राष्ट्रपति संदर्भ में स्वदेशी व्याख्या अपनाई : सीजेआई बी.आर. गवई
Amir Ahmad
21 Nov 2025 2:01 PM IST

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बी.आर. गवई ने शुक्रवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राष्ट्रपति संदर्भ पर दिए गए अपने महत्वपूर्ण मत में पूरी तरह स्वदेशी व्याख्या का उपयोग किया और एक भी विदेशी निर्णय का सहारा नहीं लिया। यह टिप्पणी उन्होंने उस समय की जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जस्टिस गवई के चीफ जस्टिस बनने के बाद कोर्ट के फैसलों में भारतीयता की नई बयार बहने लगी है।
चीफ जस्टिस ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि गुरुवार को जारी किए गए निर्णय में अदालत ने केवल भारतीय न्यायशास्त्र पर भरोसा किया। उन्होंने कहा कि मत तैयार करते समय अमेरिकी या ब्रिटिश न्याय प्रणाली का कोई भी उदाहरण नहीं लिया गया, क्योंकि भारतीय संविधान की अपनी विशिष्ट व्याख्या और परंपरा है।
सॉलिसिटर जनरल ने भी सहमति जताते हुए कहा कि संविधान पीठ ने साफ तौर पर यह बताया कि भारत की संवैधानिक व्यवस्था विदेशी प्रणालियों से अलग है। इसलिए उसका समाधान भारतीय न्यायिक सिद्धांतों से ही निकलना चाहिए।
यह संवाद सुप्रीम कोर्ट की कोर्ट रूम नंबर एक में आयोजित औपचारिक विदाई सत्र के दौरान हुआ।
यह सीजेआई गवई का रिटायरमेंट से पहले अंतिम कार्य दिवस था और कोर्ट रूम वकीलों और सीनियर वकीलों से खचाखच भरा हुआ। कार्यवाही की शुरुआत अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी के संबोधन से हुई, जिन्होंने कहा कि गवई ने अपने नाम के अनुरूप न्यायपालिका की गरिमा को सदैव ऊंचा रखा।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उन्हें अत्यंत सरल, सहज और सभी को नाम से याद रखने वाले जज के रूप में याद किया। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकाश सिंह ने एक बार फिर जजों के रिटायरमेंट आयु बढ़ाने की मांग दोहराई। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को कभी एक विशिष्ट वर्ग का माना जाता है लेकिन गवई का न्यायपालिका के सर्वोच्च पद तक पहुंचना इस बात का प्रमाण है कि देश का हर नागरिक इस शिखर तक पहुंच सकता है।
अनेक सीनियर वकीलों ने गवई की सरलता, सौम्यता और उनके निर्णयों में संतुलन की भावना की प्रशंसा की। जस्टिस सूर्यकांत, जो अगले चीफ जस्टिस बनने वाले हैं, उन्होंने कहा कि जस्टिस गवई ने अपने कार्यकाल में जो उच्च मानक कायम किया है, उसे बनाए रखना उनके लिए बड़ी जिम्मेदारी होगी।
अपने भाषण में चीफ जस्टिस गवई भावुक दिखाई दिए। उन्होंने कहा कि वे 1986 में कानून के विद्यार्थी के रूप में अदालत आए थे और आज न्याय के विद्यार्थी के रूप में इस पद को छोड़ रहे हैं। उन्होंने हर सार्वजनिक पद को सत्ता नहीं बल्कि सेवा का अवसर बताया। उन्होंने कहा कि डॉ. भीमराव आम्बेडकर के विचार उनके जीवनभर की प्रेरणा रहे हैं और उन्होंने सदैव मौलिक अधिकारों तथा राज्य के नीति निदेशक तत्वों के बीच संतुलन साधने की कोशिश की।
उन्होंने पर्यावरण से जुड़े अपने पहले निर्णय का विशेष रूप से उल्लेख किया और कहा कि उन्हें यह संतोष है कि उन्होंने अनेक ऐसे मामलों का निस्तारण किया, जो उनके हृदय के निकट रहे। अंत में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को सामूहिकता की भावना से कार्य करने वाली संस्था बताया और कहा कि संविधान के 75 वर्षों के इस दौर में यदि उन्होंने सामाजिक और आर्थिक न्याय के उद्देश्यों में थोड़ा भी योगदान दिया तो यह उनके लिए गर्व की बात है।
चीफ जस्टिस ने अदालत बार और सभी सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए अपना विदाई संबोधन समाप्त किया।

