ऐसी चीजें कभी नहीं देखीं: सुप्रीम कोर्ट ने आरोप पत्र दाखिल होने के बाद आरोपी के कहने पर जांच स्थानांतरित करने पर यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाई

Avanish Pathak

1 Oct 2022 3:20 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस पर आश्चर्य व्यक्त किया कि एक हत्या के मामले में आरोपी के कहने पर, चार्जशीट दायर होने के बाद, उत्तर प्रदेश के गृह सचिव कैसे आगे की जांच किसी अन्य एजेंसी को स्थानांतरित कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी व्यक्त की कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोप की गंभीरता पर ध्यान दिए बिना आरोपी को जमानत दे दी।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट की एकल पीठ के मार्च, 2022 के फैसले के खिलाफ मृतक की मां की एसएलपी पर सुनवाई कर रही थी।

    शुरुआत में जस्टिस शाह ने प्रतिवादी-अभियुक्त की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट से पूछा, "आरोपी के कहने पर, आरोप पत्र दायर होने के बाद, आगे की जांच एक अन्य एजेंसी (सीबी-सीआईडी) द्वारा किए जाने का निर्देश दिया गया है? मैंने अपने जीवन में ऐसा कभी नहीं देखा! आप अनुभवी क्रिमिनल लॉयर हैं- आप हमें बताएं कि क्या यह किया जा सकता है? यह शिकायतकर्ता के कहने पर, पीड़िता के कहने पर, अभियोजन पक्ष के कहने पर हो सकता है। लेकिन राज्य के गृह सचिव ने आरोपी के कहने पर ऐसा किया है!"

    जज ने आगे कहा, "आप मुख्य अपराधी हैं! एक बार आपकी 482 (संपूर्ण कार्यवाही और आरोप पत्र को रद्द करने के लिए सीआरपीसी याचिका) खारिज कर दी जाती है, आपकी एसएलपी (धारा 482 याचिका को खारिज करने के खिलाफ) खारिज कर दी जाती है, गैर-जमानती वारंट जारी किया जाता है, फिर भी सचिव आपकी सुनते हैं? आप एसएलपी के रद्द होन से कैसे बाहर निकल सकते हैं? आप सीबी-सीआईडी द्वारा आपको दोषमुक्त करते हुए दायर किए गए बाद के आरोप पत्र का लाभ या हानि नहीं उठा सकते हैं! हम राज्य के गृह सचिव से बंधे हुए नहीं हैं! हम जमानत रद्द कर रहे हैं!"

    हाईकोर्ट के आक्षेपित आदेश पर चर्चा करते हुए जस्टिस शाह ने कहा, "क्या यह तरीका है्र जिसमें हाईकोर्ट ने आरोप पत्र पर विचार किए बिना, आरोप की गंभीरता पर विचार किए बिना जमानत दे दी? केवल 'ओह, इन सब बातों पर विचार करते हुए आवेदक जमानत का हकदार है? तीसरे आरोपपत्र पर भी विचार नहीं किया गया है!"

    पीठ ने यूपी राज्य की ओर से पेश एएजी को भी सुना, जिन्होंने यह रिकॉर्ड कराया कि याचिकाकर्ता की मृत्यु हो गई है। पीठ ने यूपी राज्य को याचिकाकर्ता के रूप में स्थानांतरित करने की अनुमति दी और वर्तमान एसएलपी को राज्य द्वारा दायर किया गया माना, जो हाईकोर्ट द्वारा निजी प्रतिवादी / आरोपी को जमानत पर रिहा करने के फैसले और आदेश को चुनौती देता है।

    इसके बाद पीठ ने एसएलपी पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

    मामला

    जैसा कि हाईकोर्ट द्वारा दर्ज किया गया था, अश्विनी कुमार (सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आरोपी-प्रतिवादी) ने 482 सीआरपीसी आवेदन में प्रकरण की समस्त कार्यवाही को निरस्त करने के साथ-साथ दो द‌िसंबर 2016 को दायर आरोप पत्र को निरस्त करने की प्रार्थना की थी, हालांकि उक्त आवेदन को हाईकोर्ट ने 5 जुलाई 2017 को खारिज कर दिया।

    जिसके बाद, अश्विनी कुमार ने अपील के लिए विशेष अनुमति याचिका (सीआरएल) दायर की, जिसे 24.8.2018 को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को दी गई अंतरिम सुरक्षा को भी रद्द कर दी।

    24.8.2018 के आदेश के बाद, सीजेएम, बागपत ने 18.9.2018 को कुमार के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया। फिर, उनकी मां ने 23.1.2019 को राज्य के गृह सचिव को जांच सीबी-सीआईडी ​​को स्थानांतरित करने के लिए एक आवेदन दिया।

    13.2.2019 का आदेश सचिव (गृह), यूपी राज्य, लखनऊ द्वारा पारित किया गया था, जिसके तहत उन्होंने मामले की सीबी-सीआईडी ​​द्वारा धारा 302, 120-बी आईपीसी के तहत आगे की जांच का निर्देश दिया था।

    केस टाइटल: बोहट्टी देवी बनाम उत्तर प्रदेश और अन्य राज्य।

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