हिजाब केस की लिस्टिंग में देरी- 'जजों की तबीयत ठीक नहीं, जल्द ही बेंच का गठन करेंगे': सीजेआई एनवी रमना ने कहा

Brij Nandan

2 Aug 2022 7:04 AM GMT

  • हिजाब केस की लिस्टिंग में देरी- जजों की तबीयत ठीक नहीं, जल्द ही बेंच का गठन करेंगे: सीजेआई एनवी रमना ने कहा

    हिजाब मामले (Hijab Case) को आज भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना (CJI Ramana) के समक्ष तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए फिर से उल्लेख किया गया।

    सीनियर एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा, जो उल्लेख करने के लिए वहां मौजूद थीं, ने अपना सबमिशन शुरू करने से पहले, सीजेआई एनवी रमना ने उनसे कहा- "मैं बेंच का गठन करूंगा। जजों में से एक की तबीयत ठीक नहीं है।"

    अरोड़ा ने कहा कि याचिकाएं मार्च में बहुत पहले दायर की गई थीं। कम से कम अगर एक तारीख दी जा सकती थी।

    सीजेआई रमना ने कहा,

    "अगर जज ठीक होते, तो मामला आ जाता।"

    शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध को बरकरार रखते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा 15 मार्च को दिए गए फैसले के खिलाफ याचिकाएं दायर की गई हैं।

    दो हफ्ते पहले, 13 जुलाई को, एडवोकेट प्रशांत भूषण ने मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने का उल्लेख करते हुए कहा था कि मार्च से याचिकाओं को सूचीबद्ध नहीं किया गया है और छात्रों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

    सीजेआई तब मामले को अगले सप्ताह सूचीबद्ध करने के लिए सहमत हुए थे।

    मार्च में, सीजेआई ने मामले की तत्काल सूचीबद्ध के लिए सीनियर एडवोकेट देवदत्त कामत की याचिका को यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि हिजाब मुद्दे का परीक्षा से कोई लेना-देना नहीं है। 26 अप्रैल को, एक बार फिर से उल्लेख करने का प्रयास किया गया था। इस बार सीनियर मीनाक्षी अरोड़ा द्वारा। सीजेआई ने उनसे कहा था कि मामले को 2-3 दिनों में सूचीबद्ध किया जाएगा।

    एसएलपी कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा पारित 15 मार्च के फैसले के खिलाफ दायर किया गया है, जिसमें सरकारी आदेश दिनांक 05.02.2022 को बरकरार रखा गया है, जिसने याचिकाकर्ताओं और ऐसी अन्य महिला मुस्लिम छात्रों को अपने पूर्व-विश्वविद्यालय कॉलेजों में हेडस्कार्फ़ पहनने से प्रतिबंधित कर दिया है।

    चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की पूर्ण पीठ ने कहा था कि महिलाओं द्वारा हिजाब पहनना इस्लाम की एक अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है।

    पीठ ने आगे कहा था कि शैक्षणिक संस्थानों में ड्रेस कोड का प्रावधान याचिकाकर्ताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है।

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