धर्म का पालन करना व्यक्तिगत पसंद, दिल्ली हाईकोर्ट ने धर्म परिवर्तन पर नियंत्रण करने की मांग वाली याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

13 March 2020 6:00 AM GMT

  • धर्म का पालन करना व्यक्तिगत पसंद, दिल्ली हाईकोर्ट ने धर्म परिवर्तन पर नियंत्रण करने की मांग वाली याचिका खारिज की

    दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें धमकी देकर धर्म परिवर्तन कराने पर नियंत्रण करने की मांग की गई थी।

    नोटिस जारी करने से इनकार करते हुए मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति हरि शंकर की डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता को अपनी याचिका वापस लेने की स्वतंत्रता दी।

    बेंच ने याचिकाकर्ता से पूछा,

    "जो भी धर्म वे चाहें, उसका पालन करना उनकी व्यक्तिगत पसंद है। आप इस मामले में पार्टी नहीं हैं, हमें इस जनहित याचिका में नोटिस क्यों जारी करना चाहिए।"

    अदालत ने कहा कि विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि धर्म परिवर्तन से पहले जिला मजिस्ट्रेट से अनुमति लेना आवश्यक नहीं है क्योंकि किसी विशेष धर्म का पालन करना व्यक्तिगत पसंद है।

    अदालत ने कहा,

    "आप क्या नियंत्रित करने की मांग कर रहे हैं? हम आपका अनुरोध समझ नहीं पा रहे।"

    किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में प्रेरित धर्म परिवर्तन पर प्रकाश डालते हुए दलीलें 235वें विधि आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की मांग करती हैं।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि समाज के आर्थिक रूप से कमजोर और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को ज़बरदस्ती धार्मिक रूपांतरण के लिए टारगेट किया जाता है।

    याचिकाकर्ता ने कहा,

    'सामाजिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर दलित पुरुषों, महिलाओं और बच्चों और विशेष रूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय का सामूहिक धार्मिक रूपांतरण पिछले 20 वर्षों में बढ़ रहा है।'

    याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि उनके अनुसार, ऐसे उदाहरण हैं जहां काले जादू के माध्यम से या चमत्कारों का उपयोग करके धार्मिक रूपांतरण किए जाते हैं। याचिका में कहा गया है कि संगठन सामाजिक तौर पर आर्थिक रूप से दलित पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को निशाना बनाते हुए बहुत ही आसानी से काम करते हैं और विशेष रूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों के साथ छल कपट और काले जादू के से धर्म परिवर्तन करवाते हैं। '

    याचिकाकर्ता ने कहा कि धार्मिक रूपांतरणों की प्रैक्टिस न केवल किसी के अपने धर्म का प्रचार करने और अभ्यास करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 51 ए के तहत निर्दिष्ट कर्तव्यों के खिलाफ भी है।

    याचिकाकर्ता द्वारा यह भी आरोप लगाया गया है कि विदेशी वित्त पोषित एनजीओ और व्यक्तियों को धार्मिक रूपांतरण के संबंध में मासिक लक्ष्य दिए जाते हैं। इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि धार्मिक रूपांतरण YouTube और Facebook जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से भी किए जा रहे हैं।

    याचिका में कहा गया है कि अगर सरकार द्वारा कोई कदम नहीं उठाया जाएगा, तो भारत में हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे।

    इन दावों के के साथ याचिकाकर्ता ने अदालत से कहा है कि वह जबरन धार्मिक रूपांतरणों को नियंत्रित करने के लिए भारत संघ के साथ-साथ दिल्ली सरकार को भी निर्देश जारी करे। इस मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने किया।

    Next Story