नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे

LiveLaw News Network

16 Dec 2019 3:37 PM GMT

  • नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे

    सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंडेर, अरुणा रॉय, निखिल डे, इरफान हबीब और प्रभात पटनायक ने विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।

    याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने के लिए यह अधिनियम उदारता और धर्म आधारित भेदभाव को बढ़ावा देता है।

    वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर याचिका में कहा कि

    "धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करना हमारे संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। धार्मिक बहुलतावाद और धर्मनिरपेक्षता स्वतंत्रता के बाद से हमारे देश की नींव रहे हैं। संविधान के अनुच्छेद 11 नागरिकता को विनियमित करने के लिए संसद को अधिकार देता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि संसद एक सामान्य कानून के माध्यम से संविधान के मूल मूल्यों और मूल संरचना को नष्ट कर दे।"

    याचिका के अनुसार, पूरी तरह से धार्मिक वर्गीकरण, किसी भी निर्धारित सिद्धांत से रहित, धर्मनिरपेक्षता के मौलिक संवैधानिक मूल्य और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। अधिनियम न केवल अनुचित वर्गीकरण करता है, बल्कि संविधान की मूल संरचना का भी उल्लंघन करता है।

    याचिका में कहा गया है कि

    "यह अधिनियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन करता है, क्योंकि यह उन व्यक्तियों की गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन करता है, जो केवल एक विशेष धर्म के होने के आधार पर संशोधन अधिनियम के विशेष वितरण के तहत नहीं आते।"

    याचिकाकर्ता केंद्र सरकार द्वारा पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) नियमों के आदेश के तहत जारी अधिसूचना को भी चुनौती दी है, जिसमें 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में प्रवेश करने वाले प्रवासियों के निर्दिष्ट वर्गों को छूट दी गई थी।

    नागरिकता संशोधन कानून लागू होते ही सुप्रीम कोर्ट में एक दर्जन से अधिक याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं। सभी याचिकाओं में इस कानून को असंवैधानिक, मनमाना और भेदभावपूर्ण करार देते हुए रद्द करने का अनुरोध किया गया है। इस मामले में TMC सासंद महुआ मोइत्रा के अलावा कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने भी याचिका दाखिल की है। जयराम रमेश ने याचिका में कहा है कि ये कानून भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान का उल्लंघन करता है।

    भेदभाव के रूप में यह मुस्लिम प्रवासियों को बाहर निकालता है और केवल हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, ईसाइयों, पारसियों और जैनियों को नागरिकता देता है। उन्होंने याचिका मेंं कहा कि कानून संविधान की मूल संरचना और मुसलमानों के खिलाफ स्पष्ट रूप से भेदभाव करने का इरादा है। ये संविधान में निहित समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और धर्म के आधार पर बहिष्कार करके अवैध आप्रवासियों के एक वर्ग को नागरिकता देने का इरादा रखता है।

    याचिका में कहा गया कि प्रत्येक नागरिक समानता के संरक्षण का हकदार है। यदि कोई विधेयक किसी विशेष श्रेणी के लोगों को निकालता है तो उसे राज्य द्वारा वाजिब ठहराया जाना चाहिए। नागरिकता केवल धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि जन्म के आधार पर हो सकती है। प्रश्न है कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में नागरिकता योग्यता की कसौटी कैसे हो सकती है। ये कानून समानता और जीने के अधिकार का उल्लंघन है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।


    याचिका की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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