कुछ जज खुद को भगवान समझ रहे हैं: इलाहाबाद HCBA ने सदस्यों से जजों को 'माई लॉर्ड' या 'योर लॉर्डशिप' कहकर संबोधित न करने का आग्रह किया

Amir Ahmad

12 July 2024 12:37 PM GMT

  • कुछ जज खुद को भगवान समझ रहे हैं: इलाहाबाद HCBA ने सदस्यों से जजों को माई लॉर्ड या योर लॉर्डशिप कहकर संबोधित न करने का आग्रह किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (HCBA) ने अपने सदस्यों से जजों को माई लॉर्ड या योर लॉर्डशिप जैसे टाइटल से संबोधित न करने और इसके बजाय सर, योर ऑनर या माननीय जैसे किसी अन्य संबंधित उच्चारण का उपयोग करने का आग्रह किया।

    इस संबंध में एसोसिएशन की कार्यकारी निकाय की बैठक के बाद बयान जारी किया गया, जिसमें कुछ जजों द्वारा खुद को भगवान समझने के बारे में चिंता जताई गई। अपने बयान में HCBA ने इस बात पर जोर दिया कि हाईकोर्ट न्याय का मंदिर नहीं बल्कि न्याय की अदालत है और जज लोक सेवक हैं।

    बैठक के बाद सार्वजनिक किए गए HCBA के बयान में कहा गया,

    “हाईकोर्ट बार एसोसिएशन अपनी उचित जिम्मेदारी में न्यायपालिका को कुछ माननीय जजों द्वारा खुद को भगवान मानने वाले अंदरूनी हमले से बचाना चाहता है। यह प्रस्ताव लिया गया कि हाईकोर्ट न्याय का मंदिर नहीं है बल्कि न्याय की अदालत है। जज भी लोक सेवक हैं, जिसके लिए उन्हें सरकारी खजाने से भुगतान किया जाता है। उन्हें बड़े पैमाने पर जनता की सेवा करने के लिए नियुक्त किया जाता है। हम उन्हें भगवान समझने से इनकार करते हैं और हम सभी बार एसोसिएशन के वकीलों से अनुरोध करते हैं कि वे माननीय जजों को माई लॉर्ड या योर लॉर्डशिप कहकर संबोधित न करें बल्कि उन्हें सर, योर ऑनर या हॉनर जैसे किसी भी संबंधित उच्चारण का उपयोग करने की अनुमति है।”

    इस संबंध में HCBA ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ के नवीनतम बयान का भी उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कहा कि जजों की भूमिका सार्वजनिक हित की सेवा करना है न कि उन्हें देवताओं के रूप में पूजनीय बनाना। HCBA का यह बयान तीन दिनों (10, 11 और 12 जुलाई) के लिए काम से दूर रहने के अपने फैसले के बाद आया। HCBA ने वकीलों को प्रभावित करने वाले कई महत्वपूर्ण मुद्दों विशेष रूप से बार के सदस्यों के प्रति कुछ जजों के आचरण से हाईकोर्ट प्रशासन के निपटने के तरीके पर अपना असंतोष व्यक्त किया।

    बैठक में यह भी प्रस्ताव लिया गया कि यदि माननीय जज खुद को भगवान मानते रहेंगे तो बार आवश्यकता पड़ने पर आगे की कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है।

    महत्वपूर्ण बात यह है कि यह भी प्रस्ताव लिया गया कि जिन सदस्यों ने न्यायिक कार्य से विरत रहने के बार एसोसिएशन के निर्णय की अवहेलना की है, उनकी सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी, जब तक कि वे उन्हें जारी किए गए नोटिस के जवाब में संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं देते।

    बयान में आगे कहा गया,

    “उन्हें अपने सदस्यों के लिए हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा दिए जाने वाले सभी लाभ जैसे मेडिकल क्लेम, मृत्यु क्लेम और चैंबर आवंटन में प्राथमिकता आदि लेने से रोका जाएगा। उन्हें हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की सदस्यता से हमेशा के लिए ब्लैक लिस्ट कर दिया जाएगा। उन्हें कभी भी हाई कोर्ट बार एसोसिएशन का सदस्य बनने की अनुमति नहीं दी जाएगी।"

    HCBA द्वारा जारी बयान के अनुसार, देश के विभिन्न बार एसोसिएशनों के कई पदाधिकारियों ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और सचिव से संपर्क किया और निर्णय पर अपनी चिंता व्यक्त की। साथ ही कहा कि वे भी अपने-अपने न्यायालयों में कमोबेश इसी स्थिति का सामना कर रहे हैं।

    इसलिए HCBA ने यह भी प्रस्ताव लिया कि उत्तर प्रदेश बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (CBI) के माध्यम से राज्य और देश के विभिन्न बार एसोसिएशनों से संपर्क किया जाएगा।

    बैठक की अध्यक्षता सीनियर एडवोकेट एवं बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने की तथा संचालन सचिव श्री विक्रांत पाण्डेय ने किया।

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