वीसी नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को लेकर केरल के राज्यपाल की आपत्ति, बोले- यह रुझान सही नहीं
Amir Ahmad
15 Dec 2025 11:43 AM IST

केरल के राज्यपाल राजेंद्र अर्लेकर ने राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों (वाइस चांसलर) की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह एक सही परंपरा नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) अधिनियम और संबंधित राज्य यूनिवर्सिटी अधिनियमों के तहत कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार चांसलर को दिया गया है। इस व्यवस्था का सम्मान किया जाना चाहिए।
राज्यपाल की यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के उस हालिया कदम की पृष्ठभूमि में आई, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और राजभवन के बीच जारी गतिरोध को देखते हुए एपीजे अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ डिजिटल साइंसेज इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी के कुलपतियों के चयन की प्रक्रिया में हस्तक्षेप किया। इन दोनों यूनिवर्सिटी के चांसलर राज्यपाल ही हैं जैसा कि संबंधित राज्य अधिनियमों में प्रावधान है।
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने जस्टिस (सेवानिवृत्त) सुधांशु धूलिया की अध्यक्षता में समिति गठित की थी, जिसे राज्य सरकार और राज्यपाल को कुलपति पद के लिए नामों का पैनल सुझाने का निर्देश दिया गया था। हालांकि, समिति द्वारा सुझाए गए नामों पर सरकार और राजभवन के बीच सहमति नहीं बन सकी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह समिति को निर्देश दिया कि वह नामों को सीलबंद लिफाफे में अदालत को सौंपे। इस मामले में अगली सुनवाई 18 दिसंबर को निर्धारित है।
इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए राज्यपाल अर्लेकर ने सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा कि केरल में विश्वविद्यालयों से जुड़े मुद्दे लगातार चर्चा में रहते हैं और 2023 के कन्नूर विश्वविद्यालय मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का व्यापक उल्लेख होता रहा है। उन्होंने याद दिलाया कि उस फैसले में कुलपति की पुनर्नियुक्ति को यह कहते हुए रद्द किया गया कि इसमें सरकार का अनुचित हस्तक्षेप हुआ। उस निर्णय में अदालत ने यूजीसी के अधिकारों और चांसलर की भूमिका को भी स्पष्ट रूप से मान्यता दी थी।
राज्यपाल ने कहा कि जब एक ओर अदालतें यूजीसी और चांसलर के अधिकारों को स्वीकार करती हैं। वहीं दूसरी ओर वही प्रावधान बाद में नजरअंदाज किए जाते हैं। उनके अनुसार, यदि यूनिवर्सिटी एक्ट कहता है कि कुलपति की नियुक्ति चांसलर द्वारा की जानी है और UGC भी यही व्यवस्था निर्धारित करता है तो अदालतों द्वारा स्वयं नियुक्ति करना एक गलत रुझान है।
उन्होंने कहा कि देश की यूनिवर्सिटी सिस्टम और उससे जुड़ी संस्थाएं लंबे समय से स्थापित हैं और उनका सम्मान किया जाना चाहिए। हमें इन संस्थाओं को अपना काम करने देना चाहिए राज्यपाल ने कहा यह जोड़ते हुए कि संवैधानिक और वैधानिक व्यवस्थाओं का पालन ही संस्थागत संतुलन और स्वायत्तता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

