदन कर सकते हैं, ऐसा नहीं करने पर उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।

    याचिकाकर्ताओं के ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने पीठ को बताया कि इससे पहले कि याचिकाकर्ता स्थिति का आकलन कर पाते अपनी संपत्ति से संबंधित सभी कागजातों को समेट पाते, सहायता और मार्गदर्शन मांगते उन सभी को फरवरी और मार्च 2021 के महीने में समान नोटिस दिए गए। नोटिस में याचिकाकर्ताओं से अपेक्षित अनुमतियां प्रस्तुत करने का आह्वान किया गया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें धमकी दी गई है कि उनके अस्पतालों को 3 दिनों के भीतर सील कर दिया जाएगा।

    अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने निवेदन करते हुए कहा कि इस मामले में यौर लॉर्डशिप की करुणा और न्यायिक सुझाव की आवश्यकता है।

    न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यम ने कहा कि,

    "अस्पताल अब हम से दया की उम्मीद कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि वे मरीजों को डिस्चार्ज करते समय भी ऐसे ही दया दिखाएंगे।"

    एडवोकेट मनिंदर सिंह ने कहा कि,

    "मैं केवल यौर लॉर्डशिप के सामने झुक रहा हूं। यही भावना है। मैं इस न्यायालय के समक्ष मामलों में देख रहा हूं कि हर कोई COVID-19 का लाभ उठाना चाहता है। लेकिन इस मामले में यौर लॉर्डशिप अस्पतालों को इसमें न देखा जाए क्योंकि जिन लोगों को पहले ही भर्ती कराया गया है और भगवान न करे अगर तीसरी लहर आती तो उन्हें भी भर्ती करने की आवश्यकता होगी। हमने दिल्ली में बेड को लेकर होना वाले संघर्ष को देखा है, लेकिन कोई सहायता नहीं कर पाया। दिल्ली का एक अनुमान है कि अगर तीसरी लहर आती है तो यह हर दिन 37,000 COVID19 पॉजिटिव मामले आएंगे।"

    एसजी ने कोर्ट से कहा कि कानून के नियमों का पालन होना चाहिए और सभी अस्पतालों को अनुमति लेनी चाहिए। लेकिन इस समय सैकड़ों और हजारों बेडों को समाप्त करना खतरनाक होगा। अभी बेड की संख्या से समझौता नहीं किया जा सकता है।

    एसजी ने कहा कि अदालत इस मामले की जांच कर सकती है, लेकिन एक उपयुक्त अंतरिम आदेश पारित कर सकती है। इस बीच, कुछ काम किया जा सकता है।

    जस्टिस गुप्ता ने कहा कि जहां छोटे नर्सिंग होम की बेड क्षमता केवल 10, 20 या 30 है, वहीं बड़े अस्पतालों में 100 बेड हैं और इसलिए अलग-अलग मापदंड लागू करने होंगे और बड़े अस्पतालों के लिए और सख्त शर्तें होनी चाहिए।

    न्यायाधीश ने आगे कहा कि,

    "हम बिना परमिट के नर्सिंग होम और अस्पतालों को चलाने की अनुमति नहीं दे सकते।

    एसजी ने जवाब दिया कि,

    "निश्चित रूप से कुछ सीमांकन किया जाना आवश्यक है, लेकिन इस समय किसी तरह से सार्वजनिक हित या रोगी के हित के बारे में सोचना होगा।"

    बेंच ने पूछा,

    "आप कितना समय चाहते हैं?"

    एसजी ने जवाब दिया कि,

    "एक महीना में हम इस पर काम कर सकते हैं।"

    न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि,

    "भवन प्रमाण पत्र अग्नि सुरक्षा प्रमाण पत्र पर निर्भर है, दोनों को प्राप्त करना होगा। यह अत्याचार है कि लोग आग के कारण अस्पतालों में मर रहे हैं।"

    एसजी ने प्रस्तुत किया कि,

    "मैं जो कठिनाई देख रहा हूं, मान लीजिए 5 मंजिला इमारत में 1 मंजिल पर तीन या चार बेड वाला एक छोटा नर्सिंग होम है। लेकिन भवन की अनुमति इकाई-वार नहीं है, यह समग्र रूप से भवन और भवन के लिए है, भवन उपयोग की अनुमति नहीं मिलने के पर समस्याएं हो सकती हैं।"

    न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि,

    "इस स्थिति में नर्सिंग होम को स्थानांतरित कर देना चाहिए। आपके पास ऐसे भवन में नर्सिंग होम नहीं हो सकता है, जिसके पास भवन उपयोग की अनुमति नहीं है।"

    एसजी ने कहा कि,

    "यौर लॉर्डशिप आप सही हैं। मुझे कुछ व्यावहारिक स्थिति के साथ आने दो ताकि कानून का पालन किया जा सके और वर्तमान आपात स्थिति प्रभावित न हो।"

    पीठ ने एसजी के इस अनुरोध को दर्ज किया कि परिसर को सील करने से जनहित में काम नहीं होगा और एसजी राज्य के लिए नोटिस स्वीकार करता है और अहमदाबाद शहर के चिकित्सा पेशेवरों के साथ बातचीत करके समस्या का समाधान खोजने के लिए कुछ समय मांग रहा है।

    पीठ ने इसके अलावा कहा कि याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अग्निशमन विभाग से बिल्डिंग के उपयोग के लिए प्रमाण पत्र और फायर नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट आवश्यक अनुपालन जल्द से जल्द किया जाए।

    पीठ ने शुरू में निर्देश दिया कि इस बीच याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। इसके बाद एसजी ने पीठ से प्रार्थना की कि इस आदेश में संशोधन करके न केवल याचिकाकर्ताओं बल्कि किसी के भी खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया जाए।

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