अपहरण और बलात्कार या प्रेम विवाह: सुप्रीम कोर्ट ने पक्षकारों को कोई सकारात्मक समाधान खोजने को कहा

LiveLaw News Network

26 Dec 2021 7:38 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उस मामले में जहां एक 'पति' ने पत्नी के परिवार द्वारा अपनी 'पत्नी' के खिलाफ अपहरण और बलात्कार के अपराध का आरोप लगाया, कहा कि अदालत के समक्ष केवल एक ही बात की जा रही है कि पति का विवाह पूर्व प्रेम था। यह शायद ही भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376, के तहत मामला हो सकता है।

    जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की खंडपीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर एक विशेष अनुमति याचिका में यह टिप्पणी की। इसके साथ ही खंडपीठ ने अपहरण और बलात्कार के अपराधों के लिए याचिकाकर्ता पति, उसके परिवार के सदस्यों और दोस्तों के खिलाफ (आईपीसी की धारा 363, 376 और धारा 34 के तहत) दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया।

    याचिकाकर्ता पति के अनुसार, वर्तमान मामला उस लड़की के माता-पिता और रिश्तेदारों द्वारा दायर किया गया है जो उसके (पित) साथ उसकी शादी के खिलाफ थे। हाईकोर्ट ने पत्नी द्वारा दिए गए एक बयान पर भरोसा करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता ने उसे उससे शादी करने के लिए मजबूर किया था।

    "यह पता लगाने के प्रयास में कि क्या किसी सकारात्मक तरीके से मामले को शांत किया जा सकता है, हम उचित समझते हैं कि याचिकाकर्ता/पति और लड़की/पत्नी को अदालत में उपस्थित रहना चाहिए"।

    सुप्रीम कोर्ट ने पहले जुलाई, 2019 में आक्षेपित आदेश पर रोक लगा दी थी। बाद में कोर्ट ने याचिकाकर्ता पति को जांच में शामिल होने के लिए कहा था। जांच अधिकारी को अदालत के सहयोग के लिए एक सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।

    बेंच ने अब कहा कि रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री स्पष्ट रूप से दिखाती है कि शादी याचिकाकर्ता पुरुष और लड़की के बीच स्वेच्छा से हुई थी। ऐसा प्रतीत होता है कि लड़की के चाचा प्रथम दृष्टया हिसाब चुकता करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि वह एक सरकारी विभाग में कार्यरत है।

    बेंच ने जांच पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि पूरी तरह से पांडित्यपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया गया है। इस जांच को शायद ही एक जांच कहा जा सकता है।

    यह पता लगाने के प्रयास में कि क्या किसी सकारात्मक तरीके से मामले को शांत किया जा सकता है, बेंच ने याचिकाकर्ता पति और पत्नी को अदालत में उपस्थित रहने के लिए कहने के लिए उपयुक्त होने पर विचार किया।

    पृष्ठभूमि: एडवोकेट संचित गर्ग और एडवोकेट निखिल जैन के माध्यम से दायर वर्तमान विशेष अनुमति याचिका में कहा गया कि वर्तमान मामला उस लड़की के माता-पिता और रिश्तेदारों द्वारा विरोध में किए गए प्रेम विवाह का परिणाम है, जिसने याचिकाकर्ता के साथ भागकर उससे शादी की थी।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि लड़की अपने पति, ससुराल वालों और खुद की सुरक्षा के लिए चिंतित है। उसकी असुरक्षा को देखते हुए याचिकाकर्ता उसे कर्नाटक के चामराजनगर के पुलिस उपाधीक्षक के कार्यालय में ले गया। वहां पति और उसकी पत्नी ने उप पुलिस अधीक्षक, चामराजनगर, कर्नाटक की उपस्थिति में एक दूसरे के साथ वरमाला का आदान-प्रदान किया।

    याचिकाकर्ताओं के अनुसार जब लड़की के माता-पिता को इस बात की जानकारी हुई कि उनकी बेटी याचिकाकर्ता के साथ रह रही है तो उन्होंने उसका याचिकाकर्ता के घर से अपहरण कर लिया गया। लड़की के परिवार वालों ने याचिकाकर्ता पति के साथ उसके रिश्ते और शादी का पुरजोर विरोध किया था।

    इसके बाद पत्नी द्वारा कथित तौर पर मई 2016 में पुलिस के समक्ष स्वेच्छा से बयान दिया गया। याचिकाकर्ता पति को जुलाई, 2016 में हिरासत में लिया गया था लेकिन बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया। अन्य याचिकाकर्ताओं को अग्रिम जमानत मिल गई।

    पुलिस के सामने लड़की द्वारा दिए गए स्वैच्छिक बयान में उसने कहा कि याचिकाकर्ता ने उसे धमकी दी कि अगर उसने उससे शादी नहीं की तो वह मर जाएगा। बाद में वह उसे 'जबरन मंदिर ले गया'। वहां उससे शादी कर ली और उसे केरल ले गया। बयान में कहा गया कि उसे उसके परिवार के सदस्यों द्वारा परेशान किया गया। इसके बाद उसने याचिकाकर्ताओं और अन्य लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की, जिन्होंने उसे शादी के लिए जबरन अपहरण कर लिया और उसे मानसिक रूप से परेशान किया।

    शुरुआत में केवल अपहरण का आरोप लगाते हुए एक एफआईआर याचिकाकर्ता पति के खिलाफ दर्ज की गई थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि उसने अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों के साथ योजना बनाकर शादी करने के इरादे से लड़की को जबरदस्ती ले गया। बाद में याचिकाकर्ता पर उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाते हुए आईपीसी की धारा 376 को शामिल किया गया।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि आपराधिक कार्यवाही केवल उनके द्वारा नहीं किए गए कथित अपराधों के लिए याचिकाकर्ताओं को परेशान करने के मकसद से शुरू की गई है।

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने आक्षेपित आदेश के माध्यम से याचिकाकर्ता पति और अन्य आरोपियों के खिलाफ शिकायत और लड़की के बयान के आधार पर अपहरण और बलात्कार के अपराधों के लिए कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया था।

    पीठ ने पाया था कि शिकायत और पीड़िता के बयान के बावजूद, यह देखा गया कि शिकायतकर्ता (लड़की के चाचा) ने विशेष रूप से अन्य पांच आरोपियों की सहायता से पीड़िता के अपहरण के बारे में आरोप लगाया है। इसके अलावा, लड़की ने खुद अपराध करने का मकसद बताया और अपने बयान में सभी याचिकाकर्ताओं का नाम लिया है।

    जब पति के वकील ने अपना रुख दोहराया कि पीड़िता ने अपनी मर्जी से आदमी के साथ भागकर शादी की थी और याचिकाकर्ताओं को पीड़िता और उसके परिवार की गैरकानूनी मांगों से सहमत करने के लिए एक झूठा मामला तैयार किया गया था तो हाईकोर्ट ने लड़की से ओपन कोर्ट में पूछताछ की थी।

    अदालत ने नोट किया कि पीड़िता पुलिस के सामने दिए गए अपने बयान पर कायम है। उसने दोहराया कि उसने अपने बयान में घटनाओं के क्रम और याचिकाकर्ता द्वारा कथित अपराध को अंजाम देने में निभाई गई भूमिका के बारे में बताया है।

    हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई, 2019 में आक्षेपित आदेश पर रोक लगा दी थी।

    केस का शीर्षक: विनोद कुमार और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य

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