डीवी एक्ट के तहत पति-पत्नी के बीच विवाद में बेदखली की डिक्री पाने वाले मकान मालिक को भुगतना न पड़े: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

11 March 2022 6:15 AM GMT

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    Supreme Court of India

    सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पति और पत्नी के बीच विवाद में उस मकान मालिक को पीड़ित नहीं होना चाहिए, जो बेदखली की डिक्री का हकदार है।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ दिल्ली हाईकोर्ट के 13 मई, 2021 के आदेश ("आक्षेपित निर्णय") के खिलाफ एसएलपी पर विचार कर रही थी।

    आक्षेपित निर्णय में, हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा था जिसमें कहा गया था कि परिसर पर दंपती का अनधिकृत और अवैध कब्जा था और पट्टेदार को सूट परिसर का कब्जा दे रहे थे।

    पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के विचार को बरकरार रखते हुए अपने आदेश में कहा,

    "घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पति और पत्नी के बीच विवाद में, मकान मालिक, जो बेदखली की डिक्री का हकदार है, को पीड़ित नहीं होना चाहिए। घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पति और पत्नी के बीच का विवाद मकानमालिक को कब्जा पाने से रोक नहीं सकता है और / या उसके अधिकार को समाप्त नहीं कर सकता, यदि वह वाकई हकदार है तो।"

    पीठ ने आगे कहा,

    "अगर पत्नी को पति के खिलाफ किसी वैकल्पिक आवास के संबंध में कोई शिकायत है, तो उसे घरेलू हिंसा अधिनियम और / या किसी अन्य उपाय के तहत उस कार्यवाही के तहत निपटाये जाने की आवश्यकता है जो उसके पति के खिलाफ उपलब्ध हो सकता है।"

    दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष मामला

    पति ने एक परिसर को एक वर्ष की अवधि के लिए 26,500 रुपये प्रति माह के हिसाब से लीज पर लिया था। पट्टेदार ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष बेदखली और हर्जाने की वसूली के लिए एक मुकदमा दायर किया। यह देखते हुए कि दंपती परिसर पर अनधिकृत और अवैध कब्जा जमाए थे, ट्रायल कोर्ट ने 7 फरवरी, 2020 को पट्टेदार को विवादित परिसर का कब्जा दे दिया।

    इससे नाराज पत्नी ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। पत्नी के वकील द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष यह तर्क दिया गया था कि पट्टेदार द्वारा दायर किया गया मुकदमा उसके पति के साथ मिलीभगत से था जिसके साथ उसके वैवाहिक विवाद थे।

    हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा,

    "उक्त मुद्दा मकान मालिक और किरायेदार के बीच विवाद का विषय नहीं हो सकता है। वास्तव में, अपीलकर्ता द्वारा ट्रायल कोर्ट के समक्ष कार्यवाही में दायर एक आवेदन, जिसमें आक्षेपित आदेश पारित किया गया है, अपीलकर्ता द्वारा इस तथ्य के कारण वापस ले लिया गया है कि उसके आवेदन पर डीवी अधिनियम के तहत एक अलग कार्यवाही में कुछ आदेश पारित किए गए हैं, हालांकि बाद में उसे वापस ले लिया गया है। यह अपीलकर्ता के लिए उपयुक्त है कि वह कानून के दायरे में ऐसे उपयुक्त आदेश मांगे, लेकिन निश्चित रूप से इन कार्यवाहियों में नहीं। किसी भी प्रकार से, ट्रायल कोर्ट के समक्ष मामला सीपीसी के आदेश 12 नियम 6 के तहत दायर एक आवेदन के संबंध में था। कोर्ट का विचार था कि सभी आधार, जिसे सिद्ध होना जरूरी है, को संतुष्ट किया गया है।"

    केस शीर्षक: अर्चना गोइंडी खंडेलवाल बनाम राजेश बालकृष्णन मेनन एवं अन्य /अपील के लिए विशेष अनुमति (सी) नंबर 2939/2022

    कोरम: जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना

    याचिकाकर्ता के वकील: अधिवक्ता वी.के. आनंद, रवि कुमार तोमर

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