'घर वापसी के लिए प्रवासी मज़दूरों से वसूला जा रहा है किराया' प्रवासी मज़दूरों के मामले में याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट को बताया
LiveLaw News Network
5 May 2020 7:53 AM IST
घर वापसी के लिए प्रवासी मज़दूरों से वसूले जा रहे शुल्क का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक अनुपूरक हलनामा दायर कर उठाया गया है। यह अनुपूरक हलफनामा उस याचिका के संबंध में दायर किया गया है, जिसमें मांग की गई थी कि देश भर के प्रवासी श्रमिकों को उनके गृहनगर और गांवों में लौटने की अनुमति देने के लिए निर्देश जारी किए जाएं। वहीं उनकी सुरक्षित यात्रा की व्यवस्था करने के लिए आवश्यक परिवहन का प्रबंध किया जाए।
इस मामले में याचिकाकर्ता आईआईएम, अहमदाबाद के पूर्व महानिदेशक जगदीप एस. छोकर व अधिवक्ता गौरव जैन हैं। उनकी तरफ से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने यह शपथ पत्र दायर किया है, जिसमें कहा गया है कि राज्यों को फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों से किराया नहीं वसूलना चाहिए क्योंकि उनके पास अपनी यात्रा के लिए न तो कोई वित्तीय सहायता है और न ही कोई आय का साधन।
29 अप्रैल को गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी किया था जिसमें विभिन्न स्थानों पर फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों, तीर्थयात्रियों, पर्यटकों और अन्य व्यक्तियों को उनके निवास/गृह नगरों में वापस जाने की अनुमति दी गई थी। इस आदेश में यह भी कहा गया था कि बसें/ सड़क परिवहन का साधन होंगे। वहीं 1 मई को जारी एक पीआईबी अधिसूचना के आधार पर भारतीय रेलवे ने इन लोगों को उनके घरों तक वापस पहुंचाने के लिए ट्रेन शुरू करने की बात कही थी।
शपथ पत्र में स्ट्रैंड्र्ड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया है कि लगभग 50 प्रतिशत प्रवासी श्रमिक ऐसे हैं, जिनके पास एक दिन का राशन भी नहीं होता है। जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है, तब से यही स्थिति है।
'' जिन श्रमिकों से बात की गई, उनमें 5 में से 4 श्रमिक ऐसे थे, जिनकी सरकारी राशन तक पहुंच नहीं थी, जबकि 68 प्रतिशत को अभी भी पका हुआ भोजन नहीं मिल रहा है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि प्रवासियों के लिए कोई नकद राहत नहीं है। 64 प्रतिशत ऐसे थे, जिनके पास 100 रुपये भी नहीं थे। वहीं 97 प्रतिशत से अधिक को सरकार की ओर से कोई नकद राहत नहीं मिली है।''
प्रवासी श्रमिकों की यात्रा के लिए दोनों राज्यों से अनुमति लेने का मामला
एफिडेविट ने उस एडवाइजरी को खारिज कर दिया है, जिसमें प्रवासी श्रमिकों की यात्रा पर विचार करने या सलाह देने के लिए दोनों राज्यों को कहा गया था। कहा गया है कि एक प्रवासी श्रमिक का अपने मूल स्थान पर वापस जाने की मामला उन्हें वापस लेकर जाने वाले राज्य की इच्छा पर निर्भर नहीं होना चाहिए। उनको यात्रा की अनुमति देना केंद्र सरकार का दायित्व होना चाहिए।
गृह मंत्रालय के आदेश में इस मामले को राज्यों पर छोड़ दिया गया है। राज्य अपने हिसाब से श्रमिकों को वापस आने या जाने की अनुमति दे सकते हैं, इसलिए इन प्रवासी श्रमिक का आना-जाना अब राज्यों की मंजूरी पर निर्भर है।
'' कहा गया है कि ऐसे सभी प्रवासी श्रमिक, जो अपने मूल गृहनगर और गांवों में वापस जाने की इच्छा रखते हैं,उनको उनके अधिकार के तौर पर स्क्रीनिंग के बाद वापस जाने की अनुमति दी जानी चाहिए। ऐसे किसी भी प्रवासी श्रमिक को नहीं रोका जाना चाहिए,जो अपने घर वापस जाने की इच्छा रखता है।''
फंसे हुए प्रवासी श्रमिक शब्द के समावेश ने पात्रता के आधार को सीमित कर दिया
एफिडेविट में यह भी कहा गया है कि गृह मंत्रालय के आदेश में प्रवासी श्रमिकों की परिभाषा में ''फंसे'' शब्द के प्रयोग ने भी समस्या पैदा कर दी है क्योंकि यह उन लोगों की पात्रता के दायरे को सीमित कर रहा है, जो घर वापस आने की सुविधा का लाभ उठा सकते हैं। यह उन लाखों लोगों को इस सुविधा का लाभ लेने से वंचित कर देगा, जिनके पास आय का साधन नहीं है और उनकी बचत का पैसा भी खत्म हो गया है। अब वह अपने मूल गांवों में वापस जाने की इच्छा रखते हैं।
''केंद्र उन लोगों की श्रेणी का एक संकीर्ण दृष्टिकोण ले रहा है जो गृह मंत्रालय के 29 अप्रैल 2020 के आदेश के तहत यात्रा के लिए योग्य हैं, जिसके परिणामस्वरूप, कई प्रवासी श्रमिक जो आश्रय घरों / राहत शिविरों में नहीं रहे हैं बल्कि किराए के आवासों में रह रहे हैं, उन्हें केंद्र सरकार द्वारा प्रयोग किए गए ''फंसे'' शब्द की परिभाषा से बाहर कर दिया जाएगा, जिस शब्द का प्रयोग 29 अप्रैल 2020 के आदेश में प्रयोग किया गया है।''
प्रवासी श्रमिकों से बसों का किराया वसूला जा रहा है
शपथ पत्र में विभिन्न समाचार रिपोर्टों का उल्लेख किया है,जिनमें कहा गया है कि प्रवासी श्रमिकों से बसों से यात्रा करने के लिए शुल्क लिया जा रहा है। इसके अलावा, यह भी बताया गया है कि भारतीय रेलवे ने वास्तव में अपना किराया प्रति यात्री 50 रुपये बढ़ा दिया है।
''ट्रेन के किराए के रूप में प्रवासी श्रमिकों को लगभग 800 रुपये का भुगतान करना होगा,जो पूरी तरह अनुचित है।'' इस बयान को शपथ पत्र में इस आधार पर रेखांकित किया गया है कि प्रवासी श्रमिक अपनी खुद की गलती के कारण नहीं फंसे हैं। वहीं उनकी आय शून्य है और न ही उनको कोई वित्तीय सहायता मिली है, इसलिए, यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि रेलवे और राज्य प्रवासी श्रमिकों से ट्रेन और बस यात्रा के लिए कोई किराया नहीं वसूलेंगे।''
अनुपूरक शपथपत्र एक अर्जी के साथ दायर किया गया था जिसमें तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया गया था। इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मंगलवार को सूचीबद्ध किया जाएगा।
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