क्या 'लॉकडाउन' संवैधानिक रूप से वैध है? जनहित याचिका पर गुजरात हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा

LiveLaw News Network

3 Jun 2020 4:39 AM GMT

  • क्या लॉकडाउन संवैधानिक रूप से वैध है? जनहित याचिका पर गुजरात हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा

    Gujarat High Court

    गुजरात हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई की, जिसमें लॉकडाउन की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने याचिका पर केंद्र और गुजरात सरकार से जवाब मांगा है।

    सामाजिक कार्यकर्ता विश्वास सुधांशु भांबुरकर की ओर से दाखिल याचिका में दलील दी गई है, "प्रधान मंत्री ने ईडीए और डीमए कानूनों का प्रयोग कर 24 मार्च 2020 को 3 सप्ताह के लिए लॉकडाउन लगा दिया। यह लॉकडाउन 25 मार्च 2020 को रात 12 बजे से शुरू हुआ था। उसके बाद इस लॉकडाउन को 14 अप्रैल 2020 को, एक मई, 2020; और 17 मई 2020 को तीन बार बढ़ाया गया है, जो आज तक जारी है। लॉकडाउन के तहत कुछ अपवादों के साथ सभी गैर-जरूरी सरकारी प्रतिष्ठानों, वाणिज्यिक और निजी प्रतिष्ठानों, उद्योगों, हवाई, रेल और सड़क परिवहन, आतिथ्य सेवाओं, शैक्षणिक संस्थानों, पूजा स्थलों, राजनीतिक समारोहों पर रोक लगा दी गई ‌थी।''

    याचिका में दलील दी गई कि लॉकडाउन के कारण देश के लोगों के लिए कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा- जिसमें भोजन का संकट, भूख, प्रवासी संकट, चिकित्सा संकट और कई अन्य कठिनाई शामिल हैं।

    लॉकडाउन के तहत सुबह 7 बजे शाम 7 बजे तक कर्फ्यू लागू रहता है, वह भी बिना किसी कानून-व्यवस्था या सार्वजनिक गड़बड़ी के, जिन कारणों से कर्फ्यू लगाया जाता रहा है और यह आज भी जारी है। लॉकडाउन के तहत वरिष्ठ नागरिकों को घरों से बाहर निकलने से रोक दिया गया है। लोगों को चिकित्सा, जीवन की निर्वाह की आवश्यक वस्तुएं खरीदने और विशेष कार्यों और विशेष अवधि के बीच ही घरों बाहर‌ निकलने की अनुमति दी गई है।

    याचिका में आरोप लगाया गया है कि "लॉकडाउन के तहत देश के लोगों को किसी अपराध के बिना ही घरों में बंद कर दिया गया है। इसने देश के लोगों को उनके घरों के अंदर अवैध रूप बंद कर, वह भी बिना किसी कानूनी समर्थन के, संविधान के अनुच्छेद 13, 14, 19 और 21 को भी निलंबित कर दिया गया है", यह आरोप लगाया गया है।''

    याचिका में कहा गया है कि लॉकडाउन शब्द या इसके पर्यायवाची या समकक्ष शब्द का महामारी रोग अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम या भारत के संविधान में उल्लेख नहीं है। "वास्तव में, संविधान घोषित आपातकाल के दौरान भी अनुच्छेद 20 और 21 के निलंबन की अनुमति नहीं देता है। हालांकि, मौजूदा स्थिति घोषित आपातकालीन की स्‍थ‌िति से भी खराब है...।

    याचिका में कहा गया है कि कोरोनावायरस के खिलाफ कार्रवाई के लिए केंद्र और राज्य-ईडीए और डीएमए- को लागू कर सकते हैं। "सरकार का तर्क शायद यह है कि इन दो कानूनों ने उन्हें पर्याप्त शक्तियां दी है और संविधान के 'आपातकालीन प्रावधानों' की आवश्यकता नहीं है।" याचिका में कहा गया है, "ईडीए 19 वीं सदी का कबाड़ है, जिसे औपनिवेशिक शासकों ने क्रूर प्रशासनिक तंत्र के साथ बनाया है, और यह मौलिक अधिकारों पर आधारित संविधान के नियंत्रण के बाहर है।"

    याचिका में खुलासा किया गया है कि लॉकडाउन को लागू करने से पहले संबंधित प्राधिकरणों ने कोई सुरक्षा व्यवस्‍था नहीं की। डीएमए के प्रावधानों विशेष रूप से सेक्‍शन 12 और 13 ने, जिनमें व्यक्तियों के कल्याण और आजीविका की रक्षा को सुनिश्चित किया गया है (अनुच्छेद 21) और अन्य उचित प्रावधानों को लागू नहीं किया गया; इसलिए लॉकडाउन को न तो संवैधानिक रूप से लागू किया गया था और इसे कानूनी रूप से, तार्किक रूप से और वैज्ञानिक रूप से भी लागू नहीं किया गया।

    याच‌िका में पुलिस की क्रूरताओं की ओर भी अदालत का ध्यान आकर्षित किया गया है। याचिका में कहा गया है कि लोगों को न केवल पीटा गया है; बल्‍कि पुलिस इस हद तक क्रूर हो गई है कि उसका व्यवहार केवल अमानवीय कहा जा सकता है। याचिका में इंटर-स्टेट माइग्रेंट वर्कमैन (रेगुलेशन ऑफ इंप्लायमेंट एंड कंड‌िशन ऑफ सर्विस) एक्ट 1979 पर भरोसा किया गया।

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