"आप इसके लिए बच्चों का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं?" सुप्रीम कोर्ट ने रेहाना फातिमा को POCSO केस में अग्रिम ज़मानत देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

7 Aug 2020 8:12 AM GMT

  • आप इसके लिए बच्चों का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने रेहाना फातिमा को POCSO केस में अग्रिम ज़मानत देने से इनकार किया

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विवादों में रहीं केरल की कार्यकर्ता रेहाना फ़ातिमा को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। रेहाना फ़ातिमा पर उनके अर्ध नग्न शरीर पर अपने बच्चों से पैंटिंग करवाते हुए एक वीडियो जारी करने का आरोप है।

    रेहाना फ़ातिमा पर अपने अर्ध-नग्न शरीर पर अपने बच्चों को पेंटिंग दिखाते हुए एक वीडियो पर मामला दर्ज किया गया। केरल हाईकोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी से पहले जमानत देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने केरल हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिस पर आज सुनवाई हुई।

    पीठ का नेतृत्व कर रहे न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने फातिमा के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन, से पूछा:

    "आप हमारे सामने किस तरह का मामला लाए हैं? मैं थोड़ा चकित हू।"

    शंकरनारायणन ने बताया कि यह मुद्दा लैंगिक अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम 2012 (POCSO)के तहत अश्लील साहित्य के प्रावधानों को लागू करने से संबंधित है।

    न्यायमूर्ति मिश्रा ने मामले में फिर से उदासीनता व्यक्त करते हुए और वीडियो में बच्चों के इस्तेमाल पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा:

    "इस तरह के मामले में कोई दिलचस्पी नहीं है। आप इसके लिए बच्चों का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं? बच्चे किस तरह की संस्कृति सीखेंगे?"

    फातिमा के वकील ने जवाब दिया कि अश्लीलता के बारे में कामुकता और संकीर्ण विचारों पर उचित जागरूकता फैलाने के इरादे से उक्त वीडियो बनाया गया था।

    "उनका स्टैंड हमेशा से रहा है अगर कोई पुरुष आधा नग्न खड़ा है, तो उसके बारे में कुछ भी सेक्सुअल नहीं है, लेकिन अगर कोई महिला ऐसा करती है, तो यह अश्लील है। वह कहती हैं कि इसमें सुधार लाने का एकमात्र तरीका लोगों को इस बारे में संवेदनशील बनाना है।"

    न्यायमूर्ति मिश्रा ने जवाब दिया, "वह इन बातों को समझने के लिए काफी उम्रदराज़ हैं।"

    शंकरनारायणन ने फातिमा का पक्ष रखते हुए प्रस्तुत किया,

    "मैं यहां नैतिकता के मुद्दे पर नहीं हूं। मैं उस तरह के प्रावधानों के पहलू पर हूं जो मेरे लिए लागू किए गए हैं। वीडियो में बच्चे पूरी तरह से कपड़े पहने हुए हैं। यह मामला POCSO की धारा 13 के तहत कैसे आ सकता है?"

    न्यायमूर्ति मिश्रा ने जवाब दिया, "हां, प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है। उच्च न्यायालय पहले ही मामले के गुण देख चुका है।"

    जब वकील ने पूछा कि उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंकुश क्यों लगाया जाना चाहिए, तो पीठ ने संकेत दिया कि यह आवश्यक था ताकि वह इसे फिर से ऐसा न करे।

    रेहाना फ़ातिमा की इस दलील को हाईकोर्ट ने नामंज़ूर कर दिया था कि यौन शिक्षा देने के लिए उन्होंने उस वीडियो को प्रकाशित किया जिसमें उनके बच्चे को उनके नग्न शरीर पर पेंटिंग करते दिखाया गया है। कोर्ट ने रेहाना को इस आधार पर अग्रिम ज़मानत देने से इनकार कर दिया था।

    केरल हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति पीवी कुन्हीकृष्णन ने कहा कि वह अपने 14 साल के बेटे और 8 साल की बेटी को जिस तरह से चाहें अपने घर के अंदर यौन शिक्षा देने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन इस बारे में कोई वीडियो जारी करना, जिसमें उनके बच्चे को उनके शरीर पर पेंटिंग करते दिखाया गया है, प्रथम दृष्टया बच्चों को अश्लील तरीक़े से पेश करने का अपराध है।

    फ़ातिमा के वीडियो से काफ़ी हंगामा मचा था और इस बारे में दो एफआईआर दर्ज कराई गई हैं। उन पर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 की धारा 13, 14 और 15, सूचना तकनीक अधिनियम, 2000 की धारा 67B(d) और जुवेनाइल जस्टिस (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 75 के तहत मामले दर्ज किए गए हैं।

    रेहाना फ़ातिमा ने अग्रिम ज़मानत के लिए आवेदन दिया था और अपनी दलील में कहा कि उसका उद्देश्य बच्चों को शरीर और उसके विभिन्न अंगों के बारे में बताना था, ताकि वे शरीर को एक अलग नज़रिए से देखें न कि सिर्फ़ यौन उपकरण के रूप में।

    केरल उच्च न्यायालय के फैसले पर सवाल उठाते हुए रेहाना ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में तर्क दिया था कि सिर्फ नग्नता को अपने आप में अश्लीलता नहीं माना जा सकता। इस संबंध में अवीक सरकार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि केवल सेक्स से संबंधित सामग्री "उत्तेजक वासनापूर्ण विचार" को ही अश्लील माना जा सकता है।

    उन्होंने कहा कि वीडियो "अपने बच्चों के लिए शरीर के महिला रूप को सामान्य बनाने और उनके दिमाग में व्याप्त विकृत विचारों को न आने देने" के लिए एक संदेश फैलाने के इरादे से बनाया और अपलोड किया गया था।

    याचिका में कहा गया था कि

    "याचिकाकर्ता ने अर्ध-नग्न होते हुए अपने शरीर को अपने बच्चों को एक कैनवास के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दी और एक विकृत मानसिकता के अलावा शायद ही और कोई व्यक्ति हो जो, जिसमें इस प्रकृति की कला को देखकर कामुक इच्छा से जागे।"

    हाईकोर्ट द्वारा POCSO की धारा 13 के आह्वान को चुनौती देते हुए याचिका में कहा गया

    "इस मामले में किसी भी बच्चे का कोई अभद्र या अश्लील प्रतिनिधित्व नहीं किया गया है - वास्तव में, वे केवल एक बेतरतीब तरीके से पेंट कर रहे हैं क्योंकि बच्चे ऐसा करने के लिए अभ्यस्त हैं। इसलिए यह निष्कर्ष निकालना असंभव है कि यह किसी भी बच्चे का यौन संतुष्टि के लिए उपयोग किया गया था।"

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