'अदालत में अभद्र व्यवहार से किसी वकील को फायदा नहीं हुआ, इससे वह वादी का मामला खराब ही करता है': हाईकोर्ट में दुर्व्यवहार करने वाले वकील से सुप्रीम कोर्ट ने कहा
LiveLaw News Network
13 Jan 2022 6:53 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने एक वकील की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कोर्ट में अभद्र व्यवहार करने से किसी वकील को फायदा नहीं होता बल्कि इससे वादी का मामला खराब हो सकता है।
वकील के खिलाफ कोर्ट रूम में दुर्व्यवहार के लिए हाईकोर्ट द्वारा अवमानना कार्यवाही शुरू की गई थी, जिसके खिलाफ वकील ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए देखा कि अदालतों में न्याय प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए बार और बेंच के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध अनिवार्य हैं।
खंडपीठ ने कहा कि अदालत में अनियंत्रित व्यवहार से किसी वकील लाभ नहीं होता है, इससे कोर्ट रूम में माहौल खराब होता है और अंततः यह वादी के मामले को खराब कर सकता है, जिसे बिना किसी गलती के इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने पहले वकील के व्यवहार के खिलाफ कड़ी टिप्पणी की लेकिन बाद में उन्हें बिना शर्त माफी मांगने की अनुमति दी।
पीठ ने कहा,
"अदालतों में न्याय के प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए बार और बेंच के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध अनिवार्य है और यह जरूरी है। कोर्ट रूम में अनियंत्रित व्यवहार से कोई वकील लाभान्वित नहीं होता है। अंततः यह अदालत में माहौल खराब करता है। अंततः वादी के मामले को खराब कर सकता है और वादी को उसकी बिना किसी गलती के इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।"
वकील ने तब बिना शर्त माफी मांगी और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक हलफनामा दायर किया कि भविष्य में ऐसा कोई अप्रिय कार्य नहीं होगा।
बेंच ने देखा कि याचिकाकर्ता उसके द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर किए गए और साथ ही उच्च न्यायालय के समक्ष दायर किए गए अपने हलफनामा का पालन करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि भविष्य में ऐसी कोई भी अप्रिय घटना फिर से न हो।
याचिकाकर्ता द्वारा माफी मांगे जाने के बाद अदालत ने उन्हें हाईकोर्ट के न्यायाधीश के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया, जिन्होंने आदेश पारित किया था।
अदालत ने हाईकोर्ट जज से याचिकाकर्ता के बिना शर्त माफी मांगने के प्रस्ताव पर विचार करने का अनुरोध किया।
पीठ ने कहा,
"हमें यकीन है कि विद्वान न्यायाधीश बार और बेंच के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिए कृपा दिखाएंगे।"
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता एकल न्यायाधीश के समक्ष पेश हुआ था जिन्होंने आक्षेपित आदेश पारित किया। अदालत ने आगे देखा कि एकल न्यायाधीश ने 'अनुग्रह दिखाया है' और याचिकाकर्ता की बिना शर्त माफी स्वीकार कर ली और अपने पहले के आदेश दिनांक 22.08.2019 को वापस ले लिया।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कार्यवाही का निपटारा किया गया।
वर्तमान मामले में उत्तराखंड के उच्च न्यायालय ने 22 अगस्त 2019 को एक आदेश पारित किया था, जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने, न्यायालय में दुर्व्यवहार करने के लिए मामले को बार काउंसिल ऑफ उत्तराखंड को भेजा गया था।
बेंच ने बार काउंसिल को वकील के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने और उसके बाद की गई कार्रवाई पर कोर्ट को जवाब देने का निर्देश दिया था।
इसके बाद वकील ने एक आवेदन दायर किया गया। इसमें यह प्रार्थना की गई कि वह अपना आदेश वापस ले ले। वकील के आवेदन का आधार यह था कि जिस तारीख को दुर्व्यवहार की घटना हुई थी, वह बीमार था। मामले पर बहस करने में असमर्थ था। इसीलिए उसने प्रस्तुत किया कि न्यायालय उचित आदेश पारित करे, क्योंकि न्यायालय उसकी सुनवाई नहीं कर रहा है।
हाईकोर्ट ने उसके स्पष्टीकरण को यह कहते हुए स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि उसी दिन वकील का एक और मामला था। इसे सूचीबद्ध किया गया था और उसने वही तर्क दिया था।
हाईकोर्ट ने नोट किया,
"यह बहुत ही असंभव है कि कुछ मामलों के बाद उसने ऐसा बयान दिया कि अदालत ऐसा आदेश नहीं दे सकती, क्योंकि अदालत उसे सुनने के लिए तैयार नहीं है।"
यह देखते हुए कि माफी खुद ही घटना की स्वीकृति के बराबर है, बेंच ने आगे कहा कि एक व्यक्ति जो अदालत की कार्यवाही में इस्तेमाल की गई भाषा से अदालत को अपमानित करने के लिए उद्यम कर सकता है वह अवमानना है।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए कारणों और स्पष्टीकरण को स्वीकार करने से इनकार करते हुए आदेश को वापस लेने के आग्रह को खारिज कर दिया। बेंच ने बार काउंसिल ऑफ उत्तराखंड को यह भी निर्देश जारी किया कि वह कोर्ट को रिपोर्ट करे कि उन्होंने आदेश के अनुसार क्या कार्रवाई की है।