कश्मीर में इंटरनेट और मीडिया पर प्रतिबंध अनुचित, वकील वृंदा ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट में लगातार दूसरे दिन दलील दी
LiveLaw News Network
6 Nov 2019 2:22 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर में लगाए गए इंटरनेट बैन और मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के खिलाफ कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन की याचिका पर वकील वृंदा ग्रोवर की दलीलें लगातार दूसरे दिन सुनीं।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने कहा कि इंटरनेट और मीडिया की तालाबंदी पिछले 90 दिनों से कश्मीर में जारी है, जो बोलने की आज़ादी पर अनुचित प्रतिबंध है।
ग्रोवर कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन की ओर से पैरवी कर रही हैं, जिन्होंने राज्य की विशेष स्थिति के उन्मूलन के मद्देनजर जम्मू-कश्मीर में लगाए गए प्रतिबंध को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है।
"इंटरनेट प्रेस के लिए बड़ी आवश्यकता"
ग्रोवर ने कहा, "प्रतिबंध अनुचित है। इंटरनेट प्रेस के लिए स्वतंत्र रूप से कार्य करने के लिए एक बड़ी आवश्यकता है। इंटरनेट लोकतंत्र में मीडिया को उसकी भूमिका निभाने के तरीके को सुविधाजनक बनाता है। किसी भी हस्तक्षेप से मुक्त प्रेस के अधिकार का उल्लंघन होगा।" उन्होंने मंगलवार से जारी अपने तर्क जारी रखे।
" महानिरीक्षक आदेश जारी नहीं कर सकते"
उन्होंने तर्क दिया कि प्रतिबंद के आदेश बिना सोचे समझे दिए गए थे। महानिरीक्षक द्वारा आदेश पारित किए गए थे, हालांकि, टेलीकॉम टेम्परेरी सस्पेंशन रूल्स 2017 के नियम 2 (1) के अनुसार, केंद्र या राज्य के गृह सचिव के नीचे किसी की रैंक का कोई अधिकारी इस तरह के आदेश जारी करने का अधिकार नहीं रखता। यदि परिस्थितियां अपरिहार्य हैं, तो भी संयुक्त सचिव के पद से नीचे की रैंक का कोई अधिकारी ऐसे आदेश नहीं दे सकता।लेकिन फिर भी, गृह सचिव को 24 घंटे के भीतर इस आदेश की पुष्टि करनी होती है।
इस मामले में जस्टिस एन वी रमना, सुभाष रेड्डी और बी आर गवई की पीठ के समक्ष सुनवाई चल रही है।
ग्रोवर ने यह भी कहा कि मोबाइल नेटवर्क के निलंबन का एक सामान्य आदेश स्वचालित रूप से मीडिया पर लागू नहीं हो सकता। उनका यह तर्क टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5 पर आधारित था।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था, कब तक इंटरनेट बैन जारी रहेगा?
इससे पहले 24 अक्टूबर को जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद प्रतिबंधों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू- कश्मीर प्रशासन और केंद्र सरकार से पूछा था कि आखिर कब तक वहां प्रतिबंध और इंटरनेट बैन जारी रहेंगे ।
जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई के साथ जस्टिस एनवी रमना की तीन जजों की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, "आप स्थितियों की समीक्षा कर सकते हैं, लेकिन हम समय के बारे में जानना चाहते हैं । आप हमें साफ- साफ बताइए।" हालांकि इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि हालात की रोजाना समीक्षा की जा रही है । जम्मू- कश्मीर में 99 प्रतिशत प्रतिबंध हटा लिए गए हैं लेकिन इंटरनेट सेवा बहाल नहीं की गई है क्योंकि इसका असर सीमा पार से पड़ता है ।
उन्होंने कहा कि कोर्ट को कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं करनी चाहिए । दरअसल 16 अक्तूबर को श्रीनगर पुलिस द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला की बहन और बेटी सहित महिला कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने घाटी में संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा हटाने के बाद कश्मीर में बंद और प्रतिबंध से संबंधित सभी आदेशों को दाखिल करने में केंद्र की विफलता पर सवाल उठाए थे । पीठ ने जम्मू-कश्मीर पर लगाए गए प्रतिबंधों के आदेशों को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल ना करने पर नाराज़गी जाहिर की थी ।