दो सौ से अधिक वकीलों ने न्यायाधीशों की समिति के समक्ष अभिवेदन देकर कोविड के इलाज खोजे जाने या टीका विकसित किये जाने तक परम्परागत पद्धति से सुनवाई (फीजिकल हियरिंग) के निर्णय को टालने और वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई जारी रखने का अनुरोध किया है।
इन वकीलों ने परम्परागत सुनवाई शुरू करने के सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) के दृष्टिकोण का यह कहते हुए विरोध किया है कि इससे अदालत कक्षों में कोरोना महामारी के संक्रमण के प्रसार का जोखिम बढ़ेगा।
इन वकीलों का कहना है कि भारत सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) दोनों ने ही आगाह किया है कि कोरोना वायरस हवा में भी मौजूद रहता है और इस महामारी के सामुदायिक प्रसार के लिए सामाजिक दूरी आवश्यक है। पत्र में कहा गया है कि ऐसी परिस्थितियों में अदालत कक्षों के दरवाजे खोले जाने से न्यायाधीशों, कोर्ट रूम कर्मचारियों और मामले की पैरवी कर रहे वकीलों में संक्रमण के प्रसार का खतरा बढ़ेगा।
एससीबीए और एससीएओआरए ने पिछले महीने एक संयुक्त प्रस्ताव पारित करके सुप्रीम कोर्ट में फीजिकल हियरिंग शुरू करने की मांग की थी। प्रस्ताव में कोरोना वायरस से उत्पन्न महामारी की स्थिति की वजह से हो रही वर्चुअल सुनवाई में 'गम्भीर विवशता' के साथ कामकाज होने का उल्लेख किया था।
दूसरी ओर, समिति के समक्ष प्रस्तुत अभिवेदन में कहा गया है कि मौजूदा परिस्थितियों में सामाजिक दूरी बनाये जाने की आवश्यकता है और वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये अधिक संख्या में मामलों का निस्तारण किया जा सकता है।
पत्र में कहा गया है,
"हमारा विनम्र मत है कि जब तक कोविड-19 का इलाज नहीं खोज लिया जाता या टीके को विकसित नहीं कर लिया जाता तब तक कोर्ट में सुरक्षित और प्रभावी कामकाज के लिए वीडियो कांफ्रेंसिंग ही एक मात्र बेहतर विकल्प है। यह बहुत ही स्पष्ट है कि मौजूदा परिस्थितियों में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये ज्यादा से ज्यादा संख्या में मामलों का निस्तारण किया जा सकता है।"
इससे पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) शरद अरविंद बोबडे ने सूचित किया था कि सात न्यायाधीशों की एक समिति फीजिकल कोर्ट हियरिंग शुरू किये जाने के मसले का हल ढूंढेगी। बाद में छह अगस्त को न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित ने दो सप्ताह के बाद कुछ सीमित मामलों में परम्परागत तरीके से सुनवाई शुरू होने की संभावना जतायी थी।
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