Gyanvapi Dispute | सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सीजे द्वारा केस को दूसरी बेंच से अपने पास ट्रांसफर करने के खिलाफ दायर मस्जिद समिति की चुनौती खारिज की
Shahadat
3 Nov 2023 1:11 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (3 नवंबर) को काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद से संबंधित मामलों को किसी अन्य न्यायाधीश की पीठ से अपनी पीठ में ट्रांसफर करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के ट्रांसफर ऑर्डर को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतेजेमिया मसाजिद वाराणसी (जो ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी।
यह मुद्दा पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 द्वारा वर्जित ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा के अधिकार की मांग करने वाले हिंदू उपासकों द्वारा दायर मुकदमों की स्थिरता को चुनौती देने वाली मस्जिद समिति द्वारा दायर याचिकाओं से संबंधित है।
मस्जिद समिति की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट हुज़ेफ़ा अहमदी ने कहा कि जस्टिस प्रकाश पाडिया की पीठ ने मामले में सुनवाई पूरी कर ली है और 25 अगस्त को फैसला सुनाना है। हालांकि, उसी दिन चीफ जस्टिस ने मामला वापस ले लिया। जस्टिस पाडिया ने कारण बताते हुए कहा कि रोस्टर में बदलाव के बावजूद न्यायाधीश मामले को बरकरार नहीं रख सकते।
शुरुआत में ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के आदेश में हस्तक्षेप करने में अनिच्छा व्यक्त की। सीजेआई चंद्रचूड़ ने बताया कि पिछले न्यायाधीश ने 2021 में फैसला सुरक्षित रखने और पचहत्तर सुनवाई होने के बावजूद फैसला नहीं सुनाया था। अहमदी ने तब कहा कि यह "संवेदनशील मुद्दा" है। उन्होंने कहा कि अगर यह "प्रक्रिया का दुरुपयोग" नहीं होता तो समिति चीफ जस्टिस के आदेश को चुनौती नहीं देती।
अहमदी ने तर्क दिया कि किसी भी वादी के लिए यह कहना संभव नहीं है कि किसी मामले की सुनवाई किसी विशेष न्यायाधीश द्वारा की जानी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि एकल न्यायाधीश 2021 से इस मामले की सुनवाई कर रहे थे और 2023 में भी विषय-रोस्टर उन्हें फिर से सौंपे जाने के बाद एकल न्यायाधीश ने मामले की सुनवाई की। एकल न्यायाधीश द्वारा फैसला सुरक्षित रखने के दो दिन बाद जस्टिस पाडिया द्वारा मामले को बरकरार रखने के खिलाफ चीफ जस्टिस के समक्ष शिकायत दर्ज की गई।
अहमदी ने प्रस्तुत किया,
"फैसला सुरक्षित होने के बाद वह शिकायत दर्ज करते हैं। यह वह चरण है, मामला उनकी अदालत से हटा दिया जाता है। यह न्यायाधीश को डराने जैसा है... क्योंकि मामले की आंशिक सुनवाई हुई थी, मामला न्यायाधीश के समक्ष सूचीबद्ध होता रहा, कोई रोस्टर नहीं होने के कारण सुनवाई होती रही। वादी न्यायाधीश का चयन नहीं कर सकता..."
अहमदी ने "न्यायिक अनौचित्य" जैसे कठोर आलोचनात्मक शब्दों का उपयोग करते हुए चीफ जस्टिस के आदेश पर आपत्ति जताई।
अहमदी ने यह भी कहा कि जिस शिकायत पर विवादित आदेश आधारित था, उसकी प्रति उनके मुवक्किल को नहीं दी गई। उन्होंने आगे कहा कि एकल न्यायाधीश सभी पक्षकारों की सहमति से पूरे मामले की सुनवाई कर रहे थे और "हवा का रुख किधर है" यह देखने के बाद फैसला सुरक्षित रखने के बाद ही शिकायत दर्ज की गई।
हालांकि, पीठ ने चीफ जस्टिस के आदेश में दो विशेष पैराग्राफ (11 और 12) की ओर इशारा किया और कहा कि उनमें स्थानांतरण को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त कारण हैं।
सीजेआई ने मौखिक टिप्पणी की,
"देखिए चीफ जस्टिस ने अंतिम तीन पंक्तियों में क्या कहा- हम इसे ओपन कोर्ट में नहीं पढ़ना चाहते। आपको पता होना चाहिए कि हमारे लिए क्या मायने रखता है। विशेष रूप से अंतिम वाक्य। यह असाधारण है। ऐसा कभी नहीं हुआ। यह रजिस्ट्री के लिए पुरानी बात है, जज के चैंबर में नहीं जा सकते। चीफ जस्टिस के पास आधार हैं। हम इसे वहीं छोड़ देंगे। मैं ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता, इसके लिए एक कारण है... पैरा 11 और 12 हमारे मन में थोड़ी बेचैनी पैदा करता है। वे दो वाक्य, वे हमारे लिए काफी हैं।"
सीजेआई सीजे के आदेश के पैराग्राफ का जिक्र कर रहे थे। इस पैराग्राम में कहा गया कि फाइलें जस्टिस पाडिया के रूम में रखी गई थीं और उन्हें कभी भी हाईकोर्ट रजिस्ट्री के मूल अनुभाग में नहीं भेजा गया, जो मामलों की सूची के लिए जिम्मेदार है।
सुनवाई के दौरान सीजेआई ने पूछा,
"अगर हम हाईकोर्ट में प्रभारी व्यक्तियों पर भरोसा नहीं करेंगे तो सिस्टम कहां जाएगा?"
चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर ने 28 अगस्त के अपने आदेश में 2013 में हाईकोर्ट द्वारा पारित प्रशासनिक आदेश का हवाला दिया था। उक्त आदेश के अनुसार, "कोई भी लंबित मामला, एक नए रोस्टर की शुरुआत में नागरिक या आपराधिक, अदालत में आंशिक रूप से सुना गया या बंधा हुआ नहीं माना जाएगा।"
सीजे ने कहा कि मामलों को सूचीबद्ध करने में प्रक्रिया का पालन न करना, फैसले को सुरक्षित रखने के लिए लगातार आदेश पारित करना और मामलों को फिर से सुनवाई के लिए न्यायाधीश (जस्टिस प्रकाश पाडिया) के समक्ष सूचीबद्ध करना, भले ही उनके पास अब क्षेत्राधिकार नहीं है। इसलिए रोस्टर के कारण उनकी पीठ से मामले वापस ले लिए गए।
चीफ जस्टिस दिवाकर के समक्ष शिकायत में पक्षकार के वकील द्वारा उठाया गया प्राथमिक तर्क यह था कि मामले में 35 सुनवाई के बाद जस्टिस पाडिया ने मार्च, 2021 में पहली बार मामले में फैसला सुरक्षित रखा। हालांकि, फैसला 7 महीने तक वितरित नहीं किया गया और मामले को फिर से अक्टूबर 2021 में अन्य रिट याचिकाओं के साथ सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया।
इसके बाद मामले की सुनवाई लगभग 12 महीने तक चली और 28 नवंबर, 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया गया। इसके बाद मामला मई, 2023 में सूचीबद्ध किया गया और इस साल जुलाई में फिर से फैसला सुरक्षित रखा गया।
केस टाइटल: अंजुमन इंतजामिया मसाजिद वाराणसी बनाम प्रथम अतिरिक्त जिला न्यायाधीश और अन्य। एसएलपी(सी) नंबर 23850-23851/2023