भारत का प्रति व्यक्ति वकील अनुपात अधिकांश देशों से बेहतर है, लेकिन कानूनी सहायता कइयों को मयस्सर नहीं : जस्टिस संजीव खन्ना

LiveLaw News Network

22 Jan 2023 6:54 AM GMT

  • भारत का प्रति व्यक्ति वकील अनुपात अधिकांश देशों से बेहतर है, लेकिन कानूनी सहायता कइयों को मयस्सर नहीं : जस्टिस संजीव खन्ना

    सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा ‘न्याय तक पहुंच बढ़ाने पर उत्तरी क्षेत्रीय सम्मेलन' शीर्षक से वाराणसी में शनिवार को आयोजित नालसा के वर्ष 2023 के पहले क्षेत्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि देश का प्रति व्यक्ति वकील अनुपात दुनिया के अधिकांश अन्य देशों की तुलना में कहीं बेहतर होने के बावजूद यह वंचितों के लिए कानूनी सहायता के मामले में संकट का सामना करता है।

    जस्टिस खन्ना ने कहा,

    "यदि कोई विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 की धारा 12 का अवलोकन करता है, जो कानूनी सहायता के लिए पात्र लोगों की श्रेणियों का उल्लेख करता है, तो पूरी भारतीय आबादी का 80 प्रतिशत हिस्सा कानूनी सहायता प्राप्त करने के लिए पात्र है। प्रावधानों को यह सुनिश्चित करने के लिए रखा गया है कि जो लोग कानूनी प्रतिनिधित्व वहन नहीं कर सकते, उनका हर राज्य में कानूनी प्रतिनिधित्व है।"

    उन्होंने आगे कहा,

    "भारत का प्रति व्यक्ति वकील अनुपात दुनिया के अन्य देशों की तुलना में कहीं बेहतर है, लेकिन इसके बावजूद पर्याप्त कानूनी सहायता की समस्या अब भी हमें परेशान करती है।"

    जस्टिस खन्ना ने कानूनी सहायता तक जनता की पहुंच और जनता तक उसकी पहुंच बढ़ाने के दृष्टिकोण में अंतर के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा, "मैं कानूनी सहायता तक पहुंच और उसे लोगों तक पहुंचाने के दृष्टिकोण के बीच अंतर करना चाहता हूं। जब मैं ‘रीच इन’ का संदर्भ देता हूं – तो इसका अर्थ होता है कि जब कोई कानूनी सहायता के लिए हमसे संपर्क करता है। जब हम ‘रीच आउट’ की बात करते हैं तो इसका मतलब होता है कि हमें खुद से लोगों को कानूनी सहायता पहुंचाना होता है। यह कानूनी साक्षरता और कानूनी जागरूकता के रूप में ही हो सकता है। लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि जब किसी भी स्थिति में कोई संकट आता है, तो हमारे पास उससे बाहर आना और उन तक पहुंच बनाना तथा उन्हें कानूनी सहायता प्रदान करना होता है।"

    फिर उन्होंने प्री-ट्रायल चरण में कानूनी सहायता पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता की ओर इशारा किया और कहा, "जहां तक ट्रायल और अपीलीय चरण में कानूनी सहायता का संबंध है, इस पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया है, हालांकि चिंता का क्षेत्र प्री-ट्रायल चरण है, जिसे तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है अर्थात् गिरफ्तारी-पूर्व चरण, गिरफ्तारी चरण और रिमांड चरण। यह वह क्षेत्र है जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए क्योंकि यह एक ऐसी स्थिति है जब किसी व्यक्ति को पुलिस स्टेशन में बुलाया जाता है तो वहां अधिकारों और कानूनी सहायता की उपलब्धता को लेकर जागरूकता का महत्व है।"

    जस्टिस खन्ना ने पीड़ित मुआवजा योजना, गवाह संरक्षण योजना आदि जैसी विभिन्न योजनाओं पर विशेष ध्यान केंद्रित किया और कहा कि इन योजनाओं को क्रियान्वित करने और लागू करने में आने वाली कठिनाइयों को हल करने के लिए कहीं अधिक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

    उन्होंने यह भी कहा,

    "देखिए, इनमें से कई चीजों को लागू नहीं किया जा सकता है। जो करना है, वह है-चुनिंदा और सावधानीपूर्व विभिन्न भूमिकाओं के हिस्सों को लागू करना, जो हमारे पास निश्चित मात्रा में लचीलेपन के साथ है, ताकि हम अपने वैधानिक और संवैधानिक कर्तव्य को पूरा करने में पूरी तरह से सक्षम हो सकें।"

    जस्टिस खन्ना ने व्यक्तिगत अनुभव को साझा करते हुए यह भी बताया कि आज भी कानूनी सहायता लेने वाले मुवक्किलों का मानना है कि उन्हें कानूनी सहायता देने वाले वकील को कुछ पैसे देने होंगे।

    उन्होंने कहा, "मैं आपके साथ साझा करता हूं कि जब मैं हाईकोर्ट के समक्ष कानूनी सहायता वकील के रूप में उपस्थित हो रहा था, तो अभियुक्त मेरे पास अदालत में आया और मुझसे पूछा, "मुझे आपको कितना भुगतान करना है? मैं अचंभित था। लेकिन यह एक सच्चाई है। कई दोषियों का मानना है कि उन्हें भुगतान करना होगा।’’

    वर्ष 2023 के लिए नालसा का पहला क्षेत्रीय सम्मेलन

    सम्मेलन का उद्घाटन जस्टिस संजय किशन कौल ने किया, जिनके साथ जस्टिस संजीव खन्ना और इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजेश बिंदल भी मौजूद थे।

    सम्मेलन में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश और कार्यकारी अध्यक्ष, यूपीएसएलएसए जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश और एचसीएलएससी, इलाहाबाद के अध्यक्ष जस्टिस मनोज मिश्रा ने भी भाग लिया।

    सम्मेलन के प्रतिभागियों में उत्तरी क्षेत्र के 11 प्रतिभागी राज्यों, यानी बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, लद्दाख, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष, हाईकोर्ट कानूनी सेवा समिति के अध्यक्ष और राज्य विधिक सेवा प्राधिकारण के सदस्य सचिव शामिल थे।

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