'मानवीय एवं यथोचित' : सुप्रीम कोर्ट ने दो से अधिक बच्चों वाले न्यायिक कर्मचारियों पर लगाये गये अर्थदंड में छूट संबंधी मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा

LiveLaw News Network

28 Aug 2020 6:02 AM GMT

  • मानवीय एवं यथोचित : सुप्रीम कोर्ट ने दो से अधिक बच्चों वाले न्यायिक कर्मचारियों पर लगाये गये अर्थदंड में छूट संबंधी मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा

    सुप्रीम कोर्ट ने दो से अधिक बच्चे होने के कारण जिला अदालत के कई कर्मचारियों पर लगाये गये जुर्माने में छूट संबंधी मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है।

    सिविल सर्विसेज (कंडक्ट) रूल्स, 1965 के नियम 22 के उपखंड (4) के अनुसार, यदि किसी सरकारी सेवक के दो से अधिक बच्चे होते हैं और यदि उनमें से किसी एक बच्चे का जन्म 26 जनवरी 2001 के बाद हुआ हो तो उसे कदाचार माना जायेगा। मध्य प्रदेश जिला अदालत प्रतिष्ठान (भर्ती एवं सेवा शर्तें) रूल्स, 2016 का उपरोक्त प्रावधान राज्य के सरकारी कर्मचारियों पर लागू होगा, जो हाईकोर्ट की ओर से किये जाने वाले संशोधन, बदलाव एवं अपवादों के अधीन होगा।

    तीन या चार बच्चों वाले कर्मचारियों के संचयी प्रभाव (क्यूमुलेटिव इफेक्ट) के साथ दो इंक्रीमेंट (वेतन बढोतरी) रोकने के आदेश दिये गये थे, जिसके खिलाफ कई कर्मचारियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने कर्मचारियों की ओर से चुनौतियों पर विचार करते हुए वेतन वृद्धि रोकने की सजा को सेन्सर (आधिकारिक निंदा / डांट फटकार) में तब्दील कर दिया।

    हाईकोर्ट ने कहा कि संचयी प्रभाव वाले दो या तीन वेतन बढोतरी (इंक्रीमेंट) रोकने का जुर्माना गैर- आनुपातिक है और कथित कदाचार के आनुपातिकता के सिद्धांत के खिलाफ है। हाईकोर्ट प्रशासन ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी।

    मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रमासुब्रमण्यम की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के कर्मचारियों को राहत प्रदान करने वाले आदेश में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए कहा :

    " हमें हाईकोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप का कोई कारण नजर नहीं आता, जो कथित कदाचार से निपटने के लिए मानवीय और यथोचित है और जहां तक न्यायिक कर्मचारियों को राहत प्रदान की गयी है उस निर्णय में हस्तक्षेप करने के हम पक्ष में नहीं हैं। इसलिए प्रतिवादियों को राहत प्रदान करने वाले हाईकोर्ट के आदेश के इस अशं को जायज ठहराया जाता है।"

    हालांकि, बेंच ने हाईकोर्ट के उस निर्देश को दरकिनार कर दिया जिसमें उसने किसी भी जिला जज के समक्ष 28 जून 2019 से पहले लंबित और हाईकोर्ट रजिस्ट्री के समक्ष लंबित अपील को भी इसी तरह 'सेन्सर' की सजा देने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने सामान्य एवं सर्वसमावेशी दिशानिर्देश जारी करके गंभीर त्रुटि की है। यह उसके समक्ष लंबित मामले के दायरे से बाहर था।

    केस का ब्योरा

    केस का नाम : रजिस्ट्रार जनरल, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर बनाम बसंत कुमार गुप्ता एवं अन्य

    केस नंबर : विशेष अनुमति याचिका (सिविल) नंबर 2021-2029/2020

    कोरम : मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रमासुब्रमण्यम

    वकील : सीनियर एडवोकेट रवीन्द्र श्रीवास्तव, एएजी स्वरूपमा चतुर्वेदी

    आदेश की प्रति डाउनलोड करेंं



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