अनुकम्पा पर नियुक्ति के लिए विवाहित महिलाओं के नाम पर विचार न करने की सरकार की नीति असंवैधानिक : मप्र हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

12 March 2020 7:56 AM GMT

  • अनुकम्पा पर नियुक्ति के लिए विवाहित महिलाओं के नाम पर विचार न करने की सरकार की नीति असंवैधानिक : मप्र हाईकोर्ट

    “बेटे के नाम पर विचार करते वक्त उसके विवाहित होने को लेकर कोई शर्त नहीं रखी गयी है, जबकि पुत्री के मामले में ‘अविवाहित’ विशेषण/शर्त जोड़ा गया है। यह शर्त बगैर किसी औचित्य के है और इसलिए प्रकृति में यह मनमाना एवं भेदभावपूर्ण है।”

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि अनुकम्पा के आधार पर नियुक्ति के लिए शादीशुदा पुत्री के नाम पर विचार न करने की सरकार की नीति संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

    न्यायमूर्ति सुजॉय पॉल, न्यायमूर्ति जे. पी. गुप्ता और न्यायमूर्ति नंदिता दुबे की पीठ ने कहा कि विवाहित महिलाओं को अनुकम्पा पर नियुक्ति के अधिकार से वंचित करने वाली इस तरह की नीति समानता के अधिकार का हनन है।

    कोर्ट उस संदर्भ (रेफरेंस) का जवाब दे रहा था जिसमें यह प्रश्न उठाया गया था कि क्या अनुकम्पा के आधार पर नियुक्ति के मामले में राज्य सरकार द्वारा तैयार की गयी नीति के उपबंध 2.2 और 2.4 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 25 और 51(ए)(ई) का उल्लंघन कहा जा सकता है, जिसमें आश्रितों की निश्चित श्रेणी निर्धारित की गयी है, जिसके तहत अविवाहित, विधवा और तलाकशुदा पुत्री को शामिल किया गया है। यदि सरकारी नौकर के पास केवल विवाहित पुत्री है और वह पूरी तरह से पिता पर आश्रित थी, ऐसी स्थिति में विवाहित पुत्री को अपने मृतक पिता के अन्य आश्रितों की जिम्मेदारी वहन करने को लेकर अंडरटेकिंग देना होगा।

    बेंच ने कहा है कि लिंग के आधार पर भेदभाव के सभी प्रकार मौलिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं और सरकार को महिलाओं के साथ भेदभाव को समाप्त करने के लिए कानून/नीति को संशोधित करने तथा महिला-विरोधी मौजूदा कानूनों, नियमों, रीति-रिवाजों और प्रथाओं को समाप्त करने के वास्ते उचित उपाय करने चाहिए। बेंच ने कहा :-

    यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि संबंधित उपबंध 2.2 एक हद तह विवाहित महिला को अनुकम्पा के आधार पर नियुक्ति के लिए विचारित किये जाने से वंचित करता है, यह समानता के अधिकार का हनन करता है और इसे सही नहीं ठहराया जा सकता।

    उपबंध 2.4 लाकर सरकार ने आंशिक तौर पर विवाहित बेटी के नाम पर विचार के अधिकार को मान्यता तो दी है, लेकिन यह अधिकार ऐसी बेटियों तक ही सीमित था, जिसका कोई भाई नहीं था। जैसा कि देखा गया है कि उपबंध 2.2 मृतक सरकारी नौकर की पत्नी/पति को पुत्र या अविवाहित बेटी को अनुकम्पा के आधार पर नौकरी के लिए नामित करने का विकल्प देता है। इसमें बेटे के नाम पर विचार करते वक्त उसके विवाहित होने को लेकर कोई जिक्र नहीं किया गया है, जबकि पुत्री के मामले में 'अविवाहित' विशेषण/शर्त जोड़ा गया है। यह शर्त बगैर किसी औचित्य के है और इसलिए प्रकृति में यह मनमाना एवं भेदभावपूर्ण है।

    केस का नाम : मीनाक्षी दुबे बनाम मध्य प्रदेश पूर्वा क्षेत्र विद्युत वितरण निगम लिमिटेड

    केस नं. – डब्ल्यू ए. नं. 756/2019

    कोरम : न्यायमूर्ति सुजॉय पॉल, न्यायमूर्ति जे पी गुप्ता और न्यायमूर्ति नंदिता दुबे

    वकील : एडवोकेट अनुभव जैन, अंकित अग्रवाल, एडवोकेट जनरल शशांक शेखर


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