झुंझुनूं प्रशासन ने बँधुआ मज़दूरो को मुक्त कराकर छोड़ा सड़क पर, हाई कोर्ट जाएंगे बँधुआ मज़दूर

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5 May 2019 12:36 PM GMT

  • झुंझुनूं प्रशासन ने  बँधुआ मज़दूरो को मुक्त कराकर छोड़ा सड़क पर, हाई कोर्ट जाएंगे बँधुआ मज़दूर
    बँधुआ मज़दूर

    ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क (HRLN) और बाकी संस्थाएं आयी समर्थन में

    झुंझुनूं प्रशासन ने कल झुंझुनूं के तिगियास बस स्टैंड, पोस्ट मंड्रेला इलाके से 7 परिवारों के 25 बँधुआ मज़दूरों को, जिसमे महिलाएं बच्चे भी शामिल है बन्धुआगिरी से मुक्त कराया पर उन्हें रात अँधेरे में भट्टे से कुछ दूर बीच सड़क पर ही छोड़ दिया .

    दरअसल पिछले कुछ महीनों से झुंझनू के कुछ इलाकों में नागौर के कुछ मजदूरों से ईंट भट्टों में जमींदार मालिकों द्वारा जबरन काम करवाया जा रहा था. मेहनताना देने में आनाकानि करना, मार पीट करना , घर न जाने देना, बीमारी में भी जबरन काम करवाना आदि कई गैर मानवीय तरीकों को अपना कर मजदूरों का शोषण किया जा रहा था.

    झुंझनू प्रशासन के एक्शन बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत सरकार में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए नियमों का खुला उल्लंघन है. बंधुआ मुक्ति मोर्चा मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बंधुआ मजदूरी को अनुच्छेद २३ का हनन बताया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह भी निर्देशन दिए कि राज्य सरकारों और लोकल प्रशासन का कर्त्वय है कि वे माईन एक्ट, 1952 की धारा १३ के तहत हर डिस्ट्रिक्ट और सब डिवीज़न लेवल पर विजिलेंस समिति का गठन करें.

    बंधुआ मुक्ति मोर्चा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हर स्तर पर जिला कलेक्टर को आदेश दिए है कि वे अपने क्षेत्र में बंधुआ मजदूरों की पहचान करें और उनके पुनर्वास हेतु उचित कदम उठाये. सुप्रीम कोर्ट ने इस सम्बन्ध में यह भी निर्देश दिए थे कि इनपेक्टिंग अफसर का यह कर्त्वय है कि वह साप्ताहिक तौर पर औचक जांच पर जाकर यह सुनिश्चित करें कि श्रम कानून का मनमाना उल्लंघन का हो.

    पर झुंझनू में यह स्थिति लगभग ८ माह से बनी हुई थी और प्रशासन की ओर से किसी तरह का कोई कदम रेस्क्यू और पुर्नवास के लिए नहीं उठाया गया था. . अंततः मजदूरों ने दिल्ली स्थित नेशनल कंपेन कमेटी फ़ॉर ईरेडिकेशन ऑफ बोंडेड लेबर और कन्वेनर निर्मल गोराना से संपर्क कर सहयोग की मांग की.

    कमिटी ने निर्मल गोराना द्वारा ईमेल कर एक कंप्लेन झुंझुनू कलेक्टर, उप खंड अधिकारी चिड़ावा, पुलिस अधीक्षक झुंझुनू को भेजी। किन्तु प्रशासन का रवैया ढुलमुल ही रहा. निर्मल गोराना ने जब उप खंड अधिकारी को फ़ोन करके कार्यवाही करने की मांग की तब भी उप खंड अधिकारी ने चुनाव की आड़ लेते हुए उल्टा गोराना को ही कोर्ट जाने की सलाह दे दी.

    २ मई को कलक्टर को संपर्क करने पर उन्होंने तत्काल रेस्क्यू करने के आदेश जारी किये परन्तु रेस्क्यू की कार्यवाही भी नियमों के विरुद्ध हुई. कलेक्टर के आदेश पर पटवारी, और रेवेन्यु इंस्पेक्टर दोनों अकेले रेस्क्यू के लिए चले गए। दोनों रेस्क्यू टीम के साथियों ने बँधुआ मज़दूरी प्रथा निवारण कानून 1976 की धज्जियां उड़ाते हुए मज़दूरो से बयान तो नोट कर लिए किन्तु कोरे पेपर पर मज़दूरो से साइन करवा लिए और मालिक के ही लोडिंग ऑटो में बैठाकर मज़दूरो को भट्टे से कुछ दूरी पर सड़क के किनारे पटक दिया।

    मजदूरों का कहना है कि अगर कानून सम्मत तरीके से उनका बयान नहीं लिया गया तो वे हाई कोर्ट जायेंगे और ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क आदि के सहयोग से अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। नेशनल कंपेन कमेटी फ़ॉर ईरेडिकेशन ऑफ बोंडेड लेबर ने मांग की है कि प्रशासन को नीरजा चौधरी, बँधुआ मुक्ति मोर्च एवं PUDR के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के अनुसार तथा बँधुआ मज़दूरी कानून के मुताबित मज़दूरो को न्याय देना चाहिए।

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