ई-फाइलिंग और वर्चुअल सुनवाई उपलब्ध होने पर हाईकोर्ट की पीठों की आवश्यकता नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा के वकीलों की हड़ताल को नामंजूर किया

Avanish Pathak

14 Dec 2022 11:39 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया कि वर्तमान में उड़ीसा हाईकोर्ट की नई बेंच बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है, जब तकनीकी का उपयोग, जैसे वर्चुअल कोर्ट और ई-फाइलिंग का व्यापक प्रयोग हो रहा है।

    कोर्ट ने बार एसोसिएशनों की सेंट्रल एक्शन कमेटी के प्रस्ताव को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया, जिसमें संबलपुर में बेंच के गठन की मांग पूरी होने पर ही हड़ताल वापस लेने का प्रस्ताव था।

    शीर्ष अदालत ने समिति को बिना शर्त हड़ताल वापस लेने का निर्देश दिया।

    आदेश में विशेष रूप से कहा गया, "बेंच के गठन की कोई उम्मीद नहीं है...भले ही कुछ दूरस्थ संभावनाएं थीं, उनके आचरण से यह भी खो गई है।"

    कोर्ट ने यह आदेश जिस याचिका पर पारित किया, उसमें संबलपुर में अन्य बातों के साथ-साथ हाईकोर्ट की नई खंडपीठ की मांग की गई थी।

    पिछली सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा सरकार और राज्य पुलिस को उन वकीलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आदेश दिया, जो हड़ताल के दौरान अदालत परिसर में तोड़फोड़ में शामिल थे।

    कोर्ट ने संबलपुर जिले के प्रभारी पुलिस अधिकारी सहित राज्य सरकार और डीजीपी को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से आज अदालत में पेश होने का निर्देश दिया था। आज उन्हें बताना था कि प्रदर्शनकारी वकीलों के खिलाफ क्या कदम उठाए गए।

    हड़ताल का विरोध करते हुए सीनियर एडवेकेट अरविंद दातार ने जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ को बताया कि उड़ीसा हाईकोर्ट की बेंच स्थापित करने की मांग संबलपुर बार एसोसिएशन तक सीमित नहीं है, बल्कि बालासोर, राउरकेला, कोरापुट और बलांगीर सहित अन्य बार एसोसिएशनों ने भी इसी तरह की मांग की है।

    बेंच ने कहा,

    "यह अब किसी कार्यात्मक मुद्दे के बजाय प्रतिष्ठा का मुद्दा है।"

    दातार ने पीठ को बताया कि 1981 की बेंच कमेटी रिपोर्ट बेंचों के बीच कम से कम 300 किमी की दूरी निर्धारित करती है, जिसके मद्देनजर बेंच ने माना - "समिति की उस रिपोर्ट के संदर्भ में कहीं और बेंच स्थापित करने का कोई सवाल ही नहीं है।"

    खंडपीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अदालती कार्यवाही में प्रौद्योगिकी के प्रसार को देखते हुए हाईकोर्ट की पीठों की मांग बेमानी हो गई है।

    जस्टिस कौल ने विशेष रूप से उड़ीसा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के प्रयासों को मान्यता दी, जिन्होंने राज्य में एक प्रभावी ई-कोर्ट पारिस्थितिकी तंत्र बनाया था। खंडपीठ ने उड़ीसा हाईकोर्ट को कटक से भुवनेश्वर स्थानांतरित करने की भुवनेश्वर बार एसोसिएशन की मांग को भी खारिज कर दिया।

    दातार के अनुरोध पर, जो इस बात से आशंकित थे कि जब तक सुप्रीम कोर्ट न्यायिक आदेश के माध्यम से यह स्पष्ट नहीं कर देता कि हाईकोर्ट की बेंचों की मांगें पूरी नहीं होंगी, हड़ताल में भाग लेने वाले वकील इसे इस उम्‍मीद में जारी रखेंगे कि किसी दिन उनकी मांगों को पूरा किया जाएगा, खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि नई पीठों के निर्माण की कोई उम्मीद नहीं है।

    "हम इसे इन मांगों को समाप्त करने के लिए रख रहे हैं जो बार-बार उठाई जा रही हैं और हिंसा का कारण बनी हैं।"

    खंडपीठ ने कहा कि ओडिशा के किसी भी जिला न्यायालय से उड़ीसा हाईकोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है, जो तकनीकी प्रगति के कारण संभव हो सका है।

    कोर्ट ने दातार के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया कि प्रत्येक जिला न्यायालय में एक कमरे को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए कार्यात्मक बनाया जाए और एक बैक ऑफिस हो, जो ई-फाइलिंग की सुविधा प्रदान करे। इसका परिचालन 3 महीने की अवधि के भीतर किया जाए।

    पिछली सुनवाई के दौरान भी कोर्ट ने कहा था कि ओडिशा जैसे छोटे राज्य में हाईकोर्ट की बेंच जरूरी नहीं है।

    [केस टाइटल: एम/एस पीएलआर प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड और अन्य। डायरी नंबर 33859/2022]

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