केवल मानसिक स्थिति सही होने के डॉक्टर का प्रमाण पत्र की अनुपस्थिति स्वत: सिद्ध तरीके से मृत्यू पूर्व बयानों को अस्वीकार्य नहीं करेगी : सुप्रीम कोर्ट 

LiveLaw News Network

13 Feb 2021 5:13 AM GMT

  • केवल मानसिक स्थिति सही होने के डॉक्टर का प्रमाण पत्र की अनुपस्थिति स्वत: सिद्ध तरीके से मृत्यू पूर्व बयानों को अस्वीकार्य नहीं करेगी : सुप्रीम कोर्ट 

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि केवल मानसिक स्थिति सही होने के डॉक्टर का प्रमाण पत्र की अनुपस्थिति स्वत: सिद्ध तरीके से मृत्यू पूर्व बयानों को अस्वीकार्य नहीं करेगी।

    इस मामले में अभियुक्तों की दलील यह थी कि सजा पूरी तरह से मृतक के मृत्यू पूर्व बयानों पर आधारित है जो किसी भी अपराध को साबित नहीं करता है। यह तर्क दिया गया था कि मृत्यू पूर्व बयानों को रिकॉर्ड करने के समय डॉक्टर का प्रमाणपत्र नहीं था, इसलिए डॉक्टर के प्रमाण पत्र के बिना मृत्यू पूर्व बयानों पर भरोसा नहीं किया जा सकता था।

    दूसरी ओर, राज्य ने इस बात पर भरोसा किया कि मृत्यू पूर्व बयानों पर भरोसा करने के लिए डॉक्टर का प्रमाण पत्र अनिवार्य नहीं है और डॉक्टर के प्रमाण पत्र न होने पर भी न्यायालय मृत्यू पूर्व बयानों पर विचार और भरोसा कर सकता है।

    जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों की जांच करते हुए कहा कि यद्यपि न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अपने बयान में कहा है कि डॉक्टर द्वारा कोई भी प्रमाण-पत्र नहीं दिया गया था कि मृतक बयान देने के लिए उपयुक्त स्थिति में था, लेकिन उसने कहा था कि डॉक्टर ने मौखिक रूप से बताया था कि वह बयान दे सकता है।

    पीठ ने कहा,

    "संविधान पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा है कि केवल मानसिक स्थिति सही होने के डॉक्टर का प्रमाण पत्र की अनुपस्थिति स्वत: सिद्ध तरीके से मृत्यू पूर्व बयानों को अस्वीकार्य नहीं करेगी। आगे कहा गया कि इस तरह का बयान विशेष मामले में स्पष्ट मूल्य तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। वर्तमान मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट, जो गवाह बॉक्स में उपस्थित हुए हैं, ने मृत्यू पूर्व बयान को साबित कर दिया है और तथ्यों और परिस्थितियों को देखा है, विशेष रूप से डॉक्टर की उपस्थिति, जिसने मृत्यू पूर्व बयानों पर हस्ताक्षर किए थे और जिसने न्यायिक मजिस्ट्रेट को बताया था घायल बयान देने के लिए एक उपयुक्त स्थिति में था, हम किसी भी विपरीत विचार को लेने का कोई कारण नहीं देखते हैं जो कि ट्रायल कोर्ट के साथ-साथ उच्च न्यायालय ने लिया है।"

    अपील को खारिज करते हुए, पीठ ने कहा कि मृतक के मृत्यू पूर्व बयानों को तुरंत दर्ज किया गया था और ये वास्तविक साबित हुए थे।

    लक्ष्मण बनाम महाराष्ट्र राज्य में संविधान पीठ ने माना कि पापराम्बका रोसम्मा और अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य 1999 (7) SCC 695 में इस आशय के लिए की गई टिप्पणियां कि "चिकित्सा प्रमाणन की अनुपस्थिति में कि घायल की उस समय बयान देने के लिए मानसिक स्थिति सही थी, उस मजिस्ट्रेट की व्यक्तिपरक संतुष्टि के लिए यह स्वीकार करना बहुत जोखिम भरा होगा जिसने विचार किया कि बयान देते समय घायल सही मानसिक स्थिति में था," बहुत व्यापक रूप से कहा गया है और कानून का सही उल्लेख नहीं है।

    "यह वास्तव में एक हाइपर-तकनीकी दृष्टिकोण है कि चिकित्सक का प्रमाणन उस प्रभाव के प्रति था कि रोगी होश में है और ये कोई भी प्रमाण पत्र नहीं था कि मरीज विशेष रूप से सही मानसिक स्थिति में था जब मजिस्ट्रेट ने स्पष्ट रूप से उसके साक्ष्य में संकेत देते हुए सवालों को मरीज के सामने रखा था और वो जवाबों से संतुष्ट था कि मरीज एक स्वस्थ स्थिति में था, जहां-जहां उसने मृत्यू पूर्व बयान दर्ज किए थे। इसलिए, पापराम्बका रोसम्मा और अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य 1999 (7) SCC 695 में इस अदालत का फैसला सही ढंग से तय नहीं किया गया है और हम कोली चुन्नीलाल सावजी और अन्य बनाम गुजरात राज्य 1999 (9) SC 562 मामले में इस अदालत द्वारा निर्धारित कानून की पुष्टि करते हैं।"

    केस : सुरेंद्र बंगाली @ सुरेंद्र सिंह रौतेले बनाम झारखंड राज्य [ क्रिमिनल अपील संख्या 1078/ 2010]

    पीठ : जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अजय रस्तोगी

    उद्धरण: LL 2021 SC 82

    ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story