"प्रथम दृष्टया राजद्रोह का मामला नहीं बनता", छात्रों के प्ले पर दर्ज केस में कोर्ट ने बीदर स्कूल के प्रबंधक को दी अग्रिम जमानत
LiveLaw News Network
5 March 2020 11:40 AM IST
सीएए-एनपीआर के खिलाफ किए गए एक स्कूली प्ले पर दर्ज कथित राजद्रोह के मामले में कर्नाटक के बीदर की सेशन कोर्ट ने मंगलवार को शाहीन प्राथमिक और उच्च विद्यालय के प्रबंधक अब्दुल कादिर को अग्रिम जमानत दे दी। अब्दुल कादिर अल्लामा इकबाल एजुकेशन सोसाइटी के अध्यक्ष और शाहीन ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के संस्थापक भी हैं।
सत्र न्यायाधीश मनगोली प्रेमवथी ने कादिर की तरफ से दायर अर्जी को स्वीकार करते हुए दो लाख रुपये के निजी मुचलके व इतनी ही राशि के तीन जमानती पेश करने की शर्त पर अग्रिम ज़मानत का आदेश दिया।
अभियोजन पक्ष द्वारा आरोपी के खिलाफ राजद्रोह के आरोप में रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री पर टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा कि
''रिकॉर्ड से ऐसा कुछ पता नहीं चलता है कि प्ले किए जाने के दौरान या जिस समय नाटक चल रहा था, उस समय अभियुक्त/याचिकाकर्ता वहां पर उपस्थित था। नाटक से समाज में किसी भी तरह की वैमनस्य पैदा नहीं हुआ है। सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मेरी राय है कि आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) के तहत आने वाली सामग्री की इस मामले में प्रथम दृष्टया कमी है।''
भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत राजद्रोह के अपराध का मामला एक शिकायत के आधार पर दर्ज किया गया था, जिसमें कहा गया था कि नाटक में एक छात्रा ने प्रधानमंत्री के खिलाफ अपमानजनक संवादों का इस्तेमाल किया था।
इस पर, अदालत ने कहा कि
''लेकिन संवादों को अगर एक साथ पूरा पढ़ा जाए, तो कहीं भी वे सरकार के खिलाफ देशद्रोह नहीं कर रहे हैं और आईपीसी की धारा 124 ए के तहत जैसी सामग्री होनी चाहिए, प्रथम दृष्टया वैसा मामला नहीं बनता है। बच्चों ने जो व्यक्त किया है, वो यह है कि यदि वे दस्तावेज पेश नहीं कर पाते हैं तो उन्हें देश छोड़ना होगा। इसके अलावा, यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि उसने देशद्रोह का अपराध किया है। मेरे विचार में यह संवाद, सरकार के प्रति घृणा या असंतोष नहीं है।''
कोर्ट ने यह भी कहा कि
''पूरे राष्ट्र में यह पाया गया है कि सीएए और एनआरसी के खिलाफ रैलियां और विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और एक नागरिक के रूप में हर किसी को सरकार के उपायों के प्रति अस्वीकृति व्यक्त करने का अधिकार मिला है, ताकि कानूनी तरीकों से उनमें परिवर्तन प्राप्त किया जा सके।
ये संवाद स्कूल में एक नाटक को आयोजित करने के दौरान प्रयोग किए गए थे। उक्त नाटक का मंचन 21 जनवरी को किया गया, लेकिन जानकारी 26 जनवरी को दी गई। अगर यह सब फेसबुक पर अपलोड नहीं किया जाता तो जनता को तो उस नाटक के संवाद के बारे में पता भी नहीं चलता।''
आईपीसी की धारा 153 ए के तहत उपद्रव या असामंजस्य पैदा करने के अपराध के संबंध में अदालत ने कहा कि
''नाटक में किसी अन्य समुदाय का कोई संदर्भ नहीं है। लेकिन सभी कलाकारों ने कहा है कि अगर वे प्रस्तावित सीएए,एनआरसी अधिनियमों के तहत आवश्यक कागजात पेश नहीं करते हैं तो मुसलमानों को देश छोड़ना होगा।'' जब पूरे नाटक में कोई अन्य धर्म नहीं है, तो दो धर्मों के बीच वैमनस्य या असामंजस्य पैदा करने का कोई सवाल ही नहीं है जो कि दंडनीय अपराध की मुख्य आवश्यकता है।''
न्यायालय ने यह भी कहा कि ''शाहीन शैक्षिक संस्थान छात्रों को गुणात्मक शिक्षा प्रदान कर रहा है और संस्थान को शिक्षा के क्षेत्र में उसकी उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार भी मिले हैं।''
26 जनवरी को, एक सामाजिक कार्यकर्ता नीलेश रक्षयला ने पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें कहा गया था कि स्कूल प्रबंधन ने स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का इस्तेमाल नाटक करने और सीएए और एनआरसी के खिलाफ जनता को गलत संदेश देने के लिए किया था।
केस दर्ज करने के बाद, पुलिस ने नाटक करने वाले बच्चों और इसे देखने वालों के बयान दर्ज किए। स्कूल की हेड मिस्ट्रेस और एक छात्र की सिंगल मदर को गिरफ्तार किया गया था। बाद में,हिरासत में 16 दिन बिताने के बाद उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था।
शिक्षा के क्षेत्र में अपनी सेवाओं के लिए कर्नाटक के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, 'कन्नड़ राज्योत्सव' पुरस्कार को प्राप्त करने वाले कादिर ने यह कहते हुए अदालत का रुख किया था कि उनका नाम एफआईआर में नहीं है।
पुलिस ने इस पर आपत्ति करते हुए यह बयान दायर किया था कि ''अभियुक्त आर्थिक स्थिति अच्छी है, इसलिए वह अपनी शक्ति का उपयोग करके गवाहों को धमकियां दे सकता है और जांच में बाधा डाल सकता है। कथित तौर पर अपराध गंभीर प्रकृति का है और राष्ट्र के खिलाफ है। इसलिए वह जमानत का हकदार नहीं है।''
अदालत ने कादिर को निर्देश दिया है कि वह अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने तक सप्ताह में एक बार पुलिस स्टेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराए और अपना पासपोर्ट अदालत में जमा करे।
एक जनहित याचिका कर्नाटक हाईकोर्ट में लंबित है, जिसमें पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है। पुलिस कर्मियों पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने किशोर न्याय अधिनियम या जेजे एक्ट के तहत प्रक्रिया का उल्लंघन करके इस मामले में छात्रों से कथित रूप से पूछताछ की थी।