हेट स्पीच पर विधि आयोग की कड़े कानून की सिफारिशों को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका
LiveLaw News Network
27 Feb 2020 1:15 PM IST

वकील और भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है, जिसमें सरकार से हेट स्पीच के खिलाफ कानून को कड़ा करने के लिए 2017 में की गई विधि आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है।
वकील अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि हेट स्पीच जनता को नुकसान करती है क्योंकि ये भाईचारा, एकता और राष्ट्रीय अखंडता की गरिमा को प्रभावित करती है।
हेट स्पीच में व्यक्तियों और समाज को आतंकवाद, नरसंहार,जातीय हिंसा के कार्य करने के लिए उकसाने की क्षमता है। आपत्तिजनक भाषण वास्तविक है और लोगों के जीवन पर विनाशकारी प्रभाव डालते हैं और उनकी सुरक्षा को जोखिम में डालते हैं।
याचिका में कहा गया है कि हेट स्पीच विभिन्न समुदायों के लिए हानिकारक और विभाजनकारी है और ये सामाजिक प्रगति में बाधा डालती है। हेट स्पीच अनुच्छेद 19 और 21 के तहत मूलभूत अधिकारों की गारंटी के खिलाफ है।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि जबकि विधि आयोग ने मार्च 2017 में हेट स्पीच पर रोक लगाने के लिए सिफारिशें की थीं लेकिन सरकार ने आज तक उनके कार्यान्वयन की दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की है।
दरअसल अपनी 267 वीं रिपोर्ट में विधि आयोग ने सिफारिश की थी कि घृणा और भय पैदा करने के प्रयासों को भी हेट स्पीच के दायरे में लाया जाना चाहिए।
इसके लिए आयोग ने प्रस्ताव दिया था कि नफरत फैलाने पर रोक लगाने के लिए भारतीय दंड संहिता( IPC) में एक नया खंड, 153 IPC डाला जाए। यह भी सिफारिश की गई कि कुछ मामलों में भय या हिंसा को भड़काने के लिए दंडित करने के लिए IPC में एक नई धारा 505A डाली जाए।
आयोग ने प्रवासी भारतीय संगठन बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए संदर्भ के बाद रिपोर्ट जारी की थी।
उपाध्याय ने कहा है कि 1990 के बाद से ही चुनाव अभियानों, ना केवल संसदीय बल्कि राज्य-स्तर और यहां तक कि स्थानीय-निकाय स्तर पर भी राजनीतिक भाषणों में हेट स्पीच एक विशेषता बन गई है।
अपनी याचिका में उपाध्याय ने कहा है कि मौजूदा कानूनों में कई तरह की खामियां हैं और हेट स्पीच से प्रभावी ढंग से निपटने की जरूरत है।
उपाध्याय ने कहा है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 के तहत, धर्म, जाति,वर्ण, समुदाय या भाषा आदि के आधार पर अपील की जाती है और विभिन्न वर्गों के बीच दुश्मनी की भावनाओं को बढ़ावा दिया जाता है,
तो चुनावी याचिका के जरिए जांच की जा सकती है। लेकिन आदर्श आचार संहिता लागू होने पर भी ऐसे मामलों में भारतीय चुनाव आयोग जांच का आदेश नहीं दे सकता है।
उपाध्याय ने अब सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप कर सरकार को इस मामले में 267 वीं विधि आयोग रिपोर्ट में की गई सिफारिशों को लागू करने के निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है।