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"यह एक गंभीर मामला है": सुप्रीम कोर्ट ने पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक के अनियमित उपयोग से संबंधित एनजीटी के आदेश के खिलाफ अपील में नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network
10 July 2021 11:34 AM GMT
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Supreme Court of India

सुप्रीम कोर्ट ने पैकेजिंग के उद्देश्य से प्लास्टिक के अप्रतिबंधित और अनियमित उपयोग के मुद्दे से उत्पन्न पर्यावरण से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उठाने वाली याचिका में राष्ट्रीय हरित अधिकरण को चुनौती देने वाली एक अपील में शुक्रवार को नोटिस जारी किया है।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की खंडपीठ ने मामले को चार सप्ताह के बाद सूचीबद्ध करने और इस बीच जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।

हिम जागृति उत्तरांचल वेलफेयर सोसाइटी की वर्तमान अपील अधिवक्ता सृष्टि अग्निहोत्री के माध्यम से चुनौती दी गई है।

एनजीटी ने निम्नलिखित मुद्दों को उठाने वाले एक आवेदन पर 8 जनवरी 2021 को आदेश पारित किया था;

• पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक के अप्रतिबंधित और बड़े पैमाने पर उपयोग, जिसमें पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी) बोतलें और टेट्रा पैकेजिंग जैसे मल्टी-लेयर पैक शामिल हैं, के गंभीर स्वास्थ्य परिणाम हैं।

• भारी धातुओं जैसे सुरमा, सीसा, क्रोमियम, कैडमियम और प्लास्टिसाइज़र जैसे डाय (2-एथिलहेक्सिल) पैथलेट्स (DEHP) की प्लास्टिक में निर्धारित सीमा से अधिक की उपस्थिति, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और ये रसायन खाद्य सामग्री में घुल जाते हैं और अंतःस्रावी और तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं।

• कार्बोनेटेड सॉफ्ट ड्रिंक और शराब की पैकेजिंग में प्लास्टिक के उपयोग पर तत्काल प्रतिबंधित करने की आवश्यकता और अन्य सभी गैर-आवश्यक वस्तुओं में प्लास्टिक की पैकेजिंग को धीरे-धीरे समाप्त करना शामिल है।

• पैकेजिंग में प्रयुक्त प्लास्टिक और मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रतिकूल प्रभाव के बीच की कड़ी है।

अपीलकर्ता ने इस अपील के माध्यम से तर्क दिया है कि एनजीटी ने अपने आदेश के माध्यम से रिकॉर्ड में रखे गए साक्ष्य के बावजूद एनजीटी अधिनियम, 2010 की धारा 14 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने में विफल रहा है। इसके बजाय ट्रिब्यूनल ने त्रुटिपूर्ण रूप से कहा कि प्लास्टिक पैकेजिंग के प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों को एक हद तक नियंत्रित किया गया है क्योंकि भान समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू किया गया है।

इसके अलावा यह तर्क दिया गया है कि रिकॉर्ड पर रखे गए व्यापक वैज्ञानिक साक्ष्य के बावजूद सरकार सात वर्षों में कार्रवाई करने में विफल रही है कि यह मामला ट्रिब्यूनल के समक्ष लंबित है।

अपील में कहा गया है कि,

"वर्षों से इस निष्क्रियता को देखते हुए प्लास्टिक पैकेजिंग के प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों के मुद्दे से निपटने के लिए इसे कार्यकारी अधिकारियों पर छोड़ना व्यर्थ होगा। ट्रिब्यूनल इस मुद्दे पर निर्णय न ले पाना और 2014 से मामला का लंबित रहना, ट्रिब्यूनल की विफलता है। इससे केवल उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है।"

हिम जागृति उत्तरांचल वेलफेयर सोसाइटी बनाम भारत संघ

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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