लीज़ की अवधि समाप्त होने के बाद केवल मकान मालिक द्वारा किराए की स्वीकृति लीज़ की समाप्ति में छूट के समान नहीं होगी : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
4 July 2022 11:24 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि लीज़ की अवधि समाप्त होने के बाद केवल मकान मालिक द्वारा किराए की स्वीकृति लीज़ की समाप्ति में छूट नहीं होगी।
एक मकान मालिक द्वारा दायर बेदखली के वाद में किरायेदार ने एक तर्क दिया कि संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 106 के अनुसार किरायेदारी की कोई वैध समाप्ति नहीं हुई। इस तर्क को स्वीकार करते हुए, ट्रायल कोर्ट ने वाद को खारिज कर दिया। कर्नाटक लघु वाद न्यायालय अधिनियम की धारा 18 के तहत वादी- जमीन मालिक द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका की अनुमति देते हुए, कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि अधिनियम की धारा 111 (ए) के मद्देनज़र, लीज़ समय के प्रवाह के तहत निर्धारित होगा और ऐसी परिस्थितियों में अधिनियम की धारा 106 के तहत समाप्ति की सूचना की आवश्यकता नहीं थी। शांति प्रसाद देवी और अन्य बनाम शंकर महतो व अन्य AIR 2005 SC 2905 = (2005) 5 SCC 543 का जिक्र करते हुए हाईकोर्ट ने माना कि लीज़ की अवधि समाप्त होने के बाद केवल मकान मालिक की स्वीकृति लीज़ की समाप्ति की छूट के बराबर नहीं होगी। इसलिए, प्रतिवादी ने एक विशेष अनुमति याचिका दायर करके सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस सुधांशु धूलिया की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों का हवाला देते हुए कहा कि पक्षकार टीपी एक्ट के प्रावधानों के अनुसार जाने के लिए सहमत हो गए हैं और इस तरह लीज को 11 महीने की अवधि के लिए लीज के रूप में लिया जा सकता है।
अदालत ने कहा,
"इस प्रकार प्राप्त साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए और शांति प्रसाद देवी के मामले (सुप्रा) में निर्णय को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने माना कि लीज़ की अवधि समाप्त होने के बाद मकान मालिक द्वारा किराए की स्वीकृति मात्र लीज़ की छूट नहीं होगी। पूरन चंद बनाम मोतीलाल और अन्य (AIR 1964 SC 461) में निर्णय पर भरोसा करते हुए एमसी मोहम्मद बनाम श्रीमती गौरम्मा (AIR 2007 KAR46) में हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच के फैसला, आयोजित किया गया कि लीज़ के तहत निर्धारित अवधि की समाप्ति पर किरायेदार टीपी अधिनियम की धारा 106 के तहत वैधानिक नोटिस का हकदार नहीं होगा। पहले से समाप्त की गई लीज़ को समाप्त करने के लिए नोटिस आवश्यक है। "
एसएलपी को खारिज करते हुए बेंच ने कहा कि सिविल कोर्ट का निर्णय और डिक्री 'कानून के अनुसार' नहीं थे, और इसलिए हाईकोर्ट निश्चित रूप से अपने पुनरीक्षण अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए डिक्री को रद्द करने के अपने अधिकारों के भीतर था।
मामले का विवरण
के एम मंजूनाथ बनाम इरप्पा जी (डी) | 2022 लाइव लॉ (SC) 561 | एसएलपी (सी) 10700/ 2022 | 24 जून 2022
पीठ: जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस सुधांशु धूलिया
वकील: एडवोकेट एम पी राजू, एडवोकेट रवि सागर, एडवोकेट जेम्स पी थॉमस
हेडनोट्स: संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882; धारा 111 - लीज़ की अवधि समाप्त होने के बाद मकान मालिक द्वारा किराए की स्वीकृति मात्र लीज की समाप्ति की छूट के बराबर नहीं होगी - शांति प्रसाद देवी और अन्य बनाम शंकर महतो व अन्य AIR 2005 SC 2905 (2005) 5 SCC 543 को संदर्भित ( पैरा 11 )
कर्नाटक लघु वाद न्यायालय अधिनियम, 1964; धारा 18 - हाईकोर्ट को तथ्य के निष्कर्षों में हस्तक्षेप करने का अधिकार केवल तभी दिया जाता है जब निचली अदालत के निष्कर्ष विकृत हों या बिना किसी सबूत के या कानून की त्रुटि से पीड़ित हों या अदालत द्वारा रिकॉर्ड पर किसी सामग्री की गैर- सराहना या उस पर विचार ना किया गया हो - कि रिकॉर्ड पर साक्ष्य के आधार पर एक और दृष्टिकोण संभव है, हाईकोर्ट के लिए अपने पुनरीक्षण अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए निचली अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं हो सकता है- जब सिविल कोर्ट का निर्णय और डिक्री 'कानून के अनुसार' नहीं है, हाईकोर्ट निश्चित रूप से अपने पुनरीक्षण अधिकार क्षेत्र के प्रयोग में डिक्री को रद्द करने के अपने अधिकारों के भीतर है। ( पैरा पैरा 6)
संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882; धारा 106, 111 (ए) - समय के प्रवाह द्वारा लीज़ के निर्धारण पर पहले से समाप्त लीज़ की समाप्ति लाने के लिए एक वैधानिक नोटिस जारी करके किरायेदारी की कोई और समाप्ति आवश्यक नहीं है - एम सी मोहम्मद बनाम श्रीमती गौरम्मा AIR 2007 KAR 46 और पूरन चंद बनाम मोतीलाल व अन्य AIR 1964 SC 46 ( पैरा 11 )
संपत्ति का हस्तांतरण अधिनियम, 1882 - मकान मालिक द्वारा दायर बेदखली के वाद में सामग्री प्रश्न यह होगा कि क्या पक्षों के बीच जमीन मालिक-किरायेदार का कानूनी संबंध था और क्या किरायेदारी को वैध रूप से समाप्त किया गया था। ( पैरा 8 )