हाईकोर्ट को निपटान पर नज़र रखने के लिए स्पेशल एमपी/एमएलए कोर्ट से मासिक रिपोर्ट मांगनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट को एमिक्स क्यूरी का सुझाव

Shahadat

15 Sept 2023 10:54 AM IST

  • हाईकोर्ट को निपटान पर नज़र रखने के लिए स्पेशल एमपी/एमएलए कोर्ट से मासिक रिपोर्ट मांगनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट को एमिक्स क्यूरी का सुझाव

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एमिक्स क्यूरी सीनियर एडवोकेट विजय हंसारिया ने निर्वाचित प्रतिनिधियों (सांसदों/विधायकों) के खिलाफ आपराधिक मामलों से संबंधित मामले में अपनी 19वीं रिपोर्ट में ऐसे मामलों के शीघ्र निपटान के लिए कई निर्देश जारी करने का सुझाव दिया है।

    अपनी नवीनतम रिपोर्ट में एमिक्स क्यूरी के सुझावों में सांसदों/विधायकों के खिलाफ मामलों के निपटारे के लिए गठित स्पेशल कोर्ट से हाईकोर्ट में पांच साल से अधिक समय से लंबित मामलों में देरी के कारणों और आने वाली कठिनाइयों के बारे में मासिक रिपोर्ट मांगना शामिल है। ऐसे मामलों में सुनवाई समाप्त करना है। एमिक्स क्यूरी ने यह भी सुझाव दिया कि हाईकोर्ट अपनी वेबसाइटों पर सांसदों/विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों के संबंध में अलग अनुभाग बनाएं।

    सुप्रीम कोर्ट 2016 से अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका में सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान की निगरानी कर रहा है।

    सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2022 में सभी हाईकोर्ट को सांसदों/विधायकों से संबंधित उन आपराधिक मामलों की संख्या, जो पांच साल से अधिक की अवधि के लिए लंबित हैं, रिकॉर्ड पर रखने का निर्देश दिया था, ट्रायल करने के लिए आवंटित न्यायाधीशों की संख्या; प्रति न्यायाधीश केस लोड और इन मामलों का शीघ्र निपटान सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।

    इसके अनुसरण में विभिन्न हाईकोर्ट ने लंबित मामलों का विवरण प्रस्तुत किया। एमिक्स क्यूरी ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में लंबित मामलों की राज्यवार स्थिति को सारणीबद्ध किया। एमिक्स क्यूरी द्वारा सारणीबद्ध आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश राज्य में निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। इसके बाद बिहार राज्य का नंबर है। नवंबर 2022 तक यूपी में ऐसे मामलों की संख्या 1377 है। इनमें से 719 मामले 5 साल से अधिक समय से लंबित हैं। बिहार में नवंबर 2022 तक ऐसे 546 मामले लंबित हैं। इनमें से 381 मामले 5 साल से अधिक समय से लंबित हैं।

    एमिक्स क्यूरी ने 14.11.2022 को अपनी 17वीं रिपोर्ट में बताया था कि सांसदों/विधायकों के खिलाफ 5,097 मामले लंबित हैं। इनमें से 40% से अधिक यानी 2,122 मामले 5 साल से अधिक समय से लंबित हैं।

    एमिक्स क्यूरी ने अपनी 17वीं रिपोर्ट में गवाहों की जांच और आरोपी व्यक्तियों की उपस्थिति के लिए तकनीक का उपयोग करके मामलों की शीघ्र सुनवाई सहित विभिन्न दिशा-निर्देश मांगे थे। उक्त रिपोर्ट में एमिक्स क्यूरी ने सुझाव दिया था कि यदि आरोपी मुकदमे में देरी करता है तो उसकी जमानत रद्द कर दी जानी चाहिए; यदि अभियोजन सहयोग नहीं करता है तो राज्य के मुख्य सचिव को रिपोर्ट भेजी जा सकती है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि वर्तमान विधायकों से जुड़े मामलों को पूर्व विधायकों की तुलना में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

    अपनी नवीनतम रिपोर्ट दिनांक 13.09.2023 में मामले पर सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेशों और विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान रिट याचिकाओं के रजिस्ट्रेशन को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित अतिरिक्त सुझाव दिए हैं:-

    (1) विशेष न्यायालय एमपी/एमएलए को हाईकोर्ट में लंबित मामलों और निपटान की मासिक रिपोर्ट और पांच साल से अधिक समय से लंबित मामलों की देरी के कारणों की रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जा सकता है। विशेष न्यायालय के पीठासीन अधिकारी मामलों के शीघ्र निपटान में आने वाली कठिनाइयों का भी संकेत दे सकते हैं।

    (2) विशेष अदालत एमपी/एमएलए सीआरपीसी की धारा 309 के संदर्भ में सुनवाई करेगी। विशेष रूप से चौथे प्रावधान और वर्तमान मामले में समय-समय पर पारित अंतरिम आदेशों के संदर्भ में सुनवाई करेगी।

    (3) प्रत्येक जिले के प्रधान सत्र न्यायाधीश उक्त न्यायालय को अन्य मामले आवंटित करते समय विशेष न्यायालय एमपी/एमएलए के समक्ष लंबित मामलों की संख्या को ध्यान में रखेंगे।

    (4) दिनांक 16.09.2020 के आदेश के संदर्भ में रजिस्टर्ड स्वत: संज्ञान रिट याचिकाओं में हाईकोर्ट विशेष न्यायालय एमपी/एमएलए द्वारा दायर मासिक रिपोर्ट पर विचार करेंगे और मामलों के शीघ्र निपटान के लिए उपयुक्त निर्देश पारित करेंगे। अभियोजन पक्ष द्वारा असहयोग या अभियुक्त द्वारा देरी या विशेष न्यायालय द्वारा उठाए गए किसी भी बुनियादी ढांचे के मुद्दे पर हाईकोर्ट विशिष्ट निर्देश दे सकता है। जिन हाईकोर्ट ने रिट याचिकाओं का निपटारा कर दिया है, वे उसे पुनर्जीवित करेंगे।

    (5) हाईकोर्ट निम्नलिखित विवरण प्रस्तुत करते हुए सांसदों/विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों के संबंध में अपनी वेबसाइट पर एक स्वतंत्र आइकन, बटन या टैब बना सकते हैं: -

    i. प्रत्येक जिले में 1 वर्ष से अधिक, 1 से 3 वर्ष के बीच, 3 से 5 वर्ष के बीच और 5 वर्ष से अधिक समय से लंबित मामलों का पार्टिशन, अपराध की प्रकृति सहित, 15 में राष्ट्रीय न्यायिक द्वारा बनाए गए डेटा ग्रिड के प्रारूप में किया जाए।

    ii. स्वत: संज्ञान रिट याचिका में हाईकोर्ट की ऑर्डर शीट अपलोड करें।

    iii. विशेष न्यायालय एमपी/एमएलए के सभी मामलों की ऑर्डर शीट जिलावार, सत्र स्तर और मजिस्ट्रेट स्तर दोनों पर अपलोड करें।

    न्यायालय को उक्त रिट याचिका में दो मुख्य मुद्दों पर विचार करना है, अर्थात् निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामलों का शीघ्र निपटान और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 की संवैधानिक वैधता के संबंध में एमिक्स क्यूरी ने निर्वाचित प्रतिनिधियों के चुनाव लड़ने पर 6 साल के प्रतिबंध के बजाय स्थायी अयोग्यता का सुझाव दिया।

    सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ 15 सितंबर को मामले की सुनवाई करने वाली है।

    मामले की पृष्ठभूमि

    सुप्रीम कोर्ट 2016 से सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान की निगरानी कर रहा है। शुरुआत में 12 विशेष अदालतें गठित की गईं। इसके बाद लगभग सभी जिलों में विशेष अदालतें स्थापित की गईं, जहां आपराधिक मामले लंबित हैं।

    दिनांक 08.12.2018 के अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि विशेष अदालतें प्रतिदिन आधार पर उठाए जाने वाले प्रत्येक मामले के लिए कैलेंडर तय करेंगी। 16.09.2020 के एक अन्य आदेश द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इन ट्रायल की प्रगति की निगरानी के लिए स्पेशल बेंच भी नामित करेंगे, जिसमें वे स्वयं और उनके नामित व्यक्ति शामिल होंगे।

    सुप्रीम कोर्ट ने 04.11.2020 के एक अन्य बाद के आदेश में निर्देश दिया कि मामले में शामिल सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए और अनुचित देरी को रोकने के लिए हम निर्देश देते हैं कि इन मामलों में कोई अनावश्यक स्थगन नहीं दिया जाए।

    केस टाइटल: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ, रिट याचिका (सी) नंबर 699/2016

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