मप्र के एडीजे ने एचजेएस भर्ती नियम, 2017 के तहत न्यायिक अधिकारियों की वरीयता के निर्धारण के लिए 100 बिंदु वाली रोस्टर प्रणाली को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी

LiveLaw News Network

5 Sep 2020 9:19 AM GMT

  • मप्र के एडीजे ने एचजेएस भर्ती नियम, 2017 के तहत न्यायिक अधिकारियों की वरीयता के निर्धारण के लिए 100 बिंदु वाली रोस्टर प्रणाली को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी

    मध्य प्रदेश के एक अतिरिक्त जिला जज ने मध्य प्रदेश उच्चतर न्यायिक सेवा (भर्त्ती एवं सेवा की शर्तें) नियमावली, 2017 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

    याचिकाकर्ता खास तौर पर नियम 11 से प्रभावित हैं, जिसमें न्यायिक अधिकारियों की वरीयता के निर्धारण के लिए 100 बिंदु वाले रोस्टर को उत्तरव्यापी प्रभाव से शामिल किया गया है।

    वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय के जरिये दायर याचिका में कहा गया है कि वास्तव में संबंधित प्रावधान रिक्तियों पर आधारित रोस्टर प्रणाली को लागू करता है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 'अखिल भारत न्यायाधीश संघ एवं अन्य बनाम भारत सरकार एवं अन्य (2002) 4 एससीसी 247' मामले में 40 बिंदुओं वाली कैडर आधारित रोस्टर प्रणाली का वर्णन किया है।

    याचिका में कहा गया है कि 40 बिंदुओं वाली कैडर आधारित रोस्टर प्रणाली बाध्यकारी दिशानिर्देशों का हिस्सा थी, लेकिन इसे अधिकारियों ने शामिल नहीं किया है।

    याचिकाकर्ता 2007 में उच्चतर न्यायिक सेवाओं में शामिल हुए थे। उन्होंने दलील दी है कि कई बार आग्रह किये जाने और अभिवेदन दिये जाने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट के बाध्यकारी दिशानिर्देशों पर अधिकारियों ने 15 साल तक अमल नहीं किया।

    याचिका में कहा गया है, "रोस्टर से संबंधित नियमों के समावेशन में जान बूझकर एवं गैर न्यायोचित किये गये विलंब के कारण याचिकाकर्ता एवं उन व्यक्तियों के बहुमूल्य अधिकारों का हनन हुआ है, जो बार से सीधे जिला जज नियुक्त किये गये थे।"

    याचिका में आगे कहा गया है कि रोस्टर प्रणाली के समावेशन को लेकर 2017 के नियमों को पूर्ववर्ती मध्य प्रदेश उच्चतर न्यायिक सेवा नियम 1994 के स्थान पर लागू किया गया था। हालांकि, यह 13 मार्च 2018 को अर्थात उत्तरव्यापी प्रभाव से लागू हुआ है। इसलिए 2007 में न्यायिक सेवा में शामिल हुए याचिकाकर्ता को कोई लाभ नहीं दिया जा सकता।

    गौरतलब है कि याचिकाकर्ता ने इससे पहले रोस्टर प्रणाली के इस्तेमाल को लेकर 'अखिल भारत न्यायाधीश संघ' मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये दिशानिर्देशों के अनुसार वरीयता निर्धारण करने के लिए एक 'विरोध अर्जी' (प्रोटेस्ट पिटीशन) दाखिल की थी, लेकिन यह अर्जी 12 साल तक लंबित रही थी।

    हालांकि 2017 में संबंधित नियमों के लागू होने के साथ ही उनकी याचिका खारिज हो गयी थी। इस निर्णय को याचिकाकर्ता ने मनमाना करार दिया है और कहा है कि नये नियमों के उत्तरप्रभावी होने के कारण याचिकाकर्ता पर ये लागू नहीं हैं।

    याचिका डाउनलोड करें



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