मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र और बीमा कंपनियों से अनुरोध किया, मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल अवार्ड के ऐसे मामलों में अपील वापस लेने पर विचार करें जहां क्लेम राशि 7.5 लाख से कम हो

LiveLaw News Network

13 May 2020 3:45 AM GMT

  • मद्रास हाईकोर्ट ने  केंद्र और बीमा कंपनियों से अनुरोध किया, मोटर एक्सीडेंट क्लेम   ट्रिब्यूनल अवार्ड के ऐसे मामलों में अपील वापस लेने पर विचार करें जहां क्लेम राशि  7.5 लाख से कम हो

    Madras High Court

    मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को सरकार और विभिन्न बीमा कंपनियों से अनुरोध किया है कि वह मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल (एमएसीटी) के उन आदेशों के खिलाफ दायर अपीलों को वापस लेने पर विचार करें, जिनमें क्लेम की राशि 7.5 लाख रुपये से कम है।

    न्यायमूर्ति एन.आनंद वेंकटेश की पीठ ने मोटर दुर्घटनाओं के दावों/ अपील की लंबित ''आश्चर्यजनक संख्या''पर ध्यान देते हुए इस मामले में यह आदेश दिया है।

    पीठ उन याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एक बीमाकर्ता ने मांग की थी कि तमिलनाडु राज्य में विभिन्न ट्रिब्यूनल के समक्ष लंबित मोटर एक्सीडेंट क्लेम की 16 याचिकाओं को हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया जाए। यह मांग सीपीसी की धारा 24 के तहत की गई थी। बीमाकर्ता ने दलील दी थी कि इससे दुुर्घटना के पीड़ितों/उनके परिजनों के साथ परामर्श करके समझौता करने में सुविधा हो जाएगी।

    हालांकि अदालत ने एक हालिया फैसले के संदर्भ में याचिकाओं को अनुमति दे दी है। उस फैसले में भी कोर्ट ने निजी बीमा कंपनी चोलामंडलम एमएस जनरल इंश्योरेंस के खिलाफ लंबित 23 दावों को स्थानांतरित करने की अनुमति दे दी थी। कोर्ट ने COVID संकट के दौरान यह आदेश दिया था।

    न्यायमूर्ति वेंकटेश ने कहा कि विभिन्न हाईकोर्ट में मोटर दुर्घटना के मामलों में दायर अपील की ''आश्चर्यजनक संख्या'' लंबित है। वर्ष 2018-19 की अवधि के दौरान विभिन्न कोर्ट में मोटर बीमा कंपनियों से संबंधित 9,42,805 दावे लंबित थे। वहीं वर्ष 2019-20 की अवधि के दौरान इन लंबित मामलों की संख्या 7,81,563 है।

    इन आकड़ों को देखते हुए न्यायमूर्ति वेंकटेश ने केंद्र सरकार/ केंद्रीय वित्त मंत्रालय/आईआरडीए/जीआईसी/4 पीएसयू या सार्वजनिक उपक्रमों और लगभग 21 निजी मोटर बीमा कंपनियों और राज्य परिवहन निगमों से आग्रह किया है कि वह इस महामारी के समय में एक संकेत के रूप उन मामलों में दायर अपीलों को वापस लेने की संभावना पर विचार करें, जहां विवाद या क्लेम की राशि साढे़ सात लाख रुपये से कम है।

    आदेश में कहा गया है कि-

    ''इस अदालत के समक्ष जो तथ्य उजागर हुए है ,उन्हीं को देखते हुए यह अदालत संस्थाओं को अपने सुझाव पर विचार करने का आग्रह करने के लिए प्रेरित हुई है। वहीं लगभग सौ पीड़ितों के बचाव में आते हुए भी यह अदालत ऐसा आग्रह कर रही है ताकि उनको 4,19,57,324 रुपये का लाभ उठाने में सक्षम बनाया जा सकें और विभिन्न कोर्ट या ट्रिब्यूनल के समक्ष लंबित उनके दावों के मामलों को बंद किया जा सकें।

    विभिन्न मामलों के अनुभव ने ही इस अदालत को एक दिल दिया है और वह पीड़ितों और उनके बारे में सोच रही है। इसलिए यह अदालत अपने नियंत्रण की सीमा के संबंध में अत्यधिक सम्मान रखते हुए इस न्यायालय के रजिस्ट्रार-जनरल को निर्देश देने की इच्छुक है कि वह इस आदेश की प्रति केंद्र सरकार व अन्य संबंधित पक्षों को भेज दें। वहीं इस आदेश में दिए गए सुझाव के आधार पर यह आग्रह भी किया जाए कि वह विभिन्न हाईकोर्ट में लंबित उन अपील को वापिस लेने पर विचार करें,जहां क्लेम या विवाद की राशि 7.5 लाख रुपये से कम है या वह राशि जिसे सभी संस्थाएं इस संबंध में उचित समझती हों।''

    यह अनुरोध मोटर दुर्घटना पीड़ितों और बीमा कंपनियों/एसटीसीएस के बीच ''संतुलन बनाने'' की एक कोशिश है।

    अदालत ने जोर देकर कहा कि मोटर वाहन अधिनियम एक कल्याणकारी कानून है। जिसके तहत दिया जाने वाला मुआवजा पीड़ितों को दिया जाना आवश्यक है ताकि वह दर्दनाक दुर्घटनाओं के बाद अपने ''जीवन को वापिस पटरी पर'' ला सकें।

    अदालत ने कहा कि

    ''...बहुत सारे पीड़ितों को बचाव और रिकवरी पैकेज की जरूरत है। इस तरह के उपायों से लंबित अपीलों को रद्द या खत्म किया जा सकता है और पीड़ितों को उनकी कठोर आर्थिक स्थिति के समय में आवश्यक धनराशि दी जा सकती है।''

    अदालत ने हालांकि स्पष्ट किया है कि यह कोई बाध्यता या निर्देश नहीं है।

    कोर्ट ने स्पष्ट करते हुए कहा कि

    ''इस अदालत को इस तरह से न देखा जाए कि वह किसी भी संस्था को अपने इस सोचे गए सुझाव पर सहमत होने के लिए निर्देश जारी कर रही है। यह उनके ऊपर है कि अगर वे इस सुझाव को उचित समझते हैं तो इस पर विचार करें। लेकिन, यह तथ्य भी है कि यह अदालत एक संवैधानिक स्थिति में है। इसलिए यह सोचकर सुझाव दे रही है कि उसके शब्द एक मूल्य रखते हैं,जिन पर गंभीरता से विचार हो सकता है। इसलिए यह न्यायालय बड़े जनहित के लिए इनका उपयोग करना चाहती है। यह कोर्ट कोई निर्देश जारी नहीं कर रही है। न ही इस सुझाव पर विचार करने के लिए निर्देश जारी कर रही है।''

    हालांकि न्यायालय ने यह उम्मीद जताई है कि उक्त निकाय उसके द्वारा दिए गए सुझाव पर उचित विचार करेंगे और सकारात्मक जवाब देंगे।

    न्यायालय द्वारा सुझाई गई विवादित राशि के संबंध में भी यह स्पष्ट किया गया है कि सुझाव देने से पहले किसी भी सांख्यिकीय या संख्यात्मक एल्गोरिदम या कलन विधि पर विचार नहीं किया गया था।

    ''यह अदालत किसी भी सांख्यिकीय या संख्यात्मक एल्गोरिदम के आधार पर इन आंकड़ों का सुझाव नहीं दे रही है। यह केवल एक अनुमानित संख्या है। संबंधित संस्थाएं यदि इस समाधान पर सहमत होती हैं तो वह अपनी पसंद के किसी भी अन्य संख्या पर विचार कर सकती हैं।''

    मामले का विवरण-

    केस का शीर्षक- मैसर्स चोलामंडलम एमएस जरनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम वी आनंदन (और अन्य जुड़े मामले)

    केस नंबर-एमसीओपी नंबर 54/2018

    कोरम-जस्टिस एन आनंद वेंकटेश

    प्रतिनिधित्व-एडवोकेट एन विजयराघवन (याचिकाकर्ताओं के लिए)


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