मोटर दुर्घटना दावा - वास्तविक आय के लिए कोई सबूत नहीं होने पर मुआवजे का निर्धारण करने के लिए कमाई की संभावना पर विचार किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

11 Dec 2021 1:32 PM GMT

  • मोटर दुर्घटना दावा - वास्तविक आय के लिए कोई सबूत नहीं होने पर मुआवजे का निर्धारण करने के लिए कमाई की संभावना पर विचार किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि भले ही वास्तविक आय का कोई सबूत रिकॉर्ड पर नहीं है, मोटर दुर्घटना मामले में बीमा दावों पर विचार करते समय मृत व्यक्ति की कमाई की क्षमता पर विचार किया जा सकता है।

    मृतक कंप्यूटर इंजीनियर था। यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर सबूत थे कि मृतक 10,000 रुपये प्रति माह कमा रहा था, जबकि अतिरिक्त 10,000 रुपये प्रति माह की आय दिखाने के लिए कोई दस्तावेजी सबूत नहीं था, जिसका दावा अपीलकर्ताओं ने किया था।

    मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण, रांची ने अपने फैसले में मृतक की "भविष्य में आय की हानि" का आकलन 20,000 रुपये प्रति माह पर किया और उस आधार पर 30 लाख रुपये के मुआवजे के आंकड़े पर पहुंचे।

    झारखंड हाईकोर्ट ने अपने आक्षेपित फैसले में मुआवजा की राश‌ि 30 लाख रुपये से कम कर 15 लाख रुपये कर दी थी।

    आक्षेपित निर्णय में कहा गया था-

    "इस न्यायालय की राय है कि आय के संबंध में बिना किसी सबूत के और केवल मौखिक विवरण के आधार पर विद्वान न्यायाधिकरण द्वारा 20,000 रुपये की आय पर विचार किया गया था, जो उचित नहीं है, हालांकि वहां बीमा कंपनी द्वारा कोई विपरीत साक्ष्य नहीं पेश किया गया था और न ही बीमा कंपनी द्वारा जिरह की गई है, लेकिन विद्वान न्यायाधिकरण को मुआवजा देने में बहुत ही उचित होना चाहिए था क्योंकि यह बोनान्ज़ा नहीं हो सकता बल्कि समान और उचित मुआवजा होना चाहिए। (पैरा 28)

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, प्रतिवादी-बीमा कंपनी ने तर्क दिया कि रिकॉर्ड पर कोई दस्तावेजी सबूत पेश नहीं किया गया था, जो यह दर्शाता हो कि मृत्यु के समय मृतक की वास्तविक आय 20,000 रुपये प्रति माह थी।

    इस आलोक में आदेश में कहा गया है-

    "यह मानते हुए कि कोई सहायक साक्ष्य नहीं रखा गया था, मामले में भी कमाई की क्षमता को देखते हुए, चूंकि मृतक कंप्यूटर इंजीनियर था, उसकी आय का आकलन कम से कम 20,000 रुपये प्रति माह सुरक्षित रूप से किया जा सकता है।"

    इस तर्क के आधार पर कोर्ट ने आक्षेपित आदेश को को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि "हाईकोर्ट ने मुआवजे को कम करने में गंभीर त्रुटि की है।"

    केस शीर्षक: बसंत देवी बनाम मंडल प्रबंधक, द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड

    कोरम: जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस जस्टिस बीवी नागरत्ना

    काउंसल: अपीलकर्ताओं के लिए श्री कौशिक लाइक, प्रतिवादियों के लिए श्री जेपीएन शाही।

    सिटेशन : एलएल 2021 एससी 728

    आदेश पढ़ने / डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें

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