मद्रास हाईकोर्ट ने देरी से रिटर्न के लिए शुल्क लगाने वाली आईटी एक्ट की धारा 234एफ को जायज ठहराया

LiveLaw News Network

9 Feb 2020 3:23 PM IST

  • मद्रास हाईकोर्ट ने देरी से रिटर्न के लिए शुल्क लगाने वाली आईटी एक्ट की धारा 234एफ को जायज ठहराया

    Madras High Court

    मद्रास हाईकोर्ट ने देरी से भरे जाने वाले आयकर रिटर्न के लिए फीस निर्धारित करने से संबंधित आयकर अधिनियम 1961 की धारा 234(एफ) की संवैधानिकता को वैध ठहराया है।

    वित्त अधिनियम 2018 के माध्यम से किये गये इस प्रावधान की वैधता को इस आधार पर चुनौती दी गयी थी कि देरी से रिटर्न भरने के लिए 'फीस' लगाया जाना छद्म रूप में 'जुर्माना' है। याचिकाकर्ता के अनुसार, संबंधित धारा में वर्णित शुल्क 'जुर्माना' की प्रकृति के हैं और यह तथ्यान्वेषण प्रक्रिया के बाद ही लगाया जा सकता है। यह भी दलील दी गयी थी कि शुल्क को 'फीस' की संज्ञा नहीं दी जा सकती क्योंकि इसमें 'क्विड प्रो क्वो' अर्थात 'लेन-देन' का तत्व मौजूद नहीं है।

    मुख्य न्यायाधीश ए पी शाही और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने इन दलीलों से सहमति नहीं जतायी। बेंच ने कहा कि जब आयकर विभाग ने देरी से रिटर्न भरने की अनुमति दी थी तो उसमें सेवा का तत्व मौजूद था।

    बेंच ने कहा,

    "अवधि समाप्त होने के बाद रिटर्न भरने की अनुमति देना एक विशेष सुविधा है। अधिकारियों को रिफंड के निर्धारण के लिए रिटर्न को विभिन्न आकलनों से जोड़कर निर्णय लेना होगा और इसके लिए विभाग को अपने कर्मचारी लगाने होंगे। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि निर्धारित अवधि समाप्त होने के बाद रिटर्न मंजूर करने में कोई 'सेवा' नहीं दी जाती।"

    इसने आगे कहा,

    "सही मायने में लेनदेन का तत्व हमेशा फीस की अनिवार्य शर्त से जुड़ा नहीं होता। बहरहाल, धारा 234एफ के तहत लगायी गयी फीस निर्धारित समय के बाद आयकर रिटर्न भरने के लिए ली जाती है, जो देरी से रिटर्न भरने की विशेष सुविधा है।"

    कोर्ट ने व्यवस्था दी कि धारा 234एफ के तहत इस प्रावधान को 'अतार्किक' या 'कठोर' नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह समय पर रिटर्न भरने की व्यवस्था सुनिश्चित करता है।

    बेंच ने कहा, "(आयकर) विभाग की यह दलील सही है कि अग्रिम कर, टीडीएस, स्वयं आंकलन आदि के जरिये सरकार को अपनी सम्पूर्ण कर देयता की जानकारी देने का करदाता का दायित्व उस समय तुच्छ हो जाता है यदि उसने समय पर आयकर रिटर्न भरकर इसकी जानकारी सरकार को नहीं दी है, ताकि संबंधित जानकारी की जांच तथा निर्धारित समय के भीतर उसका आंकलन सुनिश्चित हो सके। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि करदाता का सम्पूर्ण कर आंकलन फलदायक साबित होता है। इन्हीं बिन्दुओं को ध्यान में रखकर कानून में धारा 234एफ के रूप में नियामक व्यवस्था शुरू की गयी है और इसे अतार्किक या कठोर नहीं कहा जा सकता।"0

    मुकदमे का ब्योरा :

    शीर्षक : के. निराई मति अझगन बनाम भारत सरकार एवं अन्य

    केस नं. : रिट याचिका (सिविल) नं. 18314/2018

    बेंच : मुख्य न्यायाधीश ए पी शाही और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद

    वकील : एडवोकेट एस संतोष (याचिकाकर्ता के लिए), अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल जी राजगोपालन, हेमा मुरलीकृष्णन


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