क्या शिक्षा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत एक सेवा है? सुप्रीम कोर्ट ने एनसीडीआरसी के फैसले के खिलाफ एसएलपी को मंजूरी दी

LiveLaw News Network

3 Nov 2021 3:31 PM IST

  • क्या शिक्षा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत एक सेवा है? सुप्रीम कोर्ट ने एनसीडीआरसी के फैसले के खिलाफ एसएलपी को मंजूरी दी

    सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेष अनुमति याचिका को मंजूरी दी, जो यह मुद्दा उठाती है कि क्या शिक्षा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत एक सेवा है।

    न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा मनु सोलंकी बनाम विनायक मिशन विश्वविद्यालय नामक एक अन्य मामले में विचाराधीन है।

    मामले में एक लड़के ने अपने स्कूल की ओर से आयोजित समर कैंप में हिस्सा लिया। वह स्कूल के स्विमिंग पूल में डूब गया और बाद में उसकी मौत हो गई।

    उसके पिता ने स्कूल की ओर से लापरवाही और सेवा में कमी का आरोप लगाते हुए राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में एक उपभोक्ता शिकायत दर्ज कराई।

    राज्य आयोग ने शिकायत को सुनवाई योग्य नहीं है यह कहकर खारिज कर दिया। अपील में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने मनु सोलंकी एंड अन्य बनाम विनायक मिशन यूनिवर्सिटी (2020) सीपीजे 210 (एनसी) मामले में अपने बड़े बेंच के फैसले पर ध्यान दिया। इसमें यह माना गया था कि शैक्षिक संस्थान उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के दायरे में नहीं आते हैं और शिक्षा जिसमें तैराकी जैसी सह-पाठ्यचर्या संबंधी गतिविधियां शामिल हैं और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अर्थ के भीतर सेवा नहीं है। आयोग ने अपील को खारिज कर दिया।

    मनु सोलंकी में, एनसीडीआरसी ने माना था कि शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थान, जिसमें प्रवेश से पहले और साथ ही प्रवेश के बाद की प्रक्रिया के दौरान व्यावसायिक पाठ्यक्रम और गतिविधियां शामिल हैं और भ्रमण पर्यटन, पिकनिक, अतिरिक्त सह-पाठयक्रम गतिविधियाँ, तैराकी, खेल भी प्रदान करते हैं। कोचिंग संस्थानों को छोड़कर, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत कवर नहीं किया जाएगा।

    इस फैसले के खिलाफ दायर एसएलपी को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि इस संबंध में अलग-अलग विचार हैं।

    पी.टी. कोशी एंड अन्य बनाम एलेन चैरिटेबल ट्रस्ट, सुप्रीम कोर्ट ने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय बनाम सुरजीत कौर [(2010) 11 एससीसी 159] में अपने पहले के फैसले का उल्लेख किया। इसमें यह माना गया था कि शिक्षा एक वस्तु नहीं है। शैक्षणिक संस्थान किसी भी प्रकार की सेवा प्रदान नहीं कर रहे हैं। इसलिए, प्रवेश के मामले में सेवा की कमी का सवाल नहीं हो सकता है। उपभोक्ता फोरम द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत ऐसे मामलों पर विचार नहीं किया जा सकता है।

    हालांकि, पी. श्रीनिवासुलु एंड अन्य बनाम पी.जे. अलेक्जेंडर (2015) मामले में माना गया कि शैक्षिक संस्थान उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के दायरे में आते हैं और शिक्षा एक सेवा है।

    केस का शीर्षक: राजेंद्र कुमार गुप्ता बनाम डॉ वीरेंद्र स्वरूप पब्लिक स्कूल; एसएलपी (सी) 16591/2021

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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