अगर किसी पार्टी को 51% वोट मिले हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि 49% लोग उसकी सारी बातें बिना किसी विरोध के मान लें : न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता

LiveLaw News Network

26 Feb 2020 2:15 AM GMT

  • अगर किसी पार्टी को 51% वोट मिले हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि 49% लोग उसकी सारी बातें बिना किसी विरोध के मान लें : न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता

    सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने सोमवार को लोकतंत्र में असहमति की बात की। उन्होंने इस धारणा की आलोचना की कि जो लोग सत्ताधारी लोगों की बात नहीं मानते वे "देश विरोधी" हैं।

    सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के कार्यक्रम "लोकतंत्र और असहमति" (डिमॉक्रेसी एंड डिसेंट) पर अपने व्याख्यान में न्यायमूर्ति गुप्ता ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि यद्यपि लोकतंत्र में जो बहुमत में होता है उसी का शासन होता है पर बहुसंख्यावाद लोकतंत्र के ख़िलाफ़ होता है।

    "भारत जैसे देश में, जहां सबसे ज़्यादा वोट पाने वाला जीतता है, ऐसी व्यवस्था पर लोकतंत्र का आधार है, अमूमन सत्ता में क़ाबिज़ होने वाले वोट देने वाले लोगों में बहुमत का प्रतिनिधित्व नहीं करता और बहुमत की तो बात ही छोड़ दीजिए।

    हम फ़र्ज़ करें कि उनको जनसंख्या के 51% लोगों के वोट मिले तो क्या इसका मतलब यह है कि शेष 49% लोग अगले पाँच वर्षों तक अपना मुँह बंद रखेंगे और कुछ नहीं बोलेंगे? क्या इसका यह अर्थ हुआ कि 49% के पास अगले पाँच साल तक कोई आवाज़ नहीं होगी …और जो हो रहा है उसको उसको वे स्वीकार कर लें और इसका विरोध नहीं करें?

    इसलिए, लोकतंत्र में कोई सरकार जब चुनकर सत्ता में आ जाती है, तो यह 100% लोगों की सरकार होती है न कि 51% की होती है भले ही उसको कितने ही प्रतिशत लोगों ने वोट दिया। हर नागरिक भले ही उसने आपको वोट दिया या नहीं दिया, उसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने का अधिकार है," उन्होंने ने कहा।

    असहमति जीवन का अधिकार है

    असहमति को बढ़ावा देना चाहिए। यह बातचीत, बहस, और संवाद से ही हम देश को बेहतर तरीक़े से चला सकते हैं, उन्होंने कहा। पुराने नियमों को चुनौती दिए बिना नए विचार सामने नहीं आ सकते। अगर कोई व्यक्ति स्वीकार्य नियमों को चुनौती नहीं देता है, तो समाज गतिहीन हो जाएगा।

    "इसलिए, असहमति का अधिकार और प्रश्न पूछने का अधिकार लोकतंत्र का न केवल निहित हिस्सा है, यह जीवन के अधिकार का ही निहित हिस्सा है।" न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा।

    "अगर किसी देश को समग्रता में विकसित करना है और वह भी सिर्फ़ आर्थिक या सैनिक ताक़त या किसी और दृष्टि से ही नहीं, नागरिकों के नागरिक अधिकारों को अवश्य ही संरक्षित किया जाना चाहिए।" उन्होंने कहा।

    "सवाल करना, चुनौती देना, जाँच करना, सरकार से उत्तरदायित्व की माँग करना, ये सब नागरिकों के अधिकार हैं। इन अधिकारों को अगर कोई छीन लेता है, हम एक ऐसा समाज बन जाएँगे जो सवाल नहीं करेगा और मृतप्राय बन जाएगा और जो आगे और विकास नहीं कर पाएगा।" उन्होंने कहा।

    न्यायमूर्ति गुप्ता ने असहमति जताने और प्रश्न पूछनेवालों को "देश-विरोध" क़रार देने की हाल की धारणा पर रोष प्रकट किया।

    न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के 15 फ़रवरी के अहमदाबाद के व्याख्यान पर न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा, "असहमति को आँखमूँद कर देश-विरोधी क़रार देना या लोकतंत्र-विरोधी करार देना संवैधानिक मूल्यों को संरक्षित करने की प्रतिबद्धता और संवाद आधारित लोकतंत्र को बढ़ावा देने के विचार पर कुठाराघात है।

    "सिर्फ़ इस वजह से कि आप कोई विरोधी राय रखते हैं, आप देश विरोधी नहीं हो जाते। यह सरकार के ख़िलाफ़ हो सकता है, देश के ख़िलाफ़ नहीं", न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा।

    नागरिकों को मिलकर शांतिपूर्ण विरोध जताने का अधिकार है। सरकार हमेशा ही सही नहीं होती। जब तक कोई क़ानून को नहीं तोड़ता, उसको विरोध प्रदर्शन और असहमति जताने का पूरा अधिकार है, उन्होंने कहा।

    न्यायमूर्ति गुप्ता ने बार एसोसिएशन में इस बात की बढ़ती धारणा के ख़िलाफ़ भी अपनी बात कही जिसमें वे राजद्रोह जैसे मामलों में आरोपियों की पैरवी नहीं करने का प्रस्ताव पास करते हैं।

    "मैंने यह पाया है कि बार एसोसिएशन प्रस्ताव पास करते हैं कि वे अमुक मामलों में पैरवी नहीं करेंगे क्योंकि यह देश-विरोधी मामला है। यह ग़लत है। जब कोई बार एसोसिएशन इस तरह की बात करता है (कुछ ख़ास लोगों की पैरवी नहीं करेंगे), तो यह न्याय के रास्ते में रोड़ा अटकाना हुआ," उन्होंने कहा।

    न्यायमूर्ति गुप्ता ने यह भी याद दिलाया कि क़ानूनी बिरादरी नागरिक स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए हमेशा ही अग्रिम पंक्ति में रही है और उन्होंने वर्तमान पीढ़ी से आह्वान किया कि वे बार की संवैधानिक परंपरा को बनाए रखें।

    फ़ैसलों में असहमति

    न्यायमूर्ति गुप्ता ने इसके बाद फ़ैसलों में जजों की असहमति के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि कई बार असहमति के फ़ैसले भविष्य के क़ानून बन जाते हैं।

    उन्होंने अमेरिका में दासता पर फ़ैसले का ज़िक्र किया जिसमें दासता को संवैधानिक माना गया था। पर आठ जजों में से एक जज ने इससे असहमति जताते हुए अपना फ़ैसला दिया। असहमति का यह फ़ैसला भविष्य का क़ानून बना।

    इसके बाद उन्होंने एके गोपालन मामले में असहमति जताने वाले जज जस्टिस फ़ज़ल अली का ज़िक्र किया जिसे मेनका गांधी के मामले में आए फ़ैसले में स्वीकार किया गया।

    महत्त्वपूर्ण असहमति के दूसरे मामले का ज़िक्र करते हुए उन्होंने खरक सिंह मामले में न्यायमूर्ति सुब्बा राव की असहमति का ज़िक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। कई साल बाद इस विचार को अब स्वीकार कर लिया गया है।

    उन्होंने कहा, "न्यायमूर्ति सुब्बा राव की असहमति अपने समय से काफ़ी आगे की बात थी।"

    इसके बाद उन्होंने नरेश मिराजकर मामले में न्यायमूर्ति हिदायतुल्ला की असहमति का ज़िक्र किया कि क्या न्यायिक कार्रवाई को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानकर इसे चुनौती दी जा सकती है या नहीं।

    न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा, "यह अभी भी अल्पमत का फ़ैसला है। पर यह बदलता है कि नहीं इसके बारे में समय ही बताएगा।"

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के आधार मामले में और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा के सबरीमाला मामले में असहमति के फ़ैसले का भी उन्होंने ज़िक्र किया।

    इसके बाद उन्होंने, जैसा कि उन्होंने बताया, उनके लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण असहमति का फ़ैसला था : न्यायमूर्ति एचआर खन्ना का एडीएम जबलपुर मामले में असहमति का फ़ैसला जिसकी वजह से उन्हें मुख्य न्यायाधीश का पद गँवाना पड़ा।


    "जहाँ तक असहमति की बात, है कुछ भी पवित्र नहीं है। सैन्य बल सहित सभी संस्थान की आलोचना हो सकती है," न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा।

    अंत में उन्होंने कहा कि अगर हम असहमति को दबाने की कोशिश करेंगे, तो हम एक पुलिसिया राज्य बन जाएँगे और हमारे देश के निर्माताओं ने ऐसी कल्पना नहीं की थी।

    उन्होंने टैगोर की एक कविता को उद्धृत करते हुए अपने व्याख्यान का समापन किया "जहाँ मन भयमुक्त हो …" और कहा कि ये पंक्तियाँ असहमति को दी गई श्रद्धांजलि है।

    उपस्थित श्रोताओं ने न्यायमूर्ति गुप्ता का तालियों की गड़गड़ाहट से अभिवादन किया।

    एससीबीए के अध्यक्ष वरिष्ठ वक़ील दुष्यंत दवे ने न्यायमूर्ति गुप्ता से कहा, "आज के माहौल में, आपने जो कहा है उससे बहुतों को सुकून मिलेगा।"

    "आपका व्याख्यान आज के समय में काफ़ी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आपने हमें बोलने के लिए उत्साहित किया है," दवे ने कहा।

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