आत्म सुरक्षा के लिए लाइसेंसी बंदूकों का इस्तेमाल जश्न में फायरिंग के लिए नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
20 March 2020 10:15 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने जश्न के दौरान फायरिंग की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए इस तरह की फायरिंग में दो व्यक्तियों की मौत के जिम्मेदार व्यक्ति को 10 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई।
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की खंडपीठ ने कहा :
"जश्न के दौरान गोलीबारी की घटनाएं अफसोसजनक रूप से बढ़ रही हैं, क्योंकि इसे प्रतिष्ठा के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। आत्म सुरक्षा या फसलों एवं मवेशियों की सुरक्षा के लिए लाइसेंस प्राप्त बंदूक का इस्तेमाल जश्न के दौरान फायरिंग के लिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह घातक दुर्घटनाओं का संभावित कारण बनता है। आग्नेयास्त्रों के इस तरह के दुरुपयोग से खुशी का माहौल पल भर में गम के अंधियारों में तब्दील हो जाता है।"
ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने भगवान सिंह को हत्या का दोषी ठहराया था और आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी। इस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत के समक्ष अपील में दलील दी गयी थी कि यह जश्न के दौरान हुई गोलीबारी का मामला था, जिसके कारण दुर्भाग्यवश दो व्यक्तियों की गैर-इरादतन मौत हो गयी थी और तीन अन्य घायल हुए थे।
यह भी दलील दी गयी थी कि 'सदोष हत्या' (कल्पेबल होमिसाइड) का मामला नहीं है, क्योंकि अभियुक्त ने छत की तरफ बंदूक का रुख करके गोली चलायी गयी थी और उसे इस बात का इल्म नहीं था कि ऐसा करने से किसी की मौत भी हो सकती है।
बेंच ने आंशिक तौर पर उसकी अपील स्वीकार करते हुए ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के उस निष्कर्ष से असहमति जतायी, जिसमें कहा गया था कि छत की ओर बंदूक की नली करके की गई फायरिंग उतनी ही खराब थी, जितनी लोगों की भीड़ की ओर करके की गयी फायरिंग, क्योंकि अभियुक्त को पता होना चाहिए था कि ऐसा करते वक्त मौत की या इतने गम्भीर रूप से घायल होने की आशंका थी, जिसके कारण मौत भी हो सकती थी।
बेंच ने कहा :
"यह मिसफायरिंग (गलती से गोली चल जाने) की दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। निश्चित रूप से अपीलकर्ता इस बात से इन्कार नहीं कर सकता कि उसने भीड़भाड़ वाली जगह में लोडेड (गोली भरी) बंदूक ले रखी थी, जहां उसके अपने ही मेहमान शादी समारोह में शामिल होने के लिए एकत्र हुए थे। उसने हवा में या आसमान की ओर बंदूक करके गोली चलाने जैसा कोई उपाय भी नहीं किया था, बल्कि उसने पूर्ण जोखिम उठाते हुए बंदूक की नली छत की ओर करके गोली चला दी थी।
उससे यह जानकारी होने की अपेक्षा की जाती थी कि एक भी गोली चलाने पर आसपास के व्यक्तियों को कई छर्रे लग सकते थे, जिससे वे घायल हो सकते हैं। इस प्रकार अपीलकर्ता उस कृत्य का दोषी है, जिसके परिणामस्वरूप आसपास के लोगों के घातक रूप से घायल होने की आशंका थी। इसलिए अपीलकर्ता द्वारा किया गया अपराध भारतीय दंड संहिता की धारा 299 के दायरे में 'सदोष हत्या'की श्रेणी में आयेगा, लेकिन यह धारा 304(2) के तहत दंडनीय होगा।"
इसलिए बेंच ने अभियुक्त को धारा 304(2) के तहत दोषी ठहराते हुए 10 साल सश्रम कारावास की सजा सुनायी।