हत्या का ट्रायल - एक बार अभियोजन पक्ष ने "आखिरी बार देखे जाने के सिद्धांत" को स्थापित कर दिया तो आरोपी इसका स्पष्टीकरण देने को बाध्य है : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

20 Feb 2023 4:18 AM GMT

  • हत्या का ट्रायल - एक बार अभियोजन पक्ष ने आखिरी बार देखे जाने के सिद्धांत को स्थापित कर दिया तो आरोपी इसका स्पष्टीकरण देने को बाध्य है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में दिए गए एक फैसले में हत्या के मामलों में "आखिरी बार देखे जाने के सिद्धांत" के आवेदन पर उल्लेखनीय चर्चा हुई है। हत्या के मामले में एक अभियुक्त की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए, अदालत ने स्पष्ट किया कि एक बार अभियोजन पक्ष ने यह साबित कर दिया कि पीड़िता को आखिरी बार आरोपी के साथ देखा गया था, तो आरोपी को इसका स्पष्टीकरण देना होगा।

    जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की एक पीठ ने कहा,

    "एक बार अभियोजन पक्ष द्वारा "आखिरी बार साथ देखे जाने" का सिद्धांत स्थापित हो जाने के बाद, आरोपी से कुछ स्पष्टीकरण देने की उम्मीद की गई थी कि कब और किन परिस्थितियों में वो मृतक से अलग हुआ था।"

    यह पूरी तरह से परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित मामला था। रिकॉर्ड पर सबूत था कि आरोपी पीड़ित को शाम को उसके घर से बाहर ले गया था, अगले दिन सुबह उसका शव मिला।

    पीठ ने कहा,

    "मृतक प्रताप सिंह की मृत्यु 19 और 20 दिसंबर, 1995 की रात के दौरान हुई थी, और याचिकाकर्ता को आखिरी बार मृतक के साथ पिछली शाम को देखा गया था। इस प्रकार, यह अकेले याचिकाकर्ता था, जो यह जानता था कि 19 दिसंबर, 1995 की शाम के बाद क्या हुआ।"

    "यह सच है कि अभियुक्त के अपराध को साबित करने का भार हमेशा अभियोजन पर होता है, हालांकि साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के मद्देनज़र, जब कोई तथ्य किसी व्यक्ति के ज्ञान में होता है, तो उस तथ्य को साबित करने का भार उस पर होता है। बेशक, धारा 106 का निश्चित रूप से अभियुक्त के अपराध को साबित करने के लिए अभियोजन की ड्यूटी को राहत देने का इरादा नहीं है, फिर भी यह समान रूप से स्थापित कानूनी स्थिति भी है कि यदि अभियुक्त उन तथ्यों पर कोई प्रकाश नहीं डालता है जो उसकी विशेष जानकारी में हो, साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 को ध्यान में रखते हुए, अभियुक्त की ओर से ऐसी विफलता को अभियुक्त के विरुद्ध इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि यह उसके विरुद्ध साबित करने के लिए आवश्यक परिस्थितियों की श्रृंखला में एक अतिरिक्त कड़ी प्रदान कर सकता है। परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर मामले में, अभियुक्त द्वारा स्पष्टीकरण प्रस्तुत करना या प्रस्तुत न करना एक बहुत ही महत्वपूर्ण तथ्य होगा, जब अभियोजन पक्ष द्वारा प्रतिपादित "अंतिम बार एक साथ देखे जाने" का सिद्धांत उसके खिलाफ साबित हो गया था।"

    यदि अभियुक्त कोई स्पष्टीकरण नहीं देता है या गलत स्पष्टीकरण प्रस्तुत करता है, फरार हो जाता है, मकसद स्थापित हो जाता है और हथियार आदि की बरामदगी के रूप में कुछ अन्य सहायक सबूत परिस्थितियों की एक श्रृंखला स्थापित करते हैं, तो ऐसे सबूतों के आधार पर दोषसिद्धि की जा सकती है।

    केस : राम गोपाल पुत्र मंशाराम बनाम मध्य प्रदेश राज्य

    साइटेशन : 2023 लाइवलॉ (SC) 120

    याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट योगेश तिवारी, एओआर संजय के अग्रवाल, एडवोकेट नीमा, एडवोकेट विक्रांत सिंह बैस, एडवोकेट आमना दरख्शां; प्रतिवादी (ओं) के लिए एएजी डी एस परमार, एडवोकेट हरमीत सिंह रूपराह, एओआर सनी चौधरी, एडवोकेट रुशांत मल्होत्रा।

    भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 - लास्ट सीन थ्योरी - एक बार "आखिरी बार देखे जाने" का सिद्धांत अभियोजन पक्ष द्वारा स्थापित हो जाने के बाद, अभियुक्त से कुछ स्पष्टीकरण देने की अपेक्षा की गई है कि कब और किन परिस्थितियों में वह मृतक से अलग हुआ था- यदि अभियुक्त कोई स्पष्टीकरण नहीं देता है या गलत स्पष्टीकरण प्रस्तुत करता है, फरार हो जाता है, मकसद स्थापित हो जाता है और हथियार आदि की बरामदगी के रूप में कुछ अन्य सहायक सबूत परिस्थितियों की एक श्रृंखला स्थापित करते हैं, तो ऐसे सबूतों के आधार पर दोषसिद्धि की जा सकती है- पैरा 6 से 9

    भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 - धारा 106 - यह सत्य है कि अभियुक्त के दोष को सिद्ध करने का भार सदैव अभियोजन पर होता है, तथापि साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के दृष्टिगत जब कोई तथ्य किसी व्यक्ति के ज्ञान में हो, तथ्य को साबित करने का भार उसी पर है - पैरा 6

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