कश्मीर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इंटरनेट के माध्यम से अभिव्यक्ति की आजादी, व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता संवैधानिक अध‌िकार

LiveLaw News Network

10 Jan 2020 5:10 PM IST

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    कश्मीर लॉकडाउन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का एक महत्वपूर्ण उपल्‍ब्‍धि उसकी यह घोषणा है कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित इंटरनेट के माध्यम से व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता भी अनुच्छेद 19 (1) (ए) और 19 (1)(जी) के तहत संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार हैं।

    जस्टिस एन वी रमना, ज‌स्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि:

    "हम घोषणा करते हैं कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और किसी भी पेशे को करने की स्वतंत्रता या इंटरनेट के माध्यम से किसी भी व्यापार या व्यवसाय को करने की स्वतंत्रता को अनुच्छेद 19 (1) (ए) और अनुच्छेद 19 (1) (जी) तहत संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है।

    इस तरह के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 19 (2) और (6) के तहत दी अनिवार्यता के अनुरूप, आनुपातिकता की परीक्षा में शामिल (पैरा 152 (बी))"।

    शुक्रवार को दिए गए फैसले में यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कोर्ट ने इंटरनेट की उपलब्‍धता के अधिकार पर कोई राय व्यक्त नहीं की है और स्पष्ट किया है कि फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यापार व वाणिज्य की स्वतंत्रता के लिए एक उपकरण के रूप में इंटरनेट के उपयोग तक सीमित है।

    सुप्रीम कोर्ट कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन और राज्यसभा सांसद गुलाम नबी आजाद की द्वारा दायर याचिकाओं पर विचार कर रहा था, जिसमें 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति के खात्मे के बाद कश्मीर क्षेत्र में इंटरनेट, मीडिया और अन्य प्रतिबंधों को चुनौती दी गई थी।

    कश्मीर में इंटरनेट 150 से ज्यादा दिनों से बंद है। एक र‌िपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के ‌किसी भी लोकतंत्र में इंटरनेट पर लगी ये सबसे लंबी पाबंदी है।

    कोर्ट ने कहा कि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति को मान्यता दी जानी चाहिए।

    जस्टिस रमना द्वारा लिखे गए फैसले में टिप्‍पणी की गई, "कानून के परिधि में प्रौद्योगिकी को मान्यता ना देना केवल अपारिहार्यता की ‌क्षति है। इंटरनेट के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता है। हम 24 घंटे साइबर स्पेस में ही डूबे रहते हैं। हमारी बुनियादी गतिविधियां भी इंटरनेट के जरिए ही संचाल‌ित हो रही हैं। (पैरा 24) "

    फैसले में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट कई फैसले में अभिवक्ति की स्वंतत्रता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दे चुका है। अब जैसे प्रौद्योगिकी विकसित हुई है, सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न माध्यमों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मान्यता दी है।

    फैसला पूर्ववर्ती ओडिसी कम्युनिकेशंस प्राइवेट लिमिटेड लिमिटेड बनाम लोकविद्या संगठन, (1988) 3 एससीसी 410, सचिव, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार आदि के उदाहरणों पर आधारित था।

    इस पृष्ठभूमि में कोर्ट ने कहाः

    "इंटरनेट के माध्यम से अभिव्यक्ति समकालीन दौर में प्रासंगिक हो गई है और यह सूचना प्रसार का एक प्रमुख साधन है। इसलिए, इंटरनेट के माध्यम से भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 (1) (ए) का एक अभिन्न अंग है, इसलिए उस पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध अनुच्छेद 19 (2) संविधान के (पैरा 26) के अनुसार होना चाहिए।

    इंटरनेट व्यापार और वाणिज्य के लिए महत्वपूर्ण उपकरण

    कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट व्यापार और वाणिज्य के लिए भी एक बहुत महत्वपूर्ण उपकरण है।

    "भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण और सूचना और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से हुई प्रगति ने विशाल व्यापारिक रास्ते खोल दिए हैं और भारत को एक वैश्विक आईटी हब के रूप में बदल दिया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कुछ ऐसे ट्रेड हैं जो पूरी तरह से इंटरनेट पर निर्भर हैं।

    इंटरनेट के माध्यम से व्यापार का ऐसा अधिकार उपभोक्तावाद और विकल्प की उपलब्धता को भी बढ़ावा देता है। इसलिए, इंटरनेट के माध्यम से व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता भी संवैधानिक रूप से अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत संरक्षित है और अनुच्छेद 19 (6 के तहत दिए प्रतिबंधों के अधीन है) ) (पैरा 27) "।

    "सार्वजनिक आपातकाल" या "सार्वजनिक सुरक्षा-हित" जैसी स्थितियां इंटरनेंट बंदी की पूर्व शर्त हैं-

    कोर्ट ने अपने फैसले में टेम्पररी सस्पेंशन ऑफ टेलीकॉम सर्विसेज (पब्लिक इमरजेंसी ऑर पब्लिक सेफ्टी) रूल्स 2017 का हवाला दिया, जिसे टेलीग्राफ एक्ट के तहत बनाया गया है।

    कोर्ट ने कहा, "धारा 5 उप-धारा (2) और इसलिए सस्पेंशन रूल्स के तहत एक आदेश को पारित किए जाने के लिए उसका "सार्वजनिक आपातकाल" या "सार्वजनिक सुरक्षा-हित" अनुरूप होना पूर्व-अपेक्षित है। पैरा 92)।

    सस्पेंशन रूल्स के नियम 2 (2) का हवाला देते हुए कहा गया कि इंटरनेट बंद करने के आदेश में प्राधिकृत अधिकारी का औचित्य "न केवल कार्यवाही की आवश्यकता को इंगित करता है", बल्कि " "क्या अपरिहार्य परिस्थितियां हैं" को भी इंगित करता है।

    उपर्युक्त नियमों का उद्देश्य इंटरनेट बंद करने के नियमों के ढांचे के भीतर एक आनुपातिक विश्लेषण की शर्त को शामिल करना है।

    "हमें लगता है कि यह दोहराना जरूरी है कि दूरसंचार सेवाओं को पूर्णतया बंद करना, चाहे वह इंटरनेट हो या अन्यथा, एक कठोर कार्यवाही है, जिस पर राज्य को केवल तभी विचार करना चाहिए जब 'आवश्यक' और 'अपरिहार्य' माना जाए। राज्य को कम कठोर वैकल्पिक उपाय (पैरा 99) का आकलन करना चाहिए ","

    इंटरनेट की अनिश्चितकालीन बंदी की अनुमति नहीं है

    इंटरनेट बंद करने के संबंध में कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश द‌िए:

    -अनिश्चित काल के लिए इंटरनेट सेवाओं को निलंबित करने का आदेश टेम्पररी सस्पेंशन ऑफ टेलीकॉम सर्विसेज (पब्लिक इमरजेंसी ऑर पब्लिक सर्विस) रूल्स, 2017 के तहत अवैधा है। निलंबन अस्थायी अवधि के लिए किया जा सकता है।

    -संस्पेंशन रूल्स के तहत इंटरनेट बंद करने के लिए जारी किए गए किसी भी आदेश को आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन करना चाहिए और यह आवश्यक अवधि से आगे नहीं बढ़ना चाहिए।

    -संस्पेंशन रूल्स के तहत इंटरनेट को निलंबित करने का कोई भी आदेश न्यायिक समीक्षा के अधीन है।

    कोर्ट ने सस्पेंशन रूल्स के समयिक समीक्षा के प्रावधान की बात की

    कोर्ट ने सस्पेंशन रूल्स में एक 'गैप' पर ध्यान दिया। कोर्ट ने कहा सस्पेंशन रूल्स इंटरनेट के निलंबन की आवधिक समीक्षा की बात नहीं करता था।

    "मौजूदा सस्पेंशन नियम न तो आवधिक समीक्षा प्रदान करते हैं और न ही सस्पेंशन रूल्स के तहत जारी आदेश के लिए समय सीमा है। इस अंतर को भरने तक, हम निर्देश देते हैं कि सस्पेंशन रूल्स के नियम 2 (5) के तहत गठित समीक्षा समिति को, नियम 2 (6) के तहत आवश्यकताओं के संदर्भ में, पिछली समीक्षा के सात कार्य दिवसों के भीतर आवधिक समीक्षा करनी चाहिए।

    कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को एक सप्ताह के भीतर इंटरनेट बंद करने के आदेशों की समीक्षा करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा निर्णय में निर्धारित मापदंडों के अनुसार समीक्षा की जानी चाहिए। यदि बंदी के लिए नए आदेश देना आवश्यक है तो उस आदेश में निर्धारित कानून का पालन किया जाना चाहिए।

    यदि सरकार किसी भी क्षेत्र में इंटरनेट को बहाल नहीं करने का विकल्प चुन रही है, तो उसे ऐसे क्षेत्रों में सरकारी वेबसाइटों, स्थानीय/ सीमित ई-बैंकिंग सुविधाओं, अस्पताल सेवाओं और अन्य आवश्यक सेवाओं जैसे कुछ वेबसाइटों को अनुमति देने पर विचार करना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा:

    "राज्य/ संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किया जाता है, किसी भी स्थिति में, वे उन क्षेत्रों में सरकारी वेबसाइटों, स्थानीय/ सीमित ई-बैंकिंग सुविधाओं, अस्पतालों की सेवाओं और अन्य आवश्यक सेवाओं की अनुमति देने पर विचार करें, जिनमें इंटरनेट सेवाओं को तुरंत बहाल किए जाने की संभावना नहीं है"

    निर्णय डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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