कॉलेज का गवर्निंग बॉडी कॉलेज के प्रशासनिक कर्मचारियों को नियुक्त करने के लिए उचित प्राधिकरण है: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

6 Jan 2021 7:45 AM GMT

  • कॉलेज का गवर्निंग बॉडी कॉलेज के प्रशासनिक कर्मचारियों को नियुक्त करने के लिए उचित प्राधिकरण है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि एक कॉलेज के गवर्निंग बाॅडी के पास कॉलेज के प्रशासनिक कर्मचारियों को नियुक्त करने का अधिकार है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एमआर शाह की खंडपीठ यह फैसला सुनाया।

    दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के 2018 के आदेश को अलग रखते हुए कोर्ट ने कहा कि,

    "काॅलेज के प्रधान अध्यापक, जिसे कॉलेज के सभी आंतरिक प्रशासन को सौंपा गया है। वह एक ऐसा व्यक्ति है जो कॉलेज के सभी कर्मचारियों को अच्छे से जानता है। इसलिए कॉलेज हॉस्टल के वार्डेन की नियुक्ति के संबंध में उसकी सिफारिश को महत्व मिलना चाहिए। कॉलेज हॉस्टल के वार्डेन की नियुक्ति करते समय निकाय को प्रधान अध्यापक की सिफारिश पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए।"

    पृष्ठभूमि

    श्रीमति आशा को 06.05.2016 को दौलत राम कॉलेज का वार्डन नियुक्त किया गया और उन्होंने 21.05.2016 को पदभार ग्रहण किया। गवर्निंग बॉडी ने अपनी बैठक में उल्लेख किया कि आशा की नियुक्ति से पहले वार्डन के रूप में नियुक्त की गई किसी अन्य महिला का कार्यकाल 11.09.2016 को समाप्त होना था, इसलिए आशा के पद को चुनौती दी गई। उसी के मद्देनजर आशा को एक कारण बताओ नोटिस भेजा गया। जिसमें उन्हें यह बताने के लिए कहा गया कि कैसे उन्होंने अवैध रूप से और जानबूझकर वार्डन पद पर कब्जा किया, जब उन्हें दूसरे वार्डन की नियुक्ति के बारे में पता था।

    दरअसल, जून 2016 में प्रधानाचार्य द्वारा एक पत्र भेजा गया था जिसमें बताया गया था कि आशा को वार्डन के रूप में नियुक्त किया गया है और वे दो साल तक पद संभाल सकती हैं। हालांकि एक अन्य पत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय ने लिखा कि छात्रावास वार्डन की नियुक्ति कॉलेज के प्रशासन से संबंधित है और विश्वविद्यालय की इसमें कोई भूमिका नहीं है। इसलिए प्रधानाचार्य को विश्वविद्यालय के अध्यादेश XVIII के अनुसार कार्य करने के लिए कहा गया है।

    इसी से सहमत होकर, आशा ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। जिसमें एकल न्यायाधीश ने दिनांक के 09.03.2018 को उस फैसले को रद्द कर दिया था जिसमें कहा गया था कि कॉलेज के छात्रावास में वार्डन की नियुक्ति कॉलेज का एक प्रशासनिक मामला था और आशा की नियुक्ति अनियमित थी। । इससे नाराज होकर आशा ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ समक्ष अपील की थी। जिसमें न्यायालय के फैसले दिनांक 06.03.2019 को कुछ निश्चित निर्देश जारी किए, जिसमें उल्लेख किया गया कि वार्डन की नियुक्ति के लिए आवेदन आमंत्रित करने के बाद प्रधानाध्यापक स्टाफ काउंसिल के समक्ष आवेदन करेंगे। साथ ही प्रधानाध्यापक निर्णय लेगा और मामले में अपनी सिफारिशें देगा। हॉस्टल वार्डन नियुक्त करने की प्रक्रियागत औपचारिकताओं में भ्रम की स्थिति से दु:खी होकर सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई।

    केस के मुद्दे

    सवाल उठता है कि क्या कॉलेज के प्रिंसिपल या काॅलेज के गवर्निंग बॉडी के पास कॉलेज के हॉस्टल के वार्डेन को नियुक्त करने का अधिकार है और क्या उनमें वार्डन को नियुक्त करने की शक्ति निहित है?

    कॉलेज हॉस्टल के वार्डन की नियुक्ति करने से पहले अपनाई जाने वाली प्रक्रिया क्या है?

    पीठ की व्याख्या

    पीठ ने विश्वविद्यालय द्वारा दायर जवाबी हलफनामे का विश्लेषण करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के अधिनियम, कानून और अध्यादेश हॉस्टल वार्डन की नियुक्ति के लिए कोई प्रावधान प्रदान नहीं करते हैं और यह कॉलेज का निजी मामला है।

    पीठ ने कहा कि,

    "पीठ ने अध्यादेश XVIII की जांच की जो "कॉलेजों और हॉल" से संबंधित है, जिसमें नियम 6 ए स्टाफ काउंसिल के साथ संबंधित है। अभ्यास का जिक्र करते हुए विश्वविद्यालय के जवाबी हलफनामे में विश्वविद्यालय स्पष्ट रूप से कहता है कि वार्डन की नियुक्ति विशुद्ध रूप से कॉलेज और कॉलेज की प्रशासनिक भूमिका है। दिल्ली विश्वविद्यालय अधिनियम, कानून और अध्यादेश में कॉलेज हॉस्टल की वार्डन की नियुक्ति से संबंधित कोई भी प्रावधान नहीं है। इसके साथ ही अध्यादेश XVIII 6-A(5) (b)(iii) के तहत स्टाफ काउंसिल को वार्डन की नियुक्ति से संबंधित सुझाव देने का कोई अधिकार नहीं है।"

    हॉस्टल वार्डन के पद के लिए नियुक्ति करने से पहले अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के बिंदु पर पीठ ने कहा कि,

    कॉलेज के गवर्निंग बॉडी को कॉलेज के मामलों के प्रशासन से संबंधित काम करना होता है। इसके साथ ही पीठ ने अध्यादेश XVIII के अध्याय VV-2 पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि निकाय अपने कार्यकाल में कम-से-कम एक बार बैठक करेगा और कॉलेज के मामलों को नियंत्रित करने के लिए पर्यवेक्षण होगा।

    कोर्ट ने आगे कहा कि,

    इस प्रकार, कॉलेज के गवर्निंग बॉडी के पास कॉलेज का सामान्य पर्यवेक्षण करने का अधिकार है। यहां तक कि विश्वविद्यालय द्वारा बनाए गए कॉलेजों और संस्थानों में भी यह अध्यादेश XX में प्रदान किया जाता है। इसके तहत कार्यकारी परिषद द्वारा गठित काॅलेज के गवर्निंग बाॅडी को कॉलेज के प्रशासनिक कर्मचारियों को नियुक्त करने का अधिकार है। इसी तरह, संबद्ध कॉलेजों के गवर्निंग बॉडी को कॉलेज के प्रशासनिक कर्मचारियों को नियुक्त करने का अधिकार है। अध्यादेश के मुताबिक प्रिंसिपल को हॉस्टल के वार्डेन की किसी भी नियुक्ति करने का अधिकार नहीं देता है और न ही किसी अन्य वैधानिक प्रावधान को संदर्भित किया गया है जो प्रिंसिपल को कॉलेज के वार्डेन की नियुक्ति का अधिकार देता है। "

    हॉस्टल के वार्डन की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया

    हॉस्टल के वार्डन की नियुक्ति कॉलेज के स्थायी कर्मचारियों में से की जाती है।

    वार्डन की नियुक्ति के लिए प्रिंसिपल द्वारा जारी किए गए नोटिस के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किए जाते हैं।

    प्रिंसिपल द्वारा सिफारिश किए जाने के बाद, वार्डन को नियुक्त करने के लिए संबंधित कॉलेज के गवर्निंग बॉडी द्वारा एक निर्णय लिया जाता है।

    कॉलेज हॉस्टल के वार्डेन की नियुक्ति करते समय गवर्निंग बॉडी को प्रिंसिपल की सिफारिश को विशेष महत्व देना होता है।

    पीठ ने हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच के फैसले को अलग करते हुए कहा कि,

    "गवर्निंग बॉडी को छात्रों को समायोजित करने के लिए हॉस्टल खोलने से पहले कॉलेज के प्रिंसिपल के माध्यम से आवेदन आमंत्रित करके वार्डन की नई नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।"

    मामला: दौलत राम कॉलेज के गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष बनाम डॉ. आशा [सिविल अपील नंबर: 13 ऑफ 2021]

    कोरम: जस्टिस अशोक भूषण और एमआर शाह

    उद्धरण: LL 2021 SC 4

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