जस्टिस यूयू ललित ने तरुण तेजपाल मामले की इन-कैमरा हियरिंग करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया

LiveLaw News Network

31 Jan 2022 12:48 PM GMT

  • जस्टिस यूयू ललित ने तरुण तेजपाल मामले की इन-कैमरा हियरिंग करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया

    सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस यूयू ललित ने सोमवार को पत्रकार तरुण तेजपाल द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। इस याचिका में बॉम्बे हाईकोर्ट (गोवा बेंच) द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी।

    2013 के एक बलात्कार मामले में तेजपाल के बरी होने के खिलाफ दायर अपील की कार्यवाही बंद कमरे में सुनवाई के लिए तेजपाल के द्वारा सीआरपीसी की धारा 327 के तहत दायर आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव पिछली सुनवाई पर मामले से अलग हो गए थे। इसके बाद मामले को सोमवार को जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया।

    जस्टिस यूयू ललित ने मामले से खुद को अलग कर लिया है, क्योंकि उन्होंने अपने वकालत के दिनों में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता तरुण तेजपाल का प्रतिनिधित्व किया था।

    जस्टिस राव ने 2015 में एक वकील के रूप में गोवा राज्य का प्रतिनिधित्व करने के बाद इस्तीफा दे दिया था। तेजपाल के खिलाफ मामले की जांच और मुकदमा गोवा राज्य द्वारा चलाया गया था।

    तहलका पत्रिका के सह-संस्थापक और पूर्व प्रधान संपादक तेजपाल को 21 मई को गोवा के मापुसा में एक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सभी आरोपों से बरी कर दिया था। उन पर सात और आठ नवंबर, 2013 को ग्रैंड हयात, बम्बोलिम, गोवा की एक लिफ्ट के अंदर उनकी जूनियर सहयोगी ने जबरदस्ती करने का आरोप लगाया गया था। अपने 527 पन्नों के फैसले में विशेष न्यायाधीश क्षमा जोशी ने तेजपाल को संदेह का लाभ देने और पीड़िता के व्यवहार और दोषपूर्ण जांच पर व्यापक टिप्पणी की थी।

    हाईकोर्ट ने माना था कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 327 (2) केवल "जांच" या "ट्रायल" पर लागू होगी और यह अपील पर लागू नहीं होगी या तो दोषसिद्धि के खिलाफ अपील दायर करने की मांग की।

    सीआरपीसी की धारा 327 (2) में प्रावधान है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376, धारा 376ए, धारा 376बी, धारा 376सी या धारा 376डी के तहत बलात्कार या अपराध की जांच और ट्रायल इन कैमरा किया जाएगा, बशर्ते कि पीठासीन अधिकारी न्यायाधीश यदि वह उचित समझे या किसी भी पक्ष द्वारा किए गए आवेदन पर किसी विशेष व्यक्ति को अदालत द्वारा उपयोग किए जाने वाले कमरे या भवन में प्रवेश करने या रहने रहने की अनुमति दे सकते हैं।

    हाईकोर्ट याचिकाकर्ता के इस तर्क से सहमत नहीं कि अनुच्छेद 21 को संहिता की धारा 327(2) में पढ़ना होगा, क्योंकि अगर " इन कैमरा" सुनवाई नहीं की जाती है तो आवेदक के निजता और प्रतिष्ठा के अधिकार का उल्लंघन होता है।

    हाईकोर्ट के अनुसार, वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई की यह आशंका भी उचित नहीं है कि प्रकाशन के डर से आवेदक का अपना बचाव करने का अधिकार छीन लिया जाता है, यदि उसे अपने मामले में स्वतंत्र रूप से बहस करने की अनुमति नहीं दी जाती है।

    खंडपीठ ने कहा कि आवेदक पर अपने मामले में स्वतंत्र रूप से बहस करने के लिए कोई प्रतिबंध या प्रतिबंध नहीं है और न ही अपने मामले पर बहस करने के उसके अधिकार को कम किया जा सकता है।

    हाईकोर्ट ने कहा,

    "इस तरह की कार्यवाही में यानी सामान्य रूप से बलात्कार के मामलों में यह अपेक्षा की जाती है कि सभी पक्ष गरिमा, संयम और कुछ संवेदनशीलता के साथ व्यवहार करें, विशेष रूप से अंतरंग विवरण से संबंधित साक्ष्य पढ़ते समय आवश्यक है। हमें लगता है कि यह बहुत अधिक नहीं है और संबंधित पक्षों की ओर से पेश होने वाले अधिवक्ताओं से अपेक्षा करें। अदालत कक्ष में मर्यादा बनाए रखना वकीलों और न्यायाधीशों की छवि की रक्षा का केवल एक सतही साधन नहीं है - बल्कि न्याय के प्रशासन के लिए यह नितांत आवश्यक है।"

    हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से जस्टिस रेवती डेरे और जस्टिस एम एस जावलकर की खंडपीठ के समक्ष बंद कमरे में कार्यवाही करने का मुद्दा उठाया गया। कहा गया कि सीआरपीसी की धारा 327 एक अनिवार्य प्रावधान है और संबंधित पक्षों यानी आरोपी और पीड़ित दोनों की प्रतिष्ठा और हितों की रक्षा करता है।

    आगे यह तर्क दिया गया कि सीआरपीसी की धारा 327 निष्पक्ष सुनवाई के मौलिक अधिकार के अनुरूप है जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत परिकल्पित है।

    दूसरी ओर, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस तरह के सबमिशन का कड़ा विरोध किया और टिप्पणी की कि 'ये रुकावटें हैं और विवाद नहीं हैं'।

    उन्होंने आगे कहा कि 'इन-कैमरा कार्यवाही' का लाभ केवल ट्रायल के चरण में उपलब्ध है, अपीलीय स्तर पर नहीं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनका इरादा आरोपी का 'नाम उजागर करके उसे शर्मसार' करने का नहीं है।

    केस शीर्षक: तरुण जीत तेजपाल बनाम गोवा राज्य, एसएलपी (सीआरएल) 9769/2021

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