यदि इस तरह के प्रथागत अधिकार का अस्तित्व स्थापित हो तो प्रथागत तलाक के माध्यम से हिंदू विवाह को समाप्त किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

Sharafat

5 Oct 2023 5:10 AM GMT

  • यदि इस तरह के प्रथागत अधिकार का अस्तित्व स्थापित हो तो प्रथागत तलाक के माध्यम से हिंदू विवाह को समाप्त किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक हिंदू विवाह को प्रथागत तलाक विलेख (customary divorce deed) के माध्यम से समाप्त किया जा सकता है, बशर्ते ऐसे प्रथागत अधिकार का अस्तित्व स्थापित हो।

    यह हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 29(2) के आधार पर है, जिसमें कहा गया है कि अधिनियम का कोई भी प्रावधान हिंदू विवाह के विघटन को प्राप्त करने के लिए रीति-रिवाज द्वारा मान्यता प्राप्त या किसी विशेष अधिनियम द्वारा प्रदत्त किसी भी अधिकार को प्रभावित नहीं करेगा।

    साथ ही न्यायालय ने कहा कि प्रथागत तलाक विलेख पर भरोसा करने वाले पक्ष को यह साबित करना होगा कि ऐसा प्रथागत अधिकार (customary right) अस्तित्व में है। ऐसे प्रथागत अधिकार के अस्तित्व के संबंध में न्यायालय के समक्ष एक विशिष्ट दलील होनी चाहिए और इसे साक्ष्य के माध्यम से स्थापित किया जाना चाहिए।

    न्यायालय ने ये टिप्पणियां हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील पर विचार करते हुए कीं, जिसने घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम 2005 के तहत एक पत्नी द्वारा दायर शिकायत को रद्द कर दिया था। हाईकोर्ट ने एक कथित प्रथागत तलाक विलेख पर भरोसा किया, जिसे पति ने अदालत में पत्नी द्वारा दायर डीवी एक्ट की शिकायत रद्द करने के लिए पेश किया था। हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    पति ने दावा किया कि विवाह एक प्रथागत तलाक विलेख के माध्यम से भंग कर दिया गया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तलाक के लिए प्रथागत अधिकार का अस्तित्व एक तथ्य का प्रश्न है जिसे एक मुकदमे में सिविल कोर्ट के समक्ष स्थापित किया जाना है।

    कोर्ट ने कहा,

    " यह मुद्दा कि क्या पार्टियां उस प्रथा द्वारा शासित होती हैं जिसके तहत 1955 अधिनियम की धारा 11 और 13 का सहारा लिए बिना तलाक प्राप्त किया जा सकता है, मूल रूप से तथ्य का प्रश्न है जिसे विशेष रूप से प्रस्तुत करने और ठोस साक्ष्य के माध्यम से साबित करने की आवश्यकता है। इस तरह के प्रश्न का निर्णय आमतौर पर केवल सिविल कोर्ट द्वारा ही किया जा सकता है।''

    भले ही यह मान लिया जाए कि डीवी एक्ट के तहत शक्तियों का प्रयोग करने वाला एक न्यायिक मजिस्ट्रेट एक प्रथागत तलाक विलेख की वैधता तय करने की क्षमता रखता है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा निर्धारण केवल पति द्वारा दायर एक आवेदन पर नहीं हो सकता है।

    न्यायालय ने कहा कि पति का दायित्व है कि वह अपनी दलीलों में उचित आधार रखे और लंबे समय से चली आ रही प्रथा को साबित करने के लिए त्रुटिहीन सबूत पेश करे और फिर यह स्थापित करे कि प्रथागत अधिकारों का सहारा लेकर उनकी शादी वैध रूप से समाप्त हो गई थी। न्यायालय ने कहा कि जब तक पति सार्वजनिक नीति के अनुरूप इस प्रथा की व्यापकता और प्रथागत तलाक विलेख की प्रवर्तनीयता को साबित नहीं करता है, तब तक दोनों पक्षों के बीच विवाह कायम रहने की वैधानिक धारणा है।

    सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट ने केवल कथित प्रथागत तलाक विलेख पर डीवी अधिनियम की शिकायत को रद्द करके कानूनी रूप से गलती की है। अदालत ने याद दिलाया कि प्रथागत तलाक के दस्तावेज को साबित करने की जिम्मेदारी प्रतिवादी (पति) पर है जो उस पर भरोसा कर रहा है।

    हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया गया और प्रथागत तलाक विलेख पर भरोसा किए बिना मामले को नए सिरे से विचार के लिए वापस भेज दिया।

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