"अगर कोई पुरुष और महिला एक कमरे में हैं और पुरुष के अनुरोध को महिला स्वीकार करती है तो क्या हमें और कुछ कहने की आवश्यकता है" : सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार मामले में वरुण हिरेमठ को जमानत देने के खिलाफ दायर याचिका पर कहा
LiveLaw News Network
4 Jun 2021 2:45 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में 22 वर्षीय महिला से बलात्कार करने के आरोपी टीवी पत्रकार वरुण हिरेमठ को गिरफ्तारी से पहले जमानत देने के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी है।
न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अवकाश पीठ ने बलात्कार मामले की शिकायतकर्ता द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया है।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने प्रस्तुत किया कि बलात्कार के मामले में हाईकोर्ट द्वारा दी गई अग्रिम जमानत के खिलाफ यह याचिका दायर की गई है, जो कानून के उन वैधानिक बदलाव की अवहेलना करते हुए दी गई,जिनको सोच-समझकर किया गया था। उन्होंने कहा कि अदालत ने सीआरपीसी की धारा 164 के बयान के चुनिंदा हिस्से को पढ़ने के बाद वस्तुतः संदेह का लाभ प्रदान किया है।
बेंच ने पूछा कि,''आपका 164 स्टेटमेंट कहाँ है?''
वरिष्ठ वकील ने कहा, ''हम इसके हकदार नहीं हैं, क्योंकि माई लॉर्ड्स ने कहा है कि इसे चार्जशीट से पहले किसी को नहीं दिया जाना चाहिए, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे वस्तुतः बाहर निकाल दिया है, इसलिए मैं इसे आदेश में से पढ़ सकती हूं।''
बेंच ने कहा,''आपको इसे हाईकोर्ट के आदेश से ही निकालने की आवश्यकता नहीं है, यह वैसे भी उपलब्ध है।''
वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने कहा कि आरोपी 50 दिनों तक गिरफ्तारी से बचता रहा, पूरा परिवार अपना घर छोड़ गया और गैर-जमानती वारंट जो चिपकाए गए थे, उनकी अनदेखी की गई।
इस पर बेंच ने कहा कि,
''हमारा सवाल विशुद्ध रूप से केवल जमानत के उद्देश्य से है। सामान्य मानव आचरण, व्यवहार और समझ का सवाल है। यदि कोई पुरुष और महिला एक कमरे में हैं, तो पुरुष एक अनुरोध करता है और महिला उसको स्वीकार करती है, क्या इस स्तर पर हमें कुछ और कहने की आवश्यकता है?''
वरिष्ठ वकील ने जवाब दिया कि भारतीय दंड संहिता में कहा गया है कि प्रत्येक अधिनियम के लिए एक स्पष्ट सहमति होनी चाहिए।
वरिष्ठ वकील ने कहा, ''आइए एक ऐसी स्थिति की कल्पना करें, जहां मैं खुद अपने कपड़े उतारती हूं, लेकिन एक विशेष गतिविधि है जिसमें आदमी लिप्त होना चाहता है, और मैं इसे ना कहती हूं, और यह एक पेनिट्रेटिव एक्ट है, यह एक अपराध बन जाता है।''
पीठ ने कहा कि,''यह एक बहुत बड़ा सवाल है जिस पर बाद में फैसला किया जाएगा। हमने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि हम जो कुछ भी कह रहे हैं वह केवल जमानत रद्द करने के उद्देश्य से है।''
पीठ ने वरिष्ठ वकील से कहा कि वह जमानत के आवेदन पर अभियोजन द्वारा दायर जवाब के कुछ हिस्सों को पढ़ें, जिसमें लिखा था कि धारा 164 के तहत अपने बयान में पीड़िता ने प्राथमिकी में दिए गए अपने बयान का पूरी तरह से वर्णन और समर्थन किया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा,''एफआईआर का एक हिस्सा कहता है कि उसने जोर दिया, लेकिन यह एक स्टैंडअलोन नहीं है, इससे पहले पीड़िता ने लॉबी में कहा था कि उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है। हाईकोर्ट ने आग्रह और बल के बीच एक शब्दार्थ अंतर बनाया है। कपड़े उतारने के बाद भी, पेनिट्रेशन से पहले, उसने उसे दूर धकेल दिया था और कई बार 'नहीं' कहा था, उसके ऊपर उल्टी कर दी लेकिन उसने जोर दिया।''
वरिष्ठ वकील नित्या रामकृष्णन ने तर्क दिया कि केवल यह तथ्य कि एक समय पर उसने कपड़े उतारे थे, आक्रामकता या आघात की भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं है।
उन्होंने कहा कि एक समय पर आरोपी को यह संकेत दिया गया था कि पीड़िता यह नहीं चाहता है, लेकिन उसने कहा ''देखो मैंने कमरे के लिए 11000 रुपये का भुगतान किया है, इसलिए आपको इसको स्वीकार करना होगा।''
वरिष्ठ अधिवक्ता ने निष्कर्ष निकाला,''यह निरंतर सहमति की स्थिति नहीं थी। पेनिट्रेटिव एक्ट, जो अपराध का गठन करती है वह पूरी तरह से उसकी सहमति के बिना की गई थी। ऐसे में उसे हिरासत में पूछताछ के एक दिन का भी पालन क्यों नहीं करना चाहिए?''
पीठ ने कहा कि वह आरोपी को दी गई अग्रिम जमानत में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं है और विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी।