चुनाव में हेट स्पीच और धर्म को घसीटने के वाले राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई की मांग वाली PIL पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार किया
LiveLaw News Network
28 Jan 2020 5:37 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया जिसमें उन राजनीतिक दलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की गई है जो राजनीतिक अभियानों में धर्म और जाति को घसीटते हैं।
याचिका में राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं को भी जनप्रतिनिधि अधिनियम और चुनावी आचार संहिता के दायरे में लाने का अनुरोध किया गया था।
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की पीठ ने याचिकाकर्ता को कहा कि उन्होंने बड़े सवाल उठाए हैं और इस मामले को लेकर हाईकोर्ट जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाने की आजादी भी दी।
8 अप्रैल2019 को सुप्रीम कोर्ट इस याचिका का परीक्षण करने के लिए सहमत हो गया था।
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने इस याचिका पर चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। चुनाव आयोग ने जवाब में कहा था कि उसके पास हेट स्पीच और धर्म- जाति के आधार पर वोट मांगने वाले दलों के खिलाफ कार्रवाई की शक्ति नहीं है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता NRI हरप्रीत मनसुखानी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने पीठ के समक्ष कहा था कि ये ऐसा मुद्दा है जिस पर सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना चाहिए।
याचिका के मुताबिक जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 में भ्रष्टाचार मुक्त चुनाव सुनिश्चित करने की पर्याप्त क्षमता नहीं है। राजनीतिक दलों के प्रवक्ता / मीडिया प्रतिनिधि / अन्य राजनेता जो चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, वे टीवी चैनलों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जाति या धर्म के आधार पर घृणास्पद भाषणों का उपयोग करते हैं और वे सभी कार्यों से आसानी से बच निकलते हैं।
"चुनाव की शुद्धता के लिए भारतीय संविधान के तहत वादा किया गया धर्मनिर्रपेक्ष लोकतंत्र की अवधारणा एक लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए अनिवार्य है। यह चुनाव और अन्य विधायी निकायों को अस्वस्थ भ्रष्ट प्रथाओं से मुक्त रखने के लिए आवश्यक है। धर्म, जाति, समुदाय या भाषा पर अपील का प्रभाव किसी देश और उसके संविधान पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है।
जाति और धर्म के बुरे प्रभावों के माध्यम से भारत में चुनाव "फूट डालो और राज करो" नीति के बुरे प्रभाव में बदल रहे हैं। राजनीति सांप्रदायिकता का कारण बन गया है, जो देश के भीतर और बाहर के बलों से लोगों की सुरक्षा के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है। सांप्रदायिकता और जाति आधारित राजनीति ने सभी बाधाओं को पार कर लिया है, जिसके परिणामस्वरूप एक अज्ञात खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है, " याचिका में कहा गया है।
याचिकाकर्ता ने मीडिया हाउसों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का भी आग्रह किया है जो अपनी बहस के शो के लिए जाति या धार्मिक लाइनों का उपयोग करते हैं। याचिका में कहा गया है कि सांप्रदायिक भाषण या जातिगत टिप्पणी को अगर चुनाव प्रचार में किसी भी तरह की छूट दी जाएगी तो वो लोकतांत्रिक जीवन के धर्मनिरपेक्ष माहौल को बनाएंगे।
इसके अलावा राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ताओं के बयान चुनाव और जनमत को सबसे ज़्यादा प्रभावित करते हैं लेकिन वो न तो जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत जवाबदेह हैं और ना ही आचार संहिता के तहत। इसका मतलब ये है कि वो पार्टियों के लिए कोई भी बयान दे सकते हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत जज की अध्यक्षता में समिति बननी चाहिए जो इस संबंध में विस्तृत गाइडलाइन तैयार करें और पीठ चुनाव आयोग को पार्टियों के प्रवक्ताओं को भी जनप्रतिनिधि अधिनियम और आचार संहिता के अंतर्गत लाने के निर्देश जारी करे।