न्यायिक सेवा में नए लॉ ग्रेजुएट्स की सीधी भर्ती से उत्पन्न हुईं समस्याएं, केवल किताबी ज्ञान पर्याप्त नहीं : सुप्रीम कोर्ट
Amir Ahmad
20 May 2025 2:32 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सिविल जज (जूनियर डिवीजन) पद के लिए न्यूनतम 3 साल की वकालत अनुभव की शर्त को बहाल करते हुए कहा कि पिछले 20 वर्षों में बिना किसी बार अनुभव के नए लॉ ग्रेजुएट्स की न्यायिक अधिकारियों के रूप में भर्ती सफल नहीं रही और इसने कई समस्याएं पैदा की हैं।
न्यायालय ने कहा,
"पिछले 20 वर्षों में बिना एक दिन की भी बार प्रैक्टिस के लॉ ग्रेजुएट्स की न्यायिक सेवा में भर्ती का अनुभव सफल नहीं रहा। इससे कई समस्याएं उत्पन्न हुईं।"
कोर्ट ने ज़ोर दिया कि एक न्यायिक अधिकारी पहले ही दिन से लोगों के जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति और प्रतिष्ठा से जुड़े मामलों को संभालता है। ऐसे में केवल किताबी ज्ञान या प्रशिक्षण पर्याप्त नहीं है।
न्यायालय का अवलोकन
"न्यायिक कार्य की बारीकियों को समझने के लिए न तो किताबों पर आधारित ज्ञान और न ही सेवा-पूर्व प्रशिक्षण कोर्ट की वास्तविक कार्यप्रणाली और न्याय प्रशासन के प्रत्यक्ष अनुभव का विकल्प हो सकते हैं।"
कोर्ट ने कहा कि एक आकांक्षी जज को अदालत की कार्यवाही, वकीलों की दलीलें और जजों की प्रक्रिया की व्यावहारिक समझ होनी चाहिए, जो अनुभव से ही संभव है।
सुप्रीम कोर्ट ने अधिकतर हाईकोर्ट की उस राय से सहमति जताई, जिसमें न्यायिक सेवा के उम्मीदवारों के लिए कुछ वर्षों की वकालत आवश्यक मानी गई थी।
"उम्मीदवारों को न्यायिक जिम्मेदारियों की जटिलताओं को समझने के लिए तैयार होना चाहिए, इसलिए हम इस बात से सहमत हैं कि न्यूनतम अनुभव की आवश्यकता जरूरी है।"
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह शर्त भविष्य की भर्ती प्रक्रियाओं पर ही लागू होगी। जिन भर्तियों की अधिसूचना पहले ही जारी हो चुकी है वे पुरानी शर्तों के तहत ही जारी रहेंगी।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि जजों के साथ लॉ क्लर्क के रूप में किया गया अनुभव भी इस 3 साल की प्रैक्टिस की शर्त में गिना जाएगा।

