निर्भया केस : केंद्र की याचिका पर आदेश पढ़ने के दौरान जस्टिस भानुमति हुईं बेहोश, मामला 20 फरवरी तक स्थगित
LiveLaw News Network
14 Feb 2020 10:41 PM IST
दिल्ली गैंगरेप और हत्या के मामले में मौत की सजा के दोषियों को अलग अलग फांसी देने की मांग वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच में जस्टिस आर बानुमथी, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एएस बोपन्ना शामिल थे। यह देखते हुए कि ट्रायल कोर्ट 17 फरवरी को डेथ वारंट की याचिका पर सुनवाई करेगी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की याचिका पर सुनवाई 20 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी।
इस मामले में सुनवाई के बाद आदेश सुनाने से पहले जस्टिस बानुमथी बेहोश हो गईं। इसमें शामिल वकीलों ने सुझाव दिया कि बेंच अपने चैंबर में जाकर आदेश पारित कर सकती है।
जब जस्टिस भानुमति कुछ सेकंड के लिए बेहोश हो गईं तो उनके साथी जज और अदालत के कर्मचारी उनके पास दौड़कर आए। फिर उन्होंने चेंबर में ले जाने में सहायता की। इस बीच न्यायमूर्ति बोपन्ना ने कहा कि वे बाद में आदेश प्रकाशित करेंगे।
इसके तुरंत बाद पता चला कि जस्टिस भानुमति अस्वस्थ थीं और उन्हें बुखार था। उन्हें व्हीलचेयर पर इलाज के लिए ले जाया गया और बाद में कहा गया कि अब उनकी हालत स्थिर है।
निर्भया मामले में केंद्र और दिल्ली सरकार की उस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने चारों दोषियों को जवाब देने के लिए एक और दिन का समय दे दिया था, जिसमें दोषियों को अलग- अलग फांसी देने का अनुरोध किया गया है। पीठ ने कहा था कि वो शुक्रवार को इस मामले में अंतिम सुनवाई करेगी।
इससे पहले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने चारों दोषियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। इसके साथ ही जस्टिस आर बानुमति, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस ए एस बोपन्ना की पीठ ने वरिष्ठ वकील अंजना प्रकाश को दोषी पवन की ओर से बहस करने के लिए एमिक्स क्यूरी के तौर पर नियुक्त किया है क्योंकि एपी सिंह अब पवन के वकील नहीं हैं।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट केंद्र और दिल्ली सरकार की उस याचिका पर जल्द सुनवाई के लिए तैयार हो गया था जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट ने दोषियों के अलग- अलग फांसी देने से इनकार कर दिया था। केंद्र और दिल्ली सरकार ने शाम को ही हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी थी।
दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने चार फरवरी अहम फैसला सुनाते हुए कहा था कि दोषियों को अलग- अलग फांसी नहीं जी जा सकती। हाईकोर्ट ने केंद्र की मांग ठुकराते हुए निर्देश दिया था कि दोषी अपने सारे विकल्प एक सप्ताह के भीतर आजमा लें। इसके बाद उनकी मौत की सजा के लिए कार्रवाई शुरू होगी। जस्टिस कैत ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट तक उनकी मौत की सजा एक आदेश से आई है, इसलिए हमारी राय में अलग- अलग- अलग फांसी नहीं हो सकती।
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