यह नहीं कहा जा सकता कि ऊंचे पदों पर बैठे लोगों ने जो निर्णय लिए हैं, वे सही हैं : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
13 Feb 2020 3:45 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि ऊंचे पदों पर बैठे लोग सही निर्णय लेते हैं।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने मेजर जेनरल के पद पर प्रोमोशन के लिए सूची में नहीं शामिल किए जाने को लेकर एक ब्रिगेडियर की याचिका पर यह बात कही।
भारत संघ की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वक़ील आर बालासुब्रमनियन ने यह मुद्दा उठाया कि चयन बोर्ड में सेना के वरिष्ठ अधिकारी होते हैं और प्रोमोशन के बारे में उन्होंने जो निर्णय लिया है उस पर भरोसा किया जाना चाहिए। यह कहा गया कि चयन बोर्ड में शामिल वरिष्ठ अधिकारियों ने ब्रिगेडियर के प्रोफ़ाइल पर ग़ौर किया और पाया कि उन्हें प्रोमोशन के लिए बनाई गई सूची में शामिल नहीं किया जा सकता।
इस संदर्भ में पीठ ने कहा,
"इस बात का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि उच्च पदों पर रहने वाले व्यक्तियों द्वारा लिया गया निर्णय मान्य है। अधिकारियों में निहित सभी अधिकारों को संविधान द्वारा निर्धारित सिद्धांतों और अन्य विधियों या नियमों/विनियमों के अनुसार पालन किया जाना है। किसी निर्णय की न्यायिक जांच निर्णय लेने वाले के रैंक या पद पर निर्भर नहीं करती। न्यायालय निर्णय की वैधता और औचित्य से संबंधित है और निर्णय लेने वाले के पद से कोई फर्क नहीं पड़ता है।"
पीठ ने इस बारे में लोर्ड ऐक्टॉन (बिशप मैंडेल को अपने पत्र से) को भी उद्धृत किया :
"यह अनुमान लगाते हुए कि शक्तिशाली लोग कोई ग़लती नहीं कर सकते, मैं आपके इस नियम को स्वीकार नहीं कर सकता कि हम आम लोगों के बारे में जिस तरह से फ़ैसला करते हैं, वैसे पोप और राजा के साथ नहीं कर सकते। यदि कोई अनुमान है तो यह ताक़तवर लोगों के ख़िलाफ़ है और यह कि ताक़त के बढ़ने के साथ ही बढ़ता है।"
मामले के बारे में तथ्यों पर ग़ौर करते हुए अदालत ने कहा कि ब्रिगेडियर को प्रोमोशन की सूची में नहीं रखना प्रोमोशन की नीति के ख़िलाफ़ है।
पीठ ने कहा,
"संविधान का अनुच्छेद 16 प्रोमोशन का अधिकार देता है। प्रोमोशन का कोई अधिकार नहीं है लेकिन अनुच्छेद 16 जो अधिकार देता है उस पर उचित तरीक़े से उन नियमों के अनुरूप ग़ौर किया जाना चाहिए जो प्रोमोशन से संबंधित है। प्रोमोशन संबंधी नियम/क़ानूनों या नीतियों का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 16 का उल्लंघन माना जाएगा।"
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