"हाईकोर्ट ने गलती की": सुप्रीम कोर्ट ने अपने समक्ष याचिका लंबित होने के बावजूद यूएपीए के दोषी को पैरोल देने के हाईकोर्ट के आदेश पर आपत्ति जताई

LiveLaw News Network

12 Jun 2021 3:05 AM GMT

  • National Uniform Public Holiday Policy

    Supreme Court of India

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने समक्ष विशेष अनुमित याचिका (एसएलपी) लंबित होने के बावजूद गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) के दोषी को पैरोल देने के राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश पर आपत्ति जताई है।

    जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एमआर शाह की खंडपीठ ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) के दोषी अरुण कुमार जैन द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। अरुण कुमार जैन वर्तमान में जोधपुर के सेंट्रल जेल में कैद है और वह अपने पिता के स्वास्थ्य के आधार पर तीन महीने की जमानत देने की मांग कर रहा है।

    वर्तमान आवेदन राजस्थान उच्च न्यायालय के 30 अक्टूबर 2018 के अंतिम फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित एक विशेष अनुमति याचिका में दायर किया गया था।

    न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि,

    "जब यह एसएलपी इस न्यायालय के समक्ष लंबित है, तो उच्च न्यायालय ने आपको पैरोल पर कैसे रिहा किया है? हमें इस पर कड़ी आपत्ति है। आपको यहां आना चाहिए था।"

    बेंच ने जमानत याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए आवेदक को पैरोल के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए भी फटकार लगाई, जबकि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक विशेष अनुमति याचिका लंबित है।

    न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि,

    "जब आपकी एसएलपी यहां लंबित है, तब आप पैरोल के लिए उच्च न्यायालय नहीं जा सकते और इस अदालत ने आपको पहले अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया था।"

    न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि,

    "पहले हमने उसे कुछ समय के लिए रिहा कर दिया, उसके बाद उसने खुद सरेंडर कर दिया। यह अच्छी तरह से जानते हुए कि हम समय नहीं बढ़ाएंगे, उसने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और पैरोल प्राप्त की? उच्च न्यायालय ने गलती की है।"

    आवेदक की ओर से पेश हुए अधिवक्ता आरिफ अली खान ने सुनवाई के दौरान अदालत से मानवीय आधार पर जमानत देने का आग्रह किया क्योंकि आवेदक के पिता वास्तव में अस्वस्थ और गंभीर स्थिति में हैं और आवेदक अपने पिता का इकलौता पुत्र है। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने इसी आधार पर पहले एक महीने के लिए जमानत दी थी।

    बेंच ने कहा कि,

    "तो आपको इस कोर्ट में आना चाहिए था, पैरोल के लिए हाई कोर्ट नहीं जाना चाहिए था।"

    बेंच ने कहा कि आत्मसमर्पण के विस्तार के लिए आवेदक के आवेदन को सुप्रीम कोर्ट ने 18 दिसंबर 2021 को खारिज कर दिया था और इसलिए वह उच्च न्यायालय गया।

    न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि,

    "आप उच्च न्यायालय नहीं जा सकते और नहीं जाना चाहिए था।"

    आवेदक के वकील ने प्रस्तुत किया कि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि आवेदक उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है। न्यायमूर्ति शाह ने हालांकि बयान पर आपत्ति जताई और कहा कि इस अदालत ने यह नहीं कहा कि उच्च न्यायालय में जाओ। आप गलत बयान दे रहे हैं।

    वकील ने आगे कहा कि आवेदक का आचरण अच्छा रहा है। माय लॉर्ड उसके पिता की मृत्यु हो गई है।

    न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा कि,

    "पहले आपने कहा कि वह अस्वस्थ है, अब आप कह रहे हैं कि वह मर गया है। आप पहले स्टैंड लें।"

    अधिवक्ता खान ने कहा कि

    "मैंने गलत बयान दिया और मैं अपना बयान वापस लेता हूं।"

    जस्टिस शाह ने कहा कि,

    "इसलिए आप किसी राहत के हकदार नहीं हैं क्योंकि आप खुद सही नहीं हैं।"

    राजस्थान राज्य के वकील ने जमानत का विरोध किया और कहा कि आवेदक को दो बार समवर्ती अदालतों द्वारा दोषी ठहराया गया है और उसके खिलाफ आरोप बहुत गंभीर हैं। उन्होंने कहा कि जब मामले को निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था, तब भी आवेदक की ओर से स्थगन की मांग वाला एक पत्र सर्कुलेट किया गया था।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि वर्तमान आवेदक को पिछले साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनके पिता की बीमारी के आधार पर अंतरिम जमानत दी गई थी, जो 85 वर्ष के हैं और वे अंधे हैं।

    आवेदक को सत्र न्यायालय, जयपुर द्वारा 2017 में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा (एस) 13, 18, 18-बी और 20 के तहत दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई और उसे साधारण आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। बाद में उनकी सजा को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया और उनकी सजा को आजीवन कारावास से 14 साल के कठोर कारावास और जुर्माने में बदल दी गई।

    राजस्थान उच्च न्यायालय ने दोषी को 11 फरवरी 2021 को 20 दिनों की पहली नियमित पैरोल दी थी, जिसे याचिकाकर्ता के पिता के स्वास्थ्य को देखते हुए दो बार और बढ़ाया गया था।

    Next Story