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सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया, कोर्ट के कृत्यों के कारण किसी भी पक्ष को पीड़ा नहीं होनी चाहिए

LiveLaw News Network
29 Nov 2019 6:48 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया, कोर्ट के कृत्यों के कारण किसी भी पक्ष को पीड़ा नहीं होनी चाहिए
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सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ओडिशा फॉरेस्ट डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा दायर एक अपील पर विचार किया।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कानून की उक्‍ति actus curiae neminem gravabit (एक्टस क्यूरि नीमिन ग्रेवबिट) को दोह दोहराया, जिसका अर्थ ये है कि कोर्ट के कृत्य के कारण किसी भी पक्ष को नुकसान नहीं होना चाहिए।

जस्टिस आर भानुमती, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने ओडिशा फॉरेस्ट डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा दायर एक अपील पर विचार किया।

मामला निगम की ओर से जारी इ-टेंडर अधिसूचन से संबद्घ था, जिसमें 2017 में फल केलू पत्ते (केएल) की फसल की अग्रिम बिक्री के लिए इच्छुक खरीदारों से ऑनलाइन प्रस्तावों के आवेदन मांगे गए थे। मैसर्स अनुपम ट्रेडर्स की बोली सफल रही थी और समझौते के अनुसार उन्हें एक विशेष दिन से पहले कुछ सिक्योरिटी ड‌िपॉजिट्स जमा करने थे। हालांकि उन्होंने तारीख बढ़ाने की मांग की, जिसे निगम ने अनुमति नहीं दी। ओर समझौते मैसर्स अनुमप ट्रेडर्स की लागत और जोखिम पर रद्द कर दिया गया। अनुपम ट्रेडर्स ने निगम के फैसले के विरोध में हाईकोर्ट के समक्ष याचिक दायर की, जिसने एक अंतरिम आदेश जारी कर एक सप्ताह के भीतर उन्हें बीस लाख रुपए की राशि जमा करने का निर्देश दिया।

बाद में, याचिका वापस ले ली गई और निगम को अनुपम ट्रेडर्स द्वारा जमा की गई राशि वापस करने का निर्देश दिया गया। निगम ने उस निर्देश के विरोध में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की।

न्यायालय ने उल्लेख किया, किसी भी सूरत में नुकसान का निर्धारण करने का अधिकार होगा और कानून के अनुसार उसी को री-टेंडर के जरिए दोबारा प्राप्त करना, जो अनुपम ट्रेडर्स की '…. लागत और जोखिम' के रूप में था, जैस टेंडर रद्द करने की सूचना में कहा गया था।

"उस परिस्थिति में, जब यह प्रथम दृष्टया संकेत दिया गया था कि निजी प्रतिवादियों के आग्रह पर विलंब के कारण केंदू पत्तों का मूल्य कम हो गया, जिससे नुकसान हुआ, निजी उत्तरदाताओं द्वारा शुरू की गई कानूनी कार्यवाही के मद्देनजर, न्यायालय को कानून की कहावत 'actus curiae neminem gravabit' को ध्यान में रखना होगा, जिसका अर्थ ये है कि किसी भी पक्ष को कोर्ट के नियमों के कारण पीड़ित नहीं होना चाहिए। ऐसे हालात में , चूंकि अंतरिम आदेश प्रतिवादी के आग्रह पर था, इसलिए अपीलकर्ता को हमारे विचार में राशि को बनाए रखने और निजी प्रतिवादियों को अवसर देकर प्रक्रिया को पूरा करने की अनुमति दी जानी चाहिए।"

मैसर्स आत्मा राम प्रॉपर्टीज (पी) लिमिटेड बनाम मैसर्स फेडरल मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड की टिप्‍पणियों का सदंर्भ देते हुए बेंच ने कहाः

"यद्यपि उक्त ‌अवलोकन आदेश 41 नियम 5 सीपीसी के तहत विचार किए गए अंतरिम आदेश के संदर्भ में किया गया था, ये एक रिट कार्यवाही में उतना ही उपयुक्त होगा, न केवल अंतरिम प्रार्थना बल्कि रिट याचिका पर सीपीसी के आदेश 41 के साथ धारा 96 के तहत वैधानिक अपील के विपरीत विवेकाधीन अधिकार क्षेत्र के रूप में विचार किया जाएगा। ऐसी परिस्थिति में, हालांकि यह आवश्यक नहीं है कि अंतरिम आदेश देने के लिए हर मामले में एक शर्त लगाई जाए, अगर किसी दिए गए मामले में न्यायालय ने शर्त लगाई है तो उसे उद्देश्यपूर्ण माना जाना चाहिए न कि कोरी औपचारिकता।"

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