केंद्र/राज्य सरकार के कर्मचारियों को उच्च वेतनमान के लाभों का अनुदान राज्य एजेंसी के वेतनमान के अनुदान से भिन्न स्तर पर है: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

10 July 2021 10:40 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र/राज्य सरकार के कर्मचारियों को उच्च वेतनमान के लाभों का अनुदान राज्य एजेंसी के वेतनमान के अनुदान से भिन्न स्तर पर है।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने पंजाब स्टेट को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स फेडरेशन लिमिटेड द्वारा पंजाब एंड हरियाणा के उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर अपील की अनुमति दी, जिसमें कहा गया था कि फेडरेशन भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत एक राज्य है और इसलिए कर्मचारी 1.1.1986 से पंजाब राज्य में अपने समकक्षों के समकक्ष वेतनमान के हकदार हैं, हालांकि संशोधित वेतनमान को फेडरेशन द्वारा 1.1.1994 को अनुमति दी गई थी।

    रिट याचिकाकर्ताओं ने अपना अधिकार स्थापित करने के लिए विभिन्न निर्णयों पर भरोसा जताया।

    पीठ ने इस पर कहा कि,

    'केंद्र या राज्य सरकार को राज्य के खर्चों को पूरा करने के लिए टैक्स लगाने का अधिकार है। यह हमेशा सरकार का एक सचेत निर्णय होता है कि कितना टैक्स लगाया जाना है ताकि नागरिकों पर अत्यधिक बोझ न पड़े। लेकिन बोर्डों और निगमों को अपने स्वयं के संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता है या अपने व्यय के लिए केंद्र/राज्य सरकार जैसा भी मामला हो से अनुदान लेना पड़ता है। इसलिए, केंद्र/राज्य सरकार के कर्मचारियों को उच्च वेतनमान के लाभों का अनुदान राज्य एजेंसी के वेतनमान के अनुदान से भिन्न स्तर पर है।"

    अदालत ने यह भी नोट किया कि 1.1.1986 से संशोधित वेतनमान नहीं देने का निर्णय फेडरेशन की वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए लिया गया था।

    अदालत ने राज्य के प्रशासनिक निर्णयों में उच्च न्यायालय द्वारा न्यायिक समीक्षा की शक्ति के प्रयोग पर टाटा सेल्युलर बनाम भारत संघ में प्रतिपादित सिद्धांतों का उल्लेख करते हुए कहा कि हम पाते हैं कि फेडरेशन वित्तीय कठिनाइयों में है। निर्णय फेडरेशन के समक्ष प्रासंगिक सामग्री पर आधारित है। इस तरह के निर्णय पर पहुंचने की प्रक्रिया को केवल अवैधता, तर्कहीनता और प्रक्रियात्मक अनुचितता के अनुमेय आधार पर त्रुटिपूर्ण कहा जा सकता है।

    कोर्ट ने अपील की अनुमति देते हुए कहा कि,

    "हम पाते हैं कि न तो निर्णय लेने की प्रक्रिया और न ही निर्णय स्वयं इस तरह के किसी भी दोष से ग्रस्त है। हम पाते हैं कि उच्च न्यायालय का आदेश अनुचित है और उच्च न्यायालय को प्रदत्त न्यायिक पुनर्विचार की शक्ति से अधिक है।"

    केस: पंजाब स्टेट को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स फेडरेशन लिमिटेड बनाम बलबीर कुमार वालिया [CA 7427 OF 2011]

    कोरम: जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता

    परामर्शदाता: वरिष्ठ अधिवक्ता पटवालिया, अधिवक्ता गोविंद गोयल

    CITATION: LL 2021 SC 291

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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