'देश के कई वकील भुखमरी के कगार पर' : सीजेआई को पत्र याचिका लिखकर आपातकालीन कोष बनाने की मांग की

LiveLaw News Network

9 April 2020 4:00 AM GMT

  • देश के कई वकील भुखमरी के कगार पर : सीजेआई को पत्र याचिका लिखकर आपातकालीन कोष बनाने की मांग की

    भारत के मुख्य न्यायाधीश एस.ए बोबड़े को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखा गया है। इस पत्र में सुप्रीम कोर्ट और बार काउंसिल से प्रार्थना की गई है कि वह उस स्थिति पर संज्ञान लें जिसमें वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण स्वतंत्र युवा अधिवक्ता भुखमरी के कगार पर हैं।

    पत्र में अधिवक्ता अधिनियम, 1961 और अधिवक्ता कल्याण योजना, 1998 के प्रावधानों के अनुसार कोरोना वायरस (COVID-19) के प्रकोप के चलते एक आपातकालीन कोष के निर्माण की भी मांग की गई है।

    अधिवक्ता पवन प्रकाश पाठक और आलोक सिंह द्वारा भेजी गई इस पत्र-याचिका में कहा गया है कि अब तक भारत में 4000 से अधिक कोरोना के पॉज़िटिव मामले सामने आए हैं, जिसमें 114 की मौत हो चुकी है। इसके अतिरिक्त, लगभग 162 देशों में लगातार लॉकडाउन के कारण व्यवसाय वैश्विक वित्तीय बाजार आसन्न पतन के डर के साये में चल रहे हैं।

    पिछले वर्ष की सुस्त आर्थिक वृद्धि, बढ़ती बेरोजगारी, ब्याज दरों और राजकोषीय घाटे के कारण भारत की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट आई है। वहीं रेटिंग एजेंसियों ने यह भी घोषित किया है कि यह महामारी भारत के लिए एक आर्थिक सुनामी साबित होगी, इसीलिए, 26 मार्च को, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 बिलियन डॉलर के पैकेज की घोषणा की थी जिसका उद्देश्य आर्थिक व्यवधान को कम करना था। एक दिन बाद आरबीआई ने भी ब्याज दरों में कटौती कर दी और घाटे में आ रहे व्यवसायों के लिए ऋण उपलब्ध कराने के लिए अपरंपरागत उपाय भी किए गए।

    इस पत्र-याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि-

    ''वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति को अनोखे संकट के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि यह पूँजीवाद के विघटित संरचनात्मक संकट की जातीय स्थिति है। साथ में आय में बहुत ज्यादा असमानता, बेरोजगारी, श्रमिक वर्ग की उचित स्वास्थ्य देखभाल के लिए दुर्गमता, श्रेष्ठ शिक्षा प्राप्त करने में दुर्गमता और अन्य आवश्यक सेवाओं के लिए भी बहुत अधिक अंतर्जात स्थिति है।''

    इसी के आधार पर, पत्र-याचिका में कहा गया है कि न्यायालय के अधिकारी अर्थात् अधिवक्ता, इस लॉकडाउन की चपेट में आ गए हैं और वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं। आगे कहा गया कि

    ''... अगर लॉकडाउन आगे बढ़ता है, तो यह अधिवक्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता के लिए एक गंभीर खतरा है, जिनके पास उनकी आय का एकमात्र स्रोत मुकदमेबाजी है। यह समय है कि मौलिक और कानूनी अधिकारों के रक्षक इस जिम्मेदारी का ख्याल एक वर्ग (बार और बेंच)के रूप में रखें और इसके लिए राज्य या संघ से मिलने वाली राहत निधि की प्रतीक्षा न की जाए, क्योंकि सरकार को बड़े पैमाने पर अन्य व्यवसायों और नागरिकों का ध्यान भी रखना होगा।''

    तथ्य यह है कि महामारी के कारण हुए लॉकडाउन के चलते स्वतंत्र युवा वकीलों को एक कठिन समय का सामना करना पड़ा है। पत्र-याचिका में कहा गया है कि इन सभी को दिल्ली में सीमित काम के साथ रहना पड़ रहा हैं, और इसके बाद गर्मियों की छुट्टी होगी। जो उनकी वित्तीय स्थिति को और खराब कर देंगी। इसमें कहा गया कि

    ''... स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है और क्योंकि किराए के घर, भोजन और मेडिकल बिलों के भुगतान का अतिरिक्त बोझ है, जबकि आय के सीमित साधन हैं, इसलिए विनम्रतापूर्वक प्रस्तुत किया गया कि हम इस बात की वकालत नहीं कर रहे हैं कि वर्तमान महामारी के दौरान ''वित्तीय सहायता'' हमारा ''मौलिक अधिकार'' है। तत्काल पत्र के माध्यम से हम केवल युवा स्वतंत्र अधिवक्ताओं की दुर्दशा साझा कर रहे हैं, जो समय के प्रकोप का सामना कर रहे हैं।''

    इस पत्र-याचिका में राज्य बार एसोसिएशनों की नीतियों में एकरूपता या समानता की कमी पर भी प्रकाश डाला गया है, जिन्होंने अधिवक्ताओं के लिए विभिन्न ''वित्तीय सहायता'' योजनाएं बनाई हैं। यह भी कहा गया है कि यह उन अधिवक्ताओं के संबंध में एक संदेहापस्द विषय है, जो किसी भी संघ के साथ पंजीकृत न होने के कारण भगवान की दया पर छोड़ दिए गए हैं।

    यह भी कहा गया है कि बार काउंसिल ऑफ दिल्ली द्वारा प्रचारित नीतियों में अधिवक्ताओं को विभिन्न वर्गों में विभाजित कर दिया है। यह वर्गीकरण समझदारी से भिन्नता न करने की कमी के कारण समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। इसी तरह की नीति की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) ने भी की है।

    "तात्कालिक पत्र का उद्देश्य संबंधित राज्य बार संघों के प्रयासों और COVID-19 के संकट से लड़ने के उनके इरादे को हतोत्साहित करना नहीं है। यह विनम्रतापूर्वक बताया जा रहा है कि तत्काल पत्र केवल युवा स्वतंत्र अधिवक्ताओं की दुर्दशा को व्यक्त करने का प्रयास कर रहा है। जो किसी भी कोर्ट बार एसोसिएशन से जुड़े नहीं हैं और जिनको अभी भी स्टेट बार या बीसीआई से वित्तीय मदद की सख्त जरूरत है।''

    पत्र-याचिका में राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अधिवक्ताओं के लिए उपलब्ध कल्याणकारी योजनाओं के बारे में बताया गया है। अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में रोल पर आए या पंजीकृत अधिवक्ताओं के अधिकारों, विशेषाधिकारों और हितों की रक्षा के लिए प्रावधान हैं। अधिवक्ता अधिनियम की धारा 6 (2) में भी अधिवक्ताओं के लिए आपातकालीन फंड का निर्माण करने का प्रावधान है।

    चूंकि सभी अधिवक्ताओं ने बार एसोसिएशनों की स्वैच्छिक सदस्यता के विपरीत अपनी पसंद वाले राज्य की बार काउंसिल के साथ पंजीकरण करवाया हुआ है , इसलिए वे उन कल्याणकारी योजनाओं के तहत वित्तीय सहायता के हकदार हैं जिन्हें अधिनियम के तहत प्रख्यापित किया गया है।

    ''यह विनम्रतापूर्वक कहा गया है कि अधिवक्ता अधिनियम, 1961 अधिवक्ताओं के लिए वित्तीय निधि के निर्माण का प्रावधान करता है ताकि उनके अधिकारों, विशेषाधिकारों और हितों की रक्षा की जा सकें। इसलिए, विनम्रतापूर्वक प्रार्थना की जाती है कि कृपया अधिवक्ता अधिनियम 1961 के तहत उस पॉवर को लागू करें और उन युवा स्वतंत्र अधिवक्ताओं के लिए आपातकालीन कोष बनाया जाए, जिनको COVID-19 के दौरान वित्तीय सहायता की आवश्यकता है।''

    पत्र-याचिका में शामिल किए गए सुझाव,जो इस प्रकार हैं-

    ''ए-बार और बेंच की मदद से एक समर्पित एकल आपातकालीन पूल फंड बनाया ला सकता है।

    बी- बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पास सभी स्टेट बार एसोसिएशंस का डेटा है, इसलिए बीसीआई पूल फंड और वित्तीय सहायता की आवश्यकता वाले अधिवक्ताओं को यह फंड बांटने के लिए प्रबंधक निकाय बन सकता है।

    सी- प्रश्न उठता है कि कौन COVID-19 स्थिति के दौरान ''वित्तीय सहायता के लिए पात्र है?''

    खैर, नियमों को बार के सदस्यों द्वारा निर्धारित किया जा सकता है, जबकि हमारे सुझाव इस तरह होंगे-

    1-अधिवक्ता जो अपने संबंधित राज्य की बार के साथ पंजीकृत हैं और उनके नाम राज्य रोल पर नामांकित हैं।

    दो-अधिवक्ता जो स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस कर रहे हैं और किसी भी कानूनी फर्म या चेम्बर्स या किसी अन्य स्रोत से वेतन/स्टाइफंड नहीं ले रहे हैं।

    तीन- उनकी घोषित आय के प्रमाण के रूप में आयकर रिटर्न ली जाए, जैसे हमारे मामले में कुल आय 2,50,000 रुपये से कम है।

    चार- अधिवक्ता जो अपने-अपने राज्यों में प्रैक्टिस कर रहे हैं और केवल आय के स्रोत के रूप में मुकदमेबाजी पर निर्भर हैं।

    पांच- COVID-19 के दौरान उनकी भोजन, आवास और चिकित्सा बिलों आदि की आवश्यकता को पूरा करने के लिए वित्तीय सहायता की में जरूरत के संबंध में स्व-प्रमाणित शपथ पत्र लिया जाए।

    हम पूल फंड कैसे एकत्रित कर सकते हैंः

    स्टेट बार एसोसिएशन ,भारत में लॉ फर्म, अन्य संस्थान या अधिवक्ता, जो इस फंड के लिए योगदान करने के इच्छुक हैं, योगदान दे सकते हैं।

    अधिवक्ताओं के लिए वित्तीय योजना-

    COVID-19 के दौरान सहायता की आवश्यकता वाले अधिवक्ताओं को मासिक या एक बार वित्तीय सहायता प्रदान की जा सकती है या एक निश्चित अवधि के लिए ऋण संवितरण के रूप में अधिवक्ताओं को सहायता प्रदान की जा सकती है, जो अदालत खुल जाने के पश्चात समय की एक निश्चित अवधि के बाद सहायता राशि उचित ब्याज के साथ वापिस कर देंगे।

    फिर आपातकालीन निधि को विभिन्न राज्य बार एसोसिएशनों या बीसीआई के बीच वितरित किया जा सकता है। जो कानूनी सहायता या किसी अन्य मानव जाति के उद्देश्य के लिए इसका उपयोग कर सकते हैं।

    या जब वित्तीय सहायता लेने वाले अधिवक्ता उस पैसे को वापिस कर दें तो उसे उन वरिष्ठ अधिवक्ता, अधिवक्ता या कानून फर्म को वापिस किया जा सकता है,जिन्होंने इस निधि में अपना योगदान दिया था। इसलिए यह अधिवक्ताओं, कानून फर्मों को इस आपातकालीन निधि में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित करेगा क्योंकि एक समय की अवधि के बाद उनका पैसा ब्याज सहित वापस कर दिया जाएगा। (इस विशेष योजना के लिए आरबीआई की अनुमति की आवश्यकता है)

    पत्र-याचिका के अंत में यह कहा गया है कि वकालत एक महान पेशा है और यह उन व्यक्तियों के लिए है जो दूसरों के अधिकारों के लिए लड़ते हैं, महामारी ने कठोर स्थिति पैदा कर दी है, और इसके लिए शीर्ष न्यायालय के तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

    पत्र डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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