2007 अजमेर ब्लास्ट मामला: सुप्रीम कोर्ट ने देरी के बावजूद पीड़ित की अपील पर मेरिट के आधार पर फैसला करने को कहा

Amir Ahmad

20 Dec 2025 1:03 PM IST

  • 2007 अजमेर ब्लास्ट मामला: सुप्रीम कोर्ट ने देरी के बावजूद पीड़ित की अपील पर मेरिट के आधार पर फैसला करने को कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने 2007 के अजमेर शरीफ दरगाह ब्लास्ट मामले में अहम आदेश देते हुए राजस्थान हाईकोर्ट से कहा कि वह पीड़ित द्वारा दायर अपीलों पर देरी को नजरअंदाज करते हुए मामले के गुण-दोष (मेरिट) के आधार पर फैसला करे। यह निर्देश उन अपीलों से संबंधित है, जिनमें कुछ आरोपियों को बरी किए जाने को चुनौती दी गई।

    जस्टिस एम. एम. सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने यह अंतरिम निर्देश अजमेर शरीफ दरगाह के खादिम और मामले के शिकायतकर्ता सैयद सरवर चिश्ती की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट उपयुक्त आवेदन दायर किए जाने पर पूर्व में अपील खारिज किए जाने के आदेश और अपील दाखिल करने में हुई देरी के बावजूद इस मामले को नए सिरे से सुनकर उसका निपटारा करे।

    यह मामला 11 अक्टूबर, 2007 को रमज़ान के दौरान इफ्तार के तुरंत बाद अजमेर शरीफ दरगाह परिसर में हुए बम विस्फोट से जुड़ा है। इस विस्फोट में तीन लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हुए। जांच के बाद मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंपा गया।

    वर्ष 2017 में NIA की स्पेशल कोर्ट ने भवेश पटेल और देवेंद्र गुप्ता को दोषी ठहराते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। हालांकि, अन्य आरोपियों लोकेश शर्मा, चंद्रशेखर लेवे, मुकेश वासानी, हर्षद उर्फ मुन्ना, नाबा कुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद, माफत उर्फ मेहुल और भारत मोहनलाल रतेश्वर को बरी कर दिया गया। शिकायतकर्ता सैयद सरवर चिश्ती ने इन बरी किए गए आरोपियों के खिलाफ और साथ ही दोषी ठहराए गए दो व्यक्तियों को दी गई सजा की मात्रा को चुनौती देते हुए राजस्थान हाईकोर्ट में अपील दायर की।

    राजस्थान हाईकोर्ट ने वर्ष 2022 में इन अपीलों को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट का कहना था कि अपील दाखिल करने में 90 दिनों से अधिक की देरी हुई और राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 की धारा 21(5) के तहत इस देरी को माफ नहीं किया जा सकता, भले ही मामला लगभग पांच वर्षों तक लंबित रहा हो।

    इस निर्णय को चुनौती देते हुए सैयद सरवर चिश्ती ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उनकी ओर से दलील दी गई कि NIA Act के तहत देरी माफ न करने की कठोर व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करती है। यह भी कहा गया कि ऐसी व्याख्या से अपील का मौलिक अधिकार न्याय तक पहुंच और गंभीर आतंकवाद से जुड़े मामलों में पीड़ितों के अधिकार प्रभावित होते हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने 3 नवंबर, 2025 को इस याचिका पर राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया। इसके बाद 18 दिसंबर को पारित ताजा अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से राजस्थान हाईकोर्ट से अनुरोध किया कि वह आपराधिक अपीलों पर देरी को नजरअंदाज करते हुए मेरिट के आधार पर फैसला करे।

    अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपयुक्त आवेदन दायर होने पर हाईकोर्ट अपीलों का निपटारा गुण-दोष के आधार पर करे भले ही पहले देरी के कारण उन्हें खारिज कर दिया गया हो। अदालत ने इस मामले को आगे की सुनवाई के लिए 24 मार्च, 2026 को सूचीबद्ध किया।

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